रामनगर। उत्तराखंड में सरकार के नए पेपरलेस रजिस्ट्री कानून को लेकर अधिवक्ताओं का गुस्सा अब सड़कों पर फूट पड़ा है। रामनगर टैक्स बार एसोसिएशन ने इस फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए इसे अधिवक्ताओं और संबंधित पेशेवरों के हितों पर सीधा हमला बताया है। एसोसिएशन का कहना है कि सरकार लगातार ऐसे निर्णय ले रही है जो वकीलों के भविष्य के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। पहले इनकम टैक्स और जीएसटी को पूरी तरह ऑनलाइन कर दिया गया, जिससे वकीलों का बड़ा हिस्सा प्रभावित हुआ और अब रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को पेपरलेस कर अधिवक्ताओं, दस्तावेज लेखकों, मुंशियों और आरायजनवीसों के लिए रोजगार का संकट खड़ा कर दिया गया है। अधिवक्ताओं का कहना है कि डिजिटल प्रक्रिया लागू होने से न केवल उनके हितों पर प्रहार हो रहा है, बल्कि इसमें बड़े स्तर पर फर्जीवाड़े और कर चोरी की संभावनाएं भी बढ़ रही हैं। सरकार की एजेंसियां खुद इस ऑनलाइन प्रक्रिया की खामियों को उजागर कर चुकी हैं, फिर भी सरकार अपने राजस्व के हितों को देखते हुए इसे जबरदस्ती लागू करने पर तुली हुई है।
आज के विरोध प्रदर्शन में रामनगर टैक्स बार एसोसिएशन के अध्यक्ष पूरन चंद्र पांडे, सचिव गौरव गोला, उपाध्यक्ष प्रबल बंसल, फिरोज अंसारी, उपसचिव मनु अग्रवाल, प्रेस प्रवक्ता गुलरेज रजा, भोपाल रावत, मनोज बिष्ट, राकेश राही, नावेद सैफी और लइक अहमद सहित बड़ी संख्या में अधिवक्ता शामिल हुए। प्रदर्शनकारियों ने सरकार को चेतावनी दी कि यदि यह निर्णय तुरंत वापस नहीं लिया गया तो विरोध प्रदेशव्यापी स्तर पर फैल जाएगा। अधिवक्ताओं ने इस फैसले को न्याय व्यवस्था के लिए घातक बताया और कहा कि सरकार का यह रवैया वकीलों को बेरोजगारी की ओर धकेलने का षड्यंत्र है।
टैक्स बार एसोसिएशन के अध्यक्ष पूरन चंद्र पांडे ने सरकार के पेपरलेस रजिस्ट्री के फैसले को अधिवक्ताओं के भविष्य के लिए घातक बताया। उन्होंने कहा कि यह कदम न सिर्फ वकीलों बल्कि दस्तावेज लेखकों, मुंशियों और आरायजनवीसों के रोजगार पर सीधा प्रहार है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार केवल अपने राजस्व लाभ को ध्यान में रखकर यह बदलाव कर रही है, जबकि इसका सीधा असर उन हजारों पेशेवरों पर पड़ेगा जो कानूनी दस्तावेजीकरण में जुड़े हुए हैं। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार यदि इस निर्णय को वापस नहीं लेती, तो विरोध प्रदर्शन और भी उग्र होगा। पूरन चंद्र पांडे ने आगे कहा कि इससे रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया में फर्जीवाड़ा और कर चोरी जैसी घटनाएं बढ़ेंगी, जिसका दुष्परिणाम आम जनता को भुगतना पड़ेगा। उन्होंने साफ कहा कि अधिवक्ता सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि पूरी न्यायिक व्यवस्था की रक्षा के लिए इस संघर्ष में उतरे हैं। यदि सरकार जल्दबाजी में ऐसे निर्णय लेती रही, तो अधिवक्ताओं को मजबूरन न्यायिक प्रक्रिया ठप करने जैसे कड़े कदम उठाने पड़ सकते हैं।
टैक्स बार एसोसिएशन के सचिव गौरव गोला ने सरकार के पेपरलेस रजिस्ट्री कानून पर तीखा हमला बोलते हुए इसे अधिवक्ताओं के अस्तित्व पर सीधा प्रहार बताया। उन्होंने कहा कि यह फैसला अधिवक्ताओं को हाशिए पर धकेलने की साजिश का हिस्सा है, जिसे किसी भी कीमत पर सफल नहीं होने दिया जाएगा। सरकार डिजिटलीकरण के नाम पर अधिवक्ताओं का हक छीनने की कोशिश कर रही है, लेकिन हम इस अन्याय के खिलाफ आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि सरकार ने बिना किसी चर्चा और विचार-विमर्श के यह फैसला थोप दिया, जिससे हजारों वकीलों, दस्तावेज लेखकों और मुंशियों का भविष्य अंधकारमय हो गया है। गौरव गोला ने साफ शब्दों में चेतावनी दी कि यदि सरकार ने अधिवक्ताओं की अनदेखी जारी रखी, तो यह विरोध सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे राज्य में आंदोलन की चिंगारी भड़केगी। उन्होंने कहा कि वकील केवल अपने अधिकारों की लड़ाई नहीं लड़ रहे, बल्कि न्याय प्रणाली को बचाने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। सरकार को यह समझ लेना चाहिए कि यदि अधिवक्ताओं को कमजोर करने की कोशिश की गई, तो पूरा न्यायिक तंत्र लड़खड़ा जाएगा और इसका सीधा असर आम जनता पर पड़ेगा।
इस दौरान अन्य अधिवक्ताओं का कहना है कि सरकार का यह कदम सिर्फ अधिवक्ताओं पर ही असर नहीं डालेगा, बल्कि आम नागरिकों को भी परेशानी झेलनी पड़ेगी। यूसीसी कानून की तरह इस फैसले को भी सरकार ने जल्दबाजी में लागू कर दिया है, जिसके दूरगामी परिणाम खतरनाक साबित हो सकते हैं। वकीलों का स्पष्ट कहना है कि यह आंदोलन केवल उनकी आजीविका की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि पूरे न्यायिक तंत्र को बचाने के लिए है। यदि सरकार ने जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो अधिवक्ता सड़कों पर और आक्रामक होंगे, जिससे प्रदेशभर की न्यायिक व्यवस्था ठप हो सकती है। सरकार के इस फैसले से हजारों वकील, दस्तावेज लेखक, मुंशी और अन्य कानूनी पेशेवरों के सामने रोजगार का गंभीर संकट खड़ा हो गया है, जिसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाएगा।
इस विरोध प्रदर्शन में अधिवक्ताओं का जोश देखते ही बन रहा था। सभी ने एक सुर में सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और कहा कि वे अपने हक के लिए अंतिम समय तक संघर्ष करेंगे। विरोध कर रहे अधिवक्ताओं का कहना था कि सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए, अन्यथा इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। अधिवक्ताओं की यह लड़ाई अब सिर्फ एक मांग तक सीमित नहीं, बल्कि यह उनके अस्तित्व की लड़ाई बन चुकी है। सरकार को यह समझ लेना चाहिए कि अधिवक्ताओं को नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा और यदि उनकी आवाज को दबाने की कोशिश की गई तो पूरे प्रदेश में बड़ा आंदोलन खड़ा किया जाएगा।