काशीपुर। उत्तराखंड में पंचायत चुनाव के चलते व्यापारी वर्ग के समक्ष एक नई प्रशासनिक चुनौती खड़ी हो गई है, जिससे जूझते हुए अब रामनगर टैक्स बार एसोसिएशन ने केंद्र और राज्य सरकार से जीएसटी रिटर्न की निर्धारित तिथि को लेकर पुनर्विचार करने की पुरजोर मांग उठाई है। प्रदेश में 24 और 28 जुलाई को त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के अंतर्गत मतदान होना है, जिसके कारण अधिकांश ग्रामीण इलाकों के व्यापारी और जीएसटी रजिस्ट्रेशन धारक चुनावी तैयारियों में व्यस्त हो चुके हैं। कई व्यापारी स्वयं उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि अन्य अपने-अपने पसंदीदा प्रत्याशियों के प्रचार में जुटे हुए हैं। इन परिस्थितियों में उनके लिए अपने जीएसटी रिटर्न को समय पर दाखिल करना बेहद कठिन हो गया है। समाधान डीलरों की समयसीमा 18 जुलाई और सामान्य डीलरों की 24 जुलाई निर्धारित की गई है, जिसके बाद यदि रिटर्न दायर किया गया तो स्वाभाविक रूप से लेट फीस और आर्थिक दंड की कार्रवाई तय है, जो व्यापारियों पर अतिरिक्त दबाव डालेगी।
चुनावी भागदौड़ और प्रशासनिक व्यस्तताओं के इस संकटकाल में टैक्स बार एसोसिएशन ने यह साफ किया है कि वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए जीएसटी फाइलिंग की अंतिम तारीख को 05 अगस्त तक आगे बढ़ाया जाना न केवल तार्किक है बल्कि न्यायोचित भी है। बार के अध्यक्ष एडवोकेट पूरन चंद्र पांडे और सचिव गौरव गोला ने इस विषय में संयुक्त रूप से जानकारी देते हुए बताया कि चुनावी माहौल में व्यापारी अपनी प्राथमिकताओं के बीच फंस चुके हैं, और ऐसे में समयसीमा की मजबूरी उन्हें अनावश्यक पेनल्टी की ओर धकेल सकती है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस मांग के पीछे कोई राजनैतिक मंशा नहीं, बल्कि यह व्यापारियों के हित में एक सटीक और समयानुकूल अपील है, जिस पर सरकार को संवेदनशीलता से विचार करना चाहिए। बार का यह भी कहना है कि इस अवधि में यदि किसी व्यापारी से रिटर्न समय पर न भर पाने की स्थिति बनती है तो उस पर किसी भी तरह की विभागीय कार्यवाही न की जाए, जिससे कारोबारी वातावरण में तनाव न फैले।
व्यापारी वर्ग और कर सलाहकारों का मानना है कि पंचायत चुनावों की तैयारी में न केवल राजनीतिक दलों के प्रत्याशी बल्कि उनसे जुड़े स्थानीय व्यापारी भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़ जाते हैं। गांवों में व्यापारी वर्ग सामाजिक प्रभाव रखने वाला वर्ग माना जाता है, जो अक्सर चुनावी समर में निर्णायक भूमिका निभाता है। ऐसे में यह अस्वाभाविक नहीं कि वे चुनावों में व्यस्त हों और जीएसटी जैसे जटिल दायित्वों को समय पर पूरा करना उनके लिए मुश्किल बन जाए। इसी यथार्थ को ध्यान में रखते हुए रामनगर टैक्स बार एसोसिएशन ने यह तर्क संगत मांग उठाई है, जो राज्य के विभिन्न जिलों में स्थित व्यापारिक संगठनों की आवाज़ भी बनती जा रही है। व्यापारी संगठनों का कहना है कि यदि सरकार ने इस ओर शीघ्र ध्यान नहीं दिया तो हजारों व्यापारियों को बेवजह जुर्माने की मार झेलनी पड़ेगी, जो चुनाव के बाद उनके आर्थिक स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है।
जीएसटी प्रणाली को लेकर पहले ही व्यापारी समुदाय में कुछ स्तर की असुविधा और कठिनाइयां बनी हुई हैं। डिजिटल प्रक्रिया, समयबद्धता और त्रुटिरहित रिटर्न की बाध्यता ने छोटे व्यापारियों को पहले ही दबाव में डाल रखा है। अब जब पंचायत चुनावों जैसे जन-आंदोलनों में व्यापारी वर्ग सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है, तब सरकार की ओर से कोई राहत न मिलना, नीति निर्धारकों की दूरदर्शिता पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर सकता है। बार ने जिस संयमित और कानूनी भाषा में यह मांग रखी है, वह सरकार को यह संकेत देती है कि यह सिर्फ एक वर्ग विशेष की मांग नहीं, बल्कि शासन-प्रशासन और नागरिक हित के बीच संतुलन बनाए रखने की अपील है। ऐसे में प्रशासन को यह समझना होगा कि कर प्रणाली को सख्ती से लागू करना तब तक सार्थक नहीं जब तक उसमें मानवीय पहलू को प्राथमिकता न दी जाए।
अध्यक्ष एडवोकेट पूरन चंद्र पांडे और सचिव गौरव गोला ने मीडिया से संवाद करते हुए कहा कि वर्तमान में उत्तराखंड के विभिन्न जनपदों में पंचायत चुनाव की प्रक्रिया जोरों पर है और इसके तहत 24 व 28 जुलाई को मतदान निर्धारित है। ऐसे में बड़ी संख्या में ग्रामीण क्षेत्रों के व्यापारी और जीएसटी पंजीकृत डीलर या तो चुनाव लड़ रहे हैं या फिर अपने क्षेत्रीय प्रत्याशियों के प्रचार-प्रसार में व्यस्त हैं। चुनावी व्यस्तता के इस दौर में जीएसटी रिटर्न की नियत तारीख 18 जुलाई (समाधान डीलर) और 24 जुलाई (रेगुलर डीलर) निर्धारित की गई है, जो व्यापारियों के लिए इस समय पूरी करना अत्यंत कठिन है। यदि व्यापारी तय समयसीमा के भीतर रिटर्न नहीं भर पाते हैं तो उन्हें सरकार की ओर से लेट फीस और जुर्माने जैसी सख्त कार्यवाही का सामना करना पड़ता है, जो पूरी तरह अनुचित होगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार को चाहिए कि संवेदनशीलता दिखाते हुए तिथि को 05 अगस्त तक आगे बढ़ाए और इस दौरान विलंब से रिटर्न भरने वालों पर किसी भी प्रकार की विभागीय दंडात्मक कार्यवाही को तत्काल रोका जाए, ताकि व्यापारी वर्ग राहत महसूस कर सके।
आने वाले दिनों में यदि सरकार इस याचिका पर कोई सकारात्मक निर्णय लेती है तो यह न केवल उत्तराखंड के व्यापारिक माहौल को सहूलियत देगा, बल्कि यह एक मिसाल के रूप में उभरेगा कि शासन नागरिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपनी नीतियों में लचीलापन अपनाता है। जीएसटी फाइलिंग की तारीख में बढ़ोतरी की यह मांग अब केवल रामनगर तक सीमित नहीं, बल्कि यह समस्त ग्रामीण और अर्धशहरी व्यापारियों की साझा मांग बन चुकी है। अब नजर इस बात पर टिक गई है कि क्या सरकार समय रहते इस गंभीर मांग पर कोई निर्णय लेती है या फिर व्यापारी वर्ग को एक बार फिर अनसुना कर दिया जाएगा।