नैनीताल। विश्वभर में आस्था का केंद्र बन चुके बाबा नीब करौरी महाराज की महिमा का बखान अक्सर श्रद्धालु करते हैं, लेकिन उनके पारिवारिक जीवन और निजी अनुभवों को लेकर बहुत कम बातें सामने आई हैं। बाबा के इकलौते वंशज और पोते धनंजय शर्मा, जो अब सेवा-निवृत्त डॉक्टर हैं, ने हाल ही में हरिद्वार में बाबा के जीवन से जुड़ी कुछ अनसुनी और बेहद अंतरंग घटनाएं साझा कीं। उन्होंने बताया कि बाबा को उनके परिजनों ने कभी सोते हुए नहीं देखा था। वह रातभर जागते रहते थे, एकदम मौन और गहराई से अपने ध्यान में लीन। उनके भीतर मौजूद तपस्वी ऊर्जा इतनी प्रबल थी कि वह एक ही समय में दो स्थानों पर दिखाई देते थे। उनके अनुसार, बाबा जहां भी जाते, वहाँ किसी प्रकार का शोर या दिखावा उन्हें रास नहीं आता था। यह गुण उन्हें भीड़ से बिल्कुल अलग करता था।
कई वर्षों तक घर से बाहर रहने के बावजूद बाबा अपने पारिवारिक दायित्वों को कभी नहीं भूले। डॉ. धनंजय शर्मा बताते हैं कि जब बाबा लगभग तेरह साल तक परिवार से दूर रहे और कोई उनका अता-पता नहीं जानता था, तब पूरा परिवार चिंतित था कि शायद वह लौटकर कभी नहीं आएंगे। लेकिन जैसे ही एक ग्रामीण ने बताया कि उसने बाबा को कहीं देखा है, उसी शाम वह अचानक घर आ गए। इसके बाद वह हर महीने की पहली तारीख को बिना नागा घर आते और पूरे घर की आवश्यकताओं का व्यक्तिगत रूप से ध्यान रखते। बाबा की यह विशेषता थी कि वह घर के सबसे छोटे सदस्य से लेकर बड़े-बुजुर्ग तक, सभी से संवाद करते और उनकी ज़रूरतों को समझते थे।

नीब करौरी बाबा का जीवन सादगी और मानवीय करुणा से भरा हुआ था। लखनऊ में उनके पुत्र के निर्माणाधीन मकान पर जब वह कुछ समय के लिए ठहरे, तो एक मजदूर ने रात में अंधेरे में बाबा के पोते को अकेले भेजे जाने पर गुस्से में डांट लगाई। आश्चर्यजनक बात यह रही कि बाबा ने उस मजदूर की डांट को गंभीरता से लिया और अगले दिन उसे घर बुला कर वहीं रहने को कहा। उस समय से वह मजदूर उनके परिवार का हिस्सा बन गया। यह घटना दर्शाती है कि बाबा का जीवन संत होने के साथ-साथ मानवता का सच्चा उदाहरण भी था। वह केवल पूजा-पाठ में नहीं, बल्कि रिश्तों और संवेदनाओं में भी परमात्मा की अनुभूति देखते थे।
डॉ. धनंजय शर्मा ने यह भी साझा किया कि एक बार आगरा में परिवार के एक सदस्य की शादी हो रही थी। शादी के दौरान कुछ बातों को लेकर बाबा नाराज़ हो गए और कार्यक्रम स्थल से बाहर चले गए। उस दिन सबको लगा कि वे कहीं अकेले चले गए हैं, लेकिन बाद में पता चला कि वे उसी शाम उत्तर प्रदेश के सीनियर पुलिस अफसर ओंकार सिंह के लखनऊ स्थित आवास पर भी उपस्थित थे। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि बाबा के पास एक ही समय में दो स्थानों पर उपस्थित होने की सिद्धि थी, जिसे उनके अनेक अनुयायियों ने अनुभव भी किया। ओंकार सिंह ने सार्वजनिक मंच पर इस बात की पुष्टि की थी कि बाबा उस शाम उनके घर पर भी मौजूद थे।

जहां तक उनकी आध्यात्मिक शक्ति की बात है, बाबा कभी भी अपने चमत्कारों का प्रचार नहीं चाहते थे। धनंजय शर्मा बताते हैं कि बाबा को यह कतई पसंद नहीं था कि लोग उनके नाम पर भीड़ लगाएं या उनका महिमामंडन करें। एक बार जब आगरा के एक व्यक्ति ने उनके लिए विनय चालीसा की रचना की और डाक से उन्हें भेजी, तो बाबा ने वह चालीसा पढ़कर तुरंत फाड़ दी और स्पष्ट कहा कि उनके बारे में ऐसे ग्रंथ न लिखे जाएं। लेकिन विडंबना यह है कि वही चालीसा आज देशभर में प्रसिद्ध हो चुकी है। इसका उल्लेख करते हुए डॉ. शर्मा ने कहा कि बाबा प्रचार से कोसों दूर थे और सिर्फ आत्मिक साधना के माध्यम से लोगों को जोड़ने में विश्वास रखते थे।
बहुत कम लोग यह जानते हैं कि बाबा नीब करौरी महाराज केवल एक संत ही नहीं, बल्कि समाजिक दायित्वों को निभाने वाले एक आदर्श नागरिक भी थे। उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर गांव में वह लगातार 40 वर्षों तक निर्विरोध ग्राम प्रधान चुने जाते रहे। हर चुनाव में गांववाले बिना किसी औपचारिकता के उन्हें ही अपना प्रतिनिधि चुनते थे। यह उनकी जनप्रियता और सेवा-भावना का प्रमाण था। उनकी यह छवि बताती है कि उन्होंने समाज के हर वर्ग से जुड़ाव बनाए रखा।

कैंची धाम, जो आज देश-विदेश के लाखों श्रद्धालुओं का प्रमुख केंद्र बन चुका है, उसके विकास को लेकर भी धनंजय शर्मा ने संतोष जताया। उनका कहना है कि राज्य सरकार द्वारा वहां सुविधाओं को बेहतर किया जाना सराहनीय कदम है। उन्होंने यह भी प्रस्ताव रखा कि अगर वहां भंडारे की स्थायी व्यवस्था हो जाए, तो वह स्वयं प्रतिदिन पांच घंटे भोजन सेवा का आयोजन करना चाहेंगे। सरकार से इस पर चर्चा हो चुकी है और उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही इसकी स्वीकृति मिल जाएगी।
बाबा का जन्म सन् 1900 में फिरोजाबाद के ग्राम अकबरपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मात्र ग्यारह वर्ष की उम्र में उनका विवाह हुआ और अल्पायु में ही वह साधु बनने के लिए घर छोड़कर निकल गए थे। लेकिन बाद में अपने पिता के आग्रह पर उन्होंने घर वापसी की। भारत में उनके प्रमुख आश्रम नैनीताल के कैंचीधाम, भूमियाधार, काकरीघाट, हनुमानगढ़ी, वृंदावन, ऋषिकेश, लखनऊ, शिमला और फर्रुखाबाद में हैं, वहीं विदेशों में अमेरिका के न्यू मैक्सिको में भी उनका आश्रम मौजूद है। उनका महासमाधि दिवस 11 सितंबर 1973 को वृंदावन में हुआ था। आज भी बाबा की शिक्षाएं और उनका साधु जीवन लाखों श्रद्धालुओं को प्रेरित करता है।