रामनगर। उत्तराखंड की राजनीति में इन दिनों जो सबसे बड़ा और चर्चा का विषय बना हुआ है, वह है मंत्रिमंडल विस्तार की प्रतीक्षा और उस पर पसरा असमंजस का घना बादल। महीने भर से जिस मंत्रिमंडल विस्तार की गूंज देहरादून से दिल्ली तक गूंजती रही, वह फिलहाल फुस्स पटाखे की तरह शोर मचाकर शांत हो गई है। कई दौर की हाई लेवल मीटिंग्स, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के दिल्ली दौरों, और विधायकों की हलचल ने एक समय तो पूरे प्रदेश को इस विश्वास में डाल दिया था कि अब कभी भी मंत्रिमंडल में नए चेहरे शामिल हो सकते हैं। यहां तक कि कुछ मंत्रियों की सांसें भी तेज हो गई थीं, जिन्हें हटाने की अटकलें चल रही थीं। लेकिन अंत में नतीजा शून्य ही निकला, सिर्फ प्रेमचंद अग्रवाल को उनके विवादास्पद बयान की वजह से बाहर का रास्ता दिखाया गया, बाकी कुर्सियों पर कोई हलचल नहीं हुई।
राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा और भी दिलचस्प हो गई जब कुछ नेताओं और विश्लेषकों ने यहां तक कह दिया कि पार्टी शुभ मुहूर्त की तलाश में है और चौत्र नवरात्रि को इस विस्तार के लिए सर्वाेत्तम समय माना जा रहा है। इस बार तो भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने भी कई बार बड़े विश्वास से कहा था कि बहुत जल्द मंत्रिमंडल विस्तार किया जाएगा। सभी को लगने लगा था कि नवरात्रों के दौरान जब धामी सरकार अपने तीन साल पूरे करेगी, तब एक फुल फ्लैज कैबिनेट जनता के सामने आएगा। लेकिन न नवरात्रों में कुछ हुआ, न उसके एक सप्ताह बाद तक। पूरा परिदृश्य ऐसा बन गया है कि अब मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर न भाजपा में कोई नई हलचल दिख रही है, न ही किसी नेता की जुबान से कोई ताजा संकेत निकल रहा है।
विपक्ष ने इस स्थिति पर तुरंत तीखा वार किया है। कांग्रेस के प्रवक्ता डॉ0 गणेष उपाध्याय ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि भाजपा की यह सरकार सिर्फ जुमलेबाजी तक सीमित है, असल काम कुछ भी नहीं हो रहा। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर क्यों तीन साल गुजर जाने के बावजूद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के पास 40 से ज्यादा विभागों की जिम्मेदारी है और कोई नया चेहरा कैबिनेट में नहीं जोड़ा जा रहा है। उनका तर्क था कि जब इतने सारे विभाग एक ही व्यक्ति देख रहा हो, तो प्रदेश के विकास की गति पर क्या असर पड़ता होगा, इसका अंदाजा खुद लगाया जा सकता है। प्रतिमा सिंह ने यह भी कहा कि भाजपा के भीतर गुटबाजी इस कदर हावी है कि मुख्यमंत्री तय ही नहीं कर पा रहे कि किसे मंत्री बनाया जाए और किसे नजरअंदाज किया जाए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अपनी कुर्सी बचाने की चिंता में मुख्यमंत्री को विकास कार्यों को पीछे रखना पड़ रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार और ‘सहर प्रजातंत्र’ के सम्पादक सुनील कोठारी ने भी स्थिति की गंभीरता पर रोशनी डाली है। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड की राजनीति में कैबिनेट विस्तार की चर्चा कोई नई बात नहीं है, यह पहले भी कई बार उठ चुकी है। लेकिन इस बार उम्मीद कुछ ज्यादा थी, क्योंकि पांच मंत्री पद खाली हैं और मौजूदा कैबिनेट लगभग 40 फीसदी अधूरी है। जब मुख्यमंत्री और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बार-बार दिल्ली के चक्कर लगा रहे थे, तब यह पूरी तरह से स्पष्ट संकेत मिल रहे थे कि मंत्रिमंडल विस्तार अब औपचारिकता भर रह गया है। लेकिन वक्त बीतता गया और चर्चाएं फिर से हवाओं में खो गईं। वरिष्ठ पत्रकार सुनील कोठारी के अनुसार, यह साल भाजपा सरकार के लिए सबसे उपयुक्त समय था विस्तार का, क्योंकि सरकार का आधे से ज्यादा कार्यकाल पूरा हो चुका है और आने वाले समय में लोकसभा चुनाव का दौर शुरू हो जाएगा। ऐसे में यह राजनीतिक दृष्टिकोण से भी जरूरी हो जाता था कि मंत्रियों को काम सौंपकर सरकार की सक्रियता को और मजबूती दी जाए।
इस पूरे घटनाक्रम से एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि जब सरकार पूर्ण बहुमत में है, तो मंत्रिमंडल की खाली कुर्सियों को भरने में ऐसी कौन सी जटिलता आ रही है? वरिष्ठ पत्रकार सुनील कोठारी ने इस पर भी तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि जब गठबंधन की सरकार होती है या फिर कमजोर बहुमत वाली, तब तो समझ आता है कि संतुलन बनाने के लिए फैसले टाले जाते हैं। लेकिन यहां तो भाजपा की प्रचंड बहुमत वाली सरकार है, जिसे अपने निर्णयों को अमल में लाने के लिए किसी तरह की अंदरूनी या बाहरी बाधा नहीं होनी चाहिए। बावजूद इसके मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर यह असहज चुप्पी और अनिश्चितता कहीं न कहीं पार्टी की आंतरिक राजनीति की ओर इशारा करती है।
इसी बीच भाजपा के प्रदेश महामंत्री राजेंद्र बिष्ट ने इस पूरी बहस को कांग्रेस की अफवाह बताकर खारिज करने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि पार्टी जल्द ही मंत्रिमंडल विस्तार करेगी और इस पर केंद्र स्तर पर विचार चल रहा है। उन्होंने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि विपक्ष का काम सिर्फ भ्रम फैलाना है जबकि सच्चाई यह है कि नवरात्रि के दौरान पार्टी ने अपने करीब 50 वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी सौंपी है, जो यह दर्शाता है कि सरकार काम कर रही है। उन्होंने यह भी बताया कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, संगठन महामंत्री और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष इस मुद्दे पर लगातार विमर्श कर रहे हैं और जल्द ही कोई ठोस निर्णय सामने आएगा।
अब देखना यह है कि यह “जल्द” शब्द वास्तव में कितनी जल्दी किसी ठोस फैसले में तब्दील होता है, क्योंकि जनता और कार्यकर्ता दोनों की निगाहें अब सरकार की अगली चाल पर टिकी हुई हैं। जब खुद मुख्यमंत्री और अन्य वरिष्ठ नेता मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर इतने समय से बयान दे रहे थे और स्पष्ट संकेत दे चुके थे, तो फिर इस देरी का कोई स्पष्ट कारण सामने न आना कई सवालों को जन्म देता है। क्या यह भाजपा की अंदरूनी खींचतान है, या फिर कोई नई रणनीति का हिस्सा? फिलहाल उत्तराखंड की राजनीति में यह रहस्य बना हुआ है और जब तक कोई ठोस ऐलान नहीं होता, तब तक यह विषय यूं ही सियासी हलकों में गर्माया रहेगा।
भले ही भाजपा यह दावा कर रही हो कि मंत्रिमंडल विस्तार जल्द किया जाएगा, लेकिन अब तक की देरी ने कई संदेश साफ कर दिए हैं। सबसे बड़ा यह कि सरकार के फैसलों को लेकर भरोसे की जमीन धीरे-धीरे खिसक रही है। जनता विकास कार्यों की गति और पारदर्शिता चाहती है, लेकिन जब कैबिनेट अधूरी हो, और निर्णयों में स्पष्टता न हो, तब यह भरोसा डगमगाने लगता है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अब यह तय करना होगा कि क्या वह राजनीतिक संतुलन साधने के फेर में विकास की धार को कुंद होने देंगे, या फिर पूरी ताकत से राज्य को एक पूर्ण, सक्रिय और उत्तरदायी मंत्रिमंडल देंगे। उत्तराखंड के लोगों की उम्मीदें अब किसी नए बयान से नहीं, बल्कि ठोस कदम से बंधी हैं।