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पाकिस्तानी श्रद्धालुओं का भव्य स्वागत, गंगा तट पर दिखा सनातन प्रेम का अद्भुत संगम

पाकिस्तान से आए 270 हिंदू श्रद्धालुओं ने हरिद्वार की धरती पर गंगा स्नान, भजन संध्या और मंदिर दर्शन के साथ पाया अद्भुत आत्मिक अनुभव।

हरिद्वार। जब भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में कड़वाहट आम बात बन चुकी है, ऐसे में सांस्कृतिक और धार्मिक एकजुटता की एक भावुक और प्रेरणादायक तस्वीर हरिद्वार में सामने आई। पाकिस्तान से आए 270 हिंदू श्रद्धालुओं का भव्य स्वागत हरिद्वार के सप्त सरोवर स्थित शदाणी दरबार में गाजे-बाजे और फूल मालाओं के साथ किया गया। श्रद्धालुओं का यह जत्था रायपुर होते हुए स्वामी युधिष्ठिर लाल महाराज के नेतृत्व में हरिद्वार पहुंचा, जहां 3 दिनों तक मां गंगा के दर्शन, शोभायात्रा, जनेऊ संस्कार और भजन संध्या जैसे आध्यात्मिक आयोजनों में शामिल होगा। हर तरफ भक्तिभाव, उल्लास और सनातन संस्कृति की गौरवमयी गूंज देखने को मिली।

स्वामी युधिष्ठिर लाल महाराज ने बताया कि यह कोई सामान्य यात्रा नहीं, बल्कि विभाजन की पीड़ा झेल चुके उन लोगों के लिए एक आध्यात्मिक वापसी है, जो अब भी पाकिस्तान में रहकर सनातन धर्म से जुड़ाव बनाए हुए हैं। इस जत्थे में 165 पुरुष और 100 महिलाएं शामिल हैं, जिन्हें छह समूहों में बांटा गया है ताकि गंगा स्नान और मंदिर दर्शन सुलभ हो सकें। महाराज ने स्पष्ट किया कि यह धार्मिक पहल दोनों देशों के बीच आध्यात्मिक संबंधों की पुल के रूप में कार्य करती है। उन्होंने भारत सरकार से यह मांग भी दोहराई कि ऐसे और श्रद्धालुओं को वीजा देने में उदारता दिखाई जाए ताकि सनातनी भावनाओं से जुड़े परिवार यहां की पवित्र भूमि पर आकर अपने आराध्यों के दर्शन कर सकें।

हरिद्वार में श्रद्धालुओं के स्वागत में स्थानीय नागरिकों और संतों ने जिस गर्मजोशी से हिस्सा लिया, उसने भारतीय मेहमाननवाजी की मिसाल पेश की। भारत पहुंचते ही पाकिस्तानी श्रद्धालुओं की आंखें भर आईं। उनका कहना था कि “भारत मां के दर्शन और गंगा मैया के स्पर्श की जो इच्छा वर्षों से थी, वो आज पूरी हो गई। यहां आकर जो अपनापन और सम्मान मिला, उसने हमें भावुक कर दिया।” श्रद्धालुओं ने भारत सरकार को धन्यवाद देते हुए कहा कि वीजा मिलने से उन्हें देवी-देवताओं के दरबार में हाजिरी लगाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, और ये यात्रा उनके जीवन की सबसे यादगार आध्यात्मिक अनुभूति बन गई।

श्रद्धालुओं की शोभायात्रा जब हरिद्वार की गलियों से गुजर रही थी, तो सड़कों पर पुष्प वर्षा हो रही थी, ढोल-नगाड़ों की गूंज वातावरण को संगीतमय बना रही थी और ‘हर हर गंगे’ के जयकारों से पूरा क्षेत्र गूंज उठा था। स्थानीय लोगों ने श्रद्धालुओं के लिए प्रसाद, पूजा सामग्री और धार्मिक साहित्य भी भेंट किया, जो भावनात्मक रूप से जुड़ने का प्रतीक बन गया। कार्यक्रम के दौरान ‘गंगा आरती’ में शामिल होने का अवसर श्रद्धालुओं के लिए किसी सौभाग्य से कम नहीं रहा। शाम होते-होते हरकी पौड़ी के किनारे दीपों की कतारें और भक्तिमय माहौल ने श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

पाकिस्तान से आई एक महिला श्रद्धालु जब हरिद्वार की पवित्र भूमि पर पहुंचीं, तो उनकी आंखें नम थीं और हृदय भावनाओं से ओतप्रोत। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने जीवन में केवल इन मंदिरों के नाम ही सुने थे, लेकिन अब उन्हें साक्षात अपनी आंखों से देखने और अपने मन से अनुभव करने का जो अवसर मिला है, वह उनके लिए किसी स्वप्न से कम नहीं है। इस पुण्य भूमि पर आकर उन्हें ऐसा लगा जैसे वर्षों पुरानी कोई अधूरी साध पूरी हो गई हो। मां गंगा के दर्शन, मंदिरों की घंटियों की गूंज, हर-हर महादेव के जयघोष, सब कुछ उनके हृदय को भीतर तक छू गया। उन्होंने कहा कि भारत की यह धरती वास्तव में पुण्य भूमि है, जहां केवल भक्ति ही नहीं, अपार प्रेम और अपनापन भी मिलता है। उन्होंने यह भी कहा कि विभाजन के बाद जो दूरी दोनों देशों के बीच बन गई थी, इस यात्रा ने उस खाई को कुछ हद तक भरने का कार्य किया है। उनका भावुक संदेश था कि सरकारें चाहे कितनी भी सीमाएं खींच लें, लेकिन धर्म, श्रद्धा और मानवीय भावनाएं कभी सीमाओं में बंध नहीं सकतीं।

शदाणी दरबार ट्रस्ट का कहना है कि यह यात्रा केवल धार्मिक आस्था का ही नहीं, बल्कि भारत की गहन धार्मिक सहिष्णुता और सनातन संस्कृति की व्यापकता का भी जीवंत उदाहरण है। ट्रस्ट के अनुसार, पाकिस्तान से श्रद्धालुओं का भारत आना दो देशों के बीच एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सेतु का निर्माण करता है, जो न केवल विभाजन की दूरियों को कम करता है, बल्कि आत्मिक जुड़ाव को भी मजबूत करता है। ट्रस्ट ने इस बात पर भी बल दिया कि यदि भारत सरकार का सहयोग निरंतर मिलता रहे, तो भविष्य में पाकिस्तान में बसे सभी सनातनी परिवारों को भारत लाकर यहां के पवित्र तीर्थ स्थलों से जोड़ा जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले समय में और अधिक श्रद्धालुओं को आमंत्रित किया जाएगा, जिससे भारत की आध्यात्मिक गरिमा और समरसता का प्रचार विश्वभर में फैल सके।

हरिद्वार के स्थानीय प्रशासन ने पाकिस्तान से आए श्रद्धालुओं की इस पवित्र यात्रा को सुरक्षित, सुलभ और स्मरणीय बनाने के लिए व्यापक तैयारियां की थीं। श्रद्धालुओं की संख्या और धार्मिक महत्व को देखते हुए विशेष सुरक्षा इंतजाम किए गए, ताकि सभी यात्रियों को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो। उनके ठहरने के लिए धर्मशालाओं में समुचित आवास की व्यवस्था की गई, साथ ही भोजनालयों में सात्विक भोजन और स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था सुनिश्चित की गई। स्वास्थ्य सेवाओं को भी मजबूत किया गया, ताकि किसी आकस्मिक स्थिति में त्वरित सहायता उपलब्ध कराई जा सके। इसके अतिरिक्त, हरिद्वार के धार्मिक संगठनों, स्थानीय स्वयंसेवकों और सेवा भाव से जुड़े लोगों ने इस आयोजन को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई। श्रद्धालुओं की हर जरूरत का ख्याल रखते हुए उन्होंने भारतीय संस्कृति की अतिथि देवो भव: की भावना को साकार किया, जिससे सभी मेहमानों का अनुभव और भी भावुक और प्रेरणादायक बना।

यह कार्यक्रम स्पष्ट रूप से इस बात का प्रमाण है कि धार्मिक विश्वास की शक्ति और सनातन संस्कृति का गहरा जादू किसी भी राजनीतिक या भौगोलिक सीमा से कहीं अधिक व्यापक होता है। पाकिस्तान से आए यह श्रद्धालु केवल तीर्थ यात्रा पर नहीं आए, बल्कि अपने साथ वह भावना लेकर आए जो मानवता, प्रेम और एकता के मूल में बसी होती है। यह यात्रा एक सांस्कृतिक सेतु है, जो दोनों देशों के लोगों को आत्मिक रूप से जोड़ता है। इस आयोजन ने यह सिद्ध कर दिया कि जब श्रद्धा का दीप जलता है, तब उसके प्रकाश को कोई दीवार, कोई सरहद, और कोई विचारधारा रोक नहीं सकती। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक भावनात्मक संदेश है कि अगर दिलों में जुड़ाव हो, तो दुनिया की सबसे बड़ी दूरियां भी सिमट कर नजदीकियों में बदल सकती हैं।

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