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नैनीताल झील पर मंडराया जल संकट, सूखे की कगार पर सरोवर नगरी

बिन बारिश सूख रही नैनीताल झील, पर्यटन और पेयजल पर गहराया संकट

नैनीताल(एस पी न्यूूज़)। विश्व प्रसिद्ध झील इन दिनों जल संकट की चपेट में आ गई है। झील का जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है, जिससे इसके किनारों पर डेल्टा उभरने लगे हैं। इससे न केवल नैनीताल की प्राकृतिक सुंदरता प्रभावित हो रही है, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए भी मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। बीते अक्टूबर माह से अब तक नैनीताल और आसपास के क्षेत्रों में बेहद कम बारिश और बर्फबारी हुई है। इसी कारण, क्षेत्र में सूखे जैसे हालात बनने लगे हैं, जो आने वाले दिनों में और भी गंभीर हो सकते हैं।

नैनीताल में कम बारिश और बर्फबारी का प्रभाव सीधे झील के जल स्तर पर पड़ा है। बीते पांच वर्षों में झील का जल स्तर अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है। विशेषज्ञों की मानें तो यदि हालात ऐसे ही बने रहे, तो स्थानीय लोगों को पेयजल संकट का सामना करना पड़ सकता है। यही नहीं, गर्मियों के मौसम में जब पर्यटन अपने चरम पर होगा, तब हजारों पर्यटकों को भी पेयजल की किल्लत झेलनी पड़ सकती है। नैनी झील के जलस्तर की निगरानी करने वाले सिंचाई विभाग के सहायक अभियंता डीडी सती का कहना है कि पिछले चार वर्षों में झील का जल स्तर लगातार गिर रहा है। जिले की अन्य झीलों का जल स्तर भी बारिश और बर्फबारी पर निर्भर करता है, लेकिन इस बार अत्यधिक कमी देखने को मिली है।

फरवरी माह में झीलों के जल स्तर की तुलना करें तो स्थिति और भी गंभीर प्रतीत होती है। 2022 में नैनीताल झील का जल स्तर 9.02 फुट था, जो 2023 में घटकर 6.08 फुट हो गया। 2024 में यह स्तर 6.02 फुट पर आ गया और 2025 में 6.01 फुट पर पहुंच गया। अन्य झीलों का भी यही हाल है। भीमताल झील का जल स्तर 2022 में 43.8 फुट था, जो 2024 में घटकर 38.6 फुट रह गया। इसी तरह सातताल और नौकुचियाताल की जल मात्रा में भी भारी गिरावट दर्ज की गई है। ये आंकड़े स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि नैनीताल समेत पूरे जिले में जल संकट गहराता जा रहा है, जिसका प्रभाव भविष्य में और भी गंभीर हो सकता है।

झीलों में जल स्तर की यह गिरावट केवल पर्यावरण तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर किसानों पर भी पड़ रहा है। नैनीताल जिले के रामगढ़, मुक्तेश्वर और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में आड़ू, पुलम, सेब और खुमानी जैसे फलों की खेती की जाती है। यह क्षेत्र अपनी बागवानी के लिए प्रसिद्ध है और यहां के फलों की आपूर्ति देशभर की विभिन्न मंडियों में होती है। इससे स्थानीय किसानों की आजीविका चलती है और उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। लेकिन इस बार बारिश और बर्फबारी की भारी कमी के कारण किसान चिंतित हैं। फसलों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा है, जिससे उत्पादन प्रभावित हो सकता है।

फल पट्टी के नाम से पहचाने जाने वाले इन इलाकों में सालभर खेती की जाती है, लेकिन इस बार मौसम ने किसानों के सपनों पर पानी फेर दिया है। पहले से ही कठिन परिस्थितियों में जी रहे पहाड़ी किसानों के लिए यह स्थिति और भी विकट होती जा रही है। अगर बारिश नहीं हुई तो इन इलाकों में सूखे जैसे हालात बन सकते हैं, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।

इस जल संकट ने प्रशासन की चिंता भी बढ़ा दी है। स्थानीय निकाय और सिंचाई विभाग लगातार जल स्तर की निगरानी कर रहे हैं, लेकिन बिना पर्याप्त बारिश के जल स्तर बढ़ाना संभव नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि जल संकट से निपटने के लिए जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले महीनों में नैनीताल के पर्यटन और स्थानीय जीवन पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ेगा।

नैनीताल एक पर्यटन नगरी के रूप में जाना जाता है, जहां देश-विदेश से हजारों पर्यटक हर साल आते हैं। गर्मियों के मौसम में यह संख्या और भी बढ़ जाती है। लेकिन जल संकट की इस स्थिति में पर्यटन उद्योग भी प्रभावित हो सकता है। यदि जल स्तर इसी गति से गिरता रहा, तो आने वाले दिनों में पर्यटकों के लिए पानी की उपलब्धता एक बड़ी समस्या बन सकती है। होटल और रेस्तरां संचालकों को भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

प्रशासन को इस जल संकट से निपटने के लिए तुरंत प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है। जल संरक्षण के लिए योजनाएं बनाई जानी चाहिए और जल स्रोतों के पुनर्जीवन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देने और झीलों में कृत्रिम जल आपूर्ति के उपायों पर भी विचार किया जाना चाहिए। इसके अलावा, स्थानीय लोगों को जल संरक्षण के प्रति जागरूक किया जाना जरूरी है, ताकि जल संकट को कम किया जा सके।

नैनीताल झील और अन्य जल स्रोतों का जल स्तर अगर लगातार गिरता रहा, तो इससे न केवल पर्यावरणीय असंतुलन पैदा होगा, बल्कि स्थानीय जीवन और पर्यटन को भी भारी नुकसान झेलना पड़ेगा। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रशासन इस गंभीर समस्या का समाधान कैसे निकालता है और जल संकट को कम करने के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं।

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