काशीपुर। काशीपुर नगर निगम क्षेत्र में हाल ही में उस समय राजनीतिक हलचल तेज हो गई जब महापौर दीपक बाली ने प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से देहरादून स्थित उनके आवास पर मुलाकात कर विकास से संबंधित मुद्दों के साथ-साथ शहर के कुछ पुराने मोहल्लों और चौराहों के नाम बदलने का प्रस्ताव सौंपा। इस कदम के सामने आते ही शहर में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया। जहां एक ओर यह मुद्दा जनहित में उठाया गया बताया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इस पर विरोध के स्वर भी तेज हो रहे हैं। आमजन के बीच इस विषय पर मिलीजुली प्रतिक्रिया सामने आ रही है। कुछ लोगों का यह मानना है कि महापौर दीपक बाली ने हमेशा विकास को प्राथमिकता दी है और जब से उन्होंने मेयर का कार्यभार संभाला है, तब से नगर निगम क्षेत्र में लगातार विकास कार्य होते आ रहे हैं। लोगों ने कहा कि दीपक बाली केवल नाम बदलने की राजनीति नहीं करते, बल्कि वे ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले जनप्रतिनिधि हैं। इसीलिए आज पूरा काशीपुर उनके साथ खड़ा है और आगे भी रहेगा।
हालांकि, इस प्रस्ताव को लेकर कुछ लोगों ने आपत्ति भी जताई है। उनके अनुसार नामों के चयन में संतुलन नहीं रखा गया। जैसे, चीमा चौराहा का नाम बदलकर महाराजा अग्रसेन चौक रखने का सुझाव कुछ नागरिकों को उचित नहीं लगा। उनका कहना है कि नामकरण करते समय स्थानीय इतिहास, सांस्कृतिक पहचान और जनभावनाओं का ख्याल रखना जरूरी होता है। केवल किसी लोकप्रिय नाम को किसी स्थान पर जोड़ देने से उसकी मान्यता या महत्व नहीं बदलता। जिन स्थानों पर वर्षों से लोग अपनी पहचान और इतिहास से जुड़े रहे हैं, उनका नाम बदल देना कहीं न कहीं उनकी यादों और भावनाओं से खिलवाड़ जैसा लगता है। नाम परिवर्तन की प्रक्रिया में यदि पारदर्शिता और जनसहभागिता न हो, तो वह विरोध का कारण बन जाती है। लोग यह चाहते हैं कि पहले शहर के मूलभूत विकास कार्यों पर ध्यान दिया जाए, जैसे सड़कों की हालत सुधारना, जल निकासी की व्यवस्था, सफाई और यातायात व्यवस्था को बेहतर बनाना, फिर नामकरण जैसे कार्यों पर विचार हो।
इस मुद्दे ने तब और तूल पकड़ लिया जब जसपुर विधायक आदेश सिंह चौहान ने प्रस्ताव पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए स्पष्ट कहा कि केवल नाम बदलने से क्षेत्र का विकास संभव नहीं है। विधायक ने अपने बयान में कहा कि अगर कोई नया मार्ग या क्षेत्र विकसित होता है, तो उसका नाम किसी महापुरुष के नाम पर रखना स्वागत योग्य हो सकता है, लेकिन पहले से स्थापित मोहल्लों और चौराहों के नामों में बदलाव करना जनता की भावनाओं को ठेस पहुंचा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि पारंपरिक और ऐतिहासिक नामों में छेड़छाड़ करना किसी भी दृष्टिकोण से तर्कसंगत नहीं है और इससे सामाजिक सौहार्द भी प्रभावित हो सकता है। विधायक का यह बयान सोशल मीडिया सहित विभिन्न प्लेटफार्मों पर तेजी से वायरल हो गया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि यह मामला अब केवल नगर निगम तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसकी गूंज प्रदेश की राजनीति तक पहुंच चुकी है।
इस पूरे विवाद के बीच महापौर दीपक बाली ने अपनी सफाई देते हुए स्पष्ट किया कि यह प्रस्ताव उनका व्यक्तिगत निर्णय नहीं है। उन्होंने बताया कि यह सारी अनुशंसा जनमानस से प्राप्त सुझावों पर आधारित है। जब भी वह किसी जनसभा या सार्वजनिक कार्यक्रम में पहुंचे, तो वहां पर आम नागरिकों ने उनसे आग्रह किया कि उनके मोहल्लों या चौराहों का नाम किसी महापुरुष के नाम पर रखा जाए। उन्होंने यह भी जोड़ा कि उन्होंने सभी सुझावों को ध्यानपूर्वक सुना और जिन नामों पर व्यापक सहमति थी, उन्हें पत्र के माध्यम से मुख्यमंत्री को प्रस्तावित किया गया है। उन्होंने दोहराया कि अंतिम निर्णय शासन स्तर पर ही लिया जाएगा और जो भी फैसला आएगा, वह सभी की भावनाओं को ध्यान में रखकर लिया जाएगा। महापौर ने यह भी स्पष्ट किया कि उनका मकसद केवल नाम बदलना नहीं है, बल्कि वह काशीपुर को एक आधुनिक और विकसित शहर के रूप में स्थापित करना चाहते हैं, जहां नागरिक सुविधाएं सर्वोपरि हों और हर व्यक्ति को अपनी जरूरत के अनुसार सुविधाएं सहजता से उपलब्ध हों।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य सरकार इस प्रस्ताव पर क्या निर्णय लेती है और किस दिशा में यह मामला आगे बढ़ता है। नामकरण का यह मुद्दा केवल नाम बदलने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके ज़रिए राजनीति, जनसंपर्क, विकास और सांस्कृतिक पहचान के विभिन्न पहलुओं को भी छूता है। आने वाले दिनों में इस प्रस्ताव पर शासन का रुख और जनता की प्रतिक्रिया यह तय करेगी कि काशीपुर के नक्शे पर कितने नए नाम जुड़ते हैं और कौन से पुराने नाम अपनी पहचान बनाए रखते हैं।