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धर्मनगरी हरिद्वार में मौनी अमावस्या पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भव्य भीड़

मौनी अमावस्या पर गंगा स्नान, आस्था की डुबकी और पितरों के तर्पण से पुण्य की प्राप्ति

हरिद्वार(सुरेन्द्र कुमार)। धर्मनगरी हरिद्वार में इस बार मौनी अमावस्या के अवसर पर गंगा घाटों पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। श्रद्धालुओं ने गंगा तट पर आस्था की डुबकी लगाई और दान-पुण्य कर सुख और समृद्धि की कामना की। शास्त्रों के अनुसार मौनी अमावस्या के दिन गंगा स्नान और दान का विशेष महत्व है। इस दिन की धार्मिक मान्यता के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति गंगा स्नान करता है और दान करता है तो उसे विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है और उसके पाप धुल जाते हैं। इस दिन को लेकर श्रद्धालुओं में गहरी आस्था देखी जाती है, और हरिद्वार के गंगा घाटों पर लाखों की संख्या में लोग जुटते हैं। यहां के हरकी पौड़ी, गणेश घाट, कृष्णा घाट सहित अन्य गंगा तटों पर सुबह से ही श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगा रहे थे। इन श्रद्धालुओं का मानना है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख, समृद्धि व शांति का आगमन होता है।

मौनी अमावस्या को लेकर खास मान्यता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है। खासकर माघ माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को श्मौनी अमावस्याश् कहा जाता है। इस दिन मौन रहकर गंगा स्नान करने का प्रचलन है, और इसे विशेष रूप से पितरों का तर्पण करने के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। श्रद्धालुओं के अनुसार, मौनी अमावस्या पर मौन रहकर गंगा स्नान करने और दान करने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं और सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन के महत्व को समझते हुए हरिद्वार में हजारों श्रद्धालु दूर-दूर से गंगा स्नान के लिए पहुंचे थे। श्रद्धालुओं ने गंगा तट पर आकर पितरों को तर्पण किया और मोक्ष की प्राप्ति के लिए पूजा-अर्चना की। धर्मानगरी हरिद्वार में यह दिन विशेष रूप से धार्मिक और आस्थावान लोगों के लिए एक अभूतपूर्व अनुभव बन गया है।

मौनी अमावस्या के दिन का महत्व शास्त्रों में भी विशेष रूप से उल्लेखित है। ज्योतिषाचार्य पंडित मनोज त्रिपाठी ने बताया कि माघ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन का विशेष महत्व है और खासकर कुंभ मेले के दौरान जब यह अमावस्या प्रयागराज में पड़ती है, तब उस समय एक विशेष योग बनता है। यह योग श्रद्धालुओं को और भी अधिक पुण्य अर्जित करने का अवसर देता है। पंडित त्रिपाठी ने कहा कि इस दिन गंगा में स्नान करने के बाद जप, तप, दान जैसे धार्मिक कार्यों का फल कई गुना बढ़ जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि इस दिन ब्राह्मणों को तिल मिश्रित मिठाई, ऊनी वस्त्र, कंबल, चावल आदि दान करना चाहिए। इसके साथ ही पितरों के निमित्त तर्पण और पिंडदान करने से व्यक्ति अपने पितरों को मोक्ष दिला सकता है और पितृ दोष से मुक्त हो जाता है। यह दिन न केवल गंगा स्नान के लिए विशेष है, बल्कि यह पितरों की कृपा प्राप्त करने और भविष्य की परेशानियों को दूर करने का भी एक अवसर है।

मौनी अमावस्या के इस खास अवसर पर हरिद्वार में श्रद्धालुओं का उत्साह और श्रद्धा देखते ही बनती थी। गंगा के तट पर आस्था की डुबकी लगाते हुए श्रद्धालुओं ने दान-पुण्य के साथ अपने पितरों के लिए तर्पण किया और मोक्ष की प्राप्ति की कामना की। हरकी पौड़ी और अन्य प्रमुख गंगा घाटों पर भारी संख्या में लोग उमड़े हुए थे। यहां पर गंगा के तटों पर आरती का आयोजन भी किया गया, और श्रद्धालु गंगा माता की महिमा का गुणगान करते हुए आस्था की डुबकी लगा रहे थे। इस दौरान सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम किए गए थे, ताकि किसी भी तरह की कोई परेशानी न हो। पुलिस-प्रशासन ने घाटों पर सुरक्षा के लिए पर्याप्त संख्या में जवान तैनात किए थे और श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की समस्या से बचाने के लिए हर जरूरी कदम उठाए गए थे। इसके अलावा, शहर में यातायात व्यवस्था भी सख्त कर दी गई थी, ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की कोई असुविधा न हो।

मौनी अमावस्या पर गंगा स्नान के महत्व के साथ ही, इस दिन पितरों का तर्पण भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। श्रद्धालुओं का मानना है कि पितरों को तर्पण और पिंडदान करने से उनके कष्ट दूर होते हैं और उनका आशीर्वाद हमेशा बना रहता है। हरिद्वार के गंगा घाटों पर इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और श्रद्धालु अपने परिवार की सुख-शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। इस दिन के दौरान होने वाली धार्मिक गतिविधियों का महत्व सभी श्रद्धालुओं के लिए अनमोल होता है। यह दिन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण अवसर है, जो एकता, सद्भाव और सामाजिक जागरूकता का प्रतीक है।

इस बार मौनी अमावस्या पर हरिद्वार में गंगा स्नान का अवसर श्रद्धालुओं के लिए एक अद्वितीय अनुभव बना, और यह दिन न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण साबित हुआ। इस दिन के साथ जुड़े धार्मिक कृत्य, दान-पुण्य और तर्पण के साथ श्रद्धालुओं ने अपनी आस्था को प्रगाढ़ किया और अपनी मनोकामनाओं की सिद्धि की।

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