काशीपुर। गन्ना विभाग में व्याप्त असंतोष और आक्रोश की चिंगारी एक बार फिर से भड़क उठी है और इस बार इसे हवा दी उत्तराखंड गन्ना पर्यवेक्षक संघ के प्रदेशभर से जुटे पदाधिकारियों व सदस्यों ने, जिन्होंने मंगलवार को काशीपुर में एकजुट होकर जमकर प्रदर्शन किया। यह विरोध केवल एक अधिकारी के खिलाफ नहीं था, बल्कि उस कार्यप्रणाली के विरुद्ध था जिसने विभागीय कर्मचारियों को मानसिक रूप से परेशान और कार्य के प्रति निरुत्साहित कर दिया है। संघ के वरिष्ठ नेताओं ने गन्ना एवं चीनी उद्योग आयुक्त पर सीधा आरोप लगाते हुए कहा कि उनका रवैया न केवल कठोर और तानाशाहीपूर्ण है, बल्कि इससे विभाग के भीतर एक डर और असुरक्षा का माहौल बन गया है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि लगातार उत्पीड़न और मनमाने फैसलों के चलते कर्मचारियों का मनोबल गिरा है और विभागीय कार्यों की रफ्तार पर सीधा असर पड़ा है, जिसे अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
संगठन के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश डबराल ने पूरी गंभीरता और सख्त लहजे में कहा कि जब कोई वरिष्ठ अधिकारी अपने पद की गरिमा को भूलकर तानाशाही रवैया अपनाता है, तो ऐसे वातावरण में विभागीय कर्मचारियों से निष्ठा, पारदर्शिता और समर्पण की उम्मीद करना न केवल अनुचित है, बल्कि व्यर्थ भी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि एक अच्छा प्रशासनिक ढांचा तभी बन सकता है जब अधिकारी और कर्मचारी आपसी सम्मान और विश्वास के साथ कार्य करें, लेकिन वर्तमान आयुक्त का व्यवहार पूरी तरह से मनमानी और उत्पीड़न पर आधारित है। सुरेश डबराल ने जानकारी दी कि संघ ने 5 अप्रैल को पूरी प्रक्रिया का पालन करते हुए एक विस्तृत ज्ञापन संबंधित अधिकारियों को सौंपा था, जिसमें सारी समस्याएं विस्तार से रखी गई थीं। बावजूद इसके, अब तक इस पर कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है। यह उदासीनता दर्शाती है कि कर्मचारियों की चिंता किसी की प्राथमिकता नहीं है, जिससे कर्मचारियों का आक्रोश अब तेजी से बढ़ रहा है।
प्रदेश के विभिन्न जिलों से काशीपुर पहुंचे प्रतिनिधियों ने भी पूरी स्पष्टता के साथ गन्ना एवं चीनी उद्योग आयुक्त की कार्यशैली को लेकर नाराजगी जाहिर की और सरकार को सीधी चेतावनी दी कि अगर इस मामले को तत्काल प्राथमिकता नहीं दी गई, तो उत्तराखंड भर में यह विरोध एक व्यापक आंदोलन का रूप ले लेगा। प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि आयुक्त लगातार ऐसे आदेश जारी कर रहे हैं जो न केवल विभागीय कर्मचारियों को असहज करते हैं, बल्कि उनकी व्यक्तिगत गरिमा और आत्मसम्मान को भी गहरी ठेस पहुंचाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इन परिस्थितियों ने कार्यस्थल पर एक ऐसा तनावपूर्ण माहौल बना दिया है, जिसमें कोई भी कर्मचारी स्वतंत्रता और मानसिक संतुलन के साथ काम नहीं कर सकता। उनका यह भी कहना था कि यदि शासन इस चेतावनी को नजरअंदाज करता है, तो कर्मचारी सड़कों पर उतरकर अपने अधिकारों के लिए आर-पार की लड़ाई लड़ने को पूरी तरह तैयार हैं।

प्रदर्शन स्थल पर मौजूद वरिष्ठ उपाध्यक्ष जयपाल सिंह, कार्यालय सचिव सुनील चंद्र सेमवाल, संगठन मंत्री डॉ. गंगादत्त, कोषाध्यक्ष दीपक शर्मा, संयुक्त मंत्री जितेन्द्र कुमार और प्रदेश प्रवक्ता कृष्णपाल सिंह ने स्पष्ट और सशक्त शब्दों में अपनी बात रखते हुए कहा कि अब संगठन अपने कर्मचारियों के सम्मान, अधिकार और कार्यस्थल की गरिमा से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि लंबे समय से विभाग में उत्पीड़न और तानाशाही रवैये की शिकायतें मिल रही थीं, लेकिन अब यह स्थिति असहनीय हो चुकी है। अधिकारियों द्वारा बार-बार आदेशों के माध्यम से कर्मचारियों को दबाने, अपमानित करने और डराने की जो प्रवृत्ति सामने आ रही है, वह किसी भी तरह बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने दो टूक कहा कि यदि मांगे नहीं मानी गईं, तो संघ उग्र आंदोलन का रास्ता अपनाने से पीछे नहीं हटेगा।
प्रदर्शन में शामिल ललित मोहन पांडेय ने गुस्से और निराशा के मिले-जुले भाव के साथ कहा कि जो माहौल वर्तमान समय में गन्ना विभाग के भीतर बना हुआ है, वह किसी भी कर्मचारी के मानसिक संतुलन और कार्यक्षमता के लिए अत्यंत घातक है। उन्होंने बताया कि अधिकारी जिस प्रकार की तानाशाही शैली में काम कर रहे हैं, उससे न केवल कर्मचारियों की आत्मसम्मान को ठेस पहुंच रही है, बल्कि विभाग की साख और विकास भी प्रभावित हो रहा है। ललित मोहन पांडेय ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि शासन इस गंभीर स्थिति की अनदेखी करता रहा, तो संगठन पूरे प्रदेश में आंदोलन को तेज करेगा और इसका दायरा मुख्यालय तक फैल जाएगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि अब समय आ गया है कि शासन कर्मचारियों की आवाज को सुने और गन्ना एवं चीनी उद्योग आयुक्त को तत्काल प्रभाव से हटाया जाए, जिससे विभाग में शांति और गरिमा लौट सके।
आक्रोशित कर्मचारियों ने इस दौरान चेताया कि यदि जल्द ही आयुक्त का स्थानांतरण नहीं किया गया और किसी नए, कर्मठ तथा सहयोगी अधिकारी की नियुक्ति नहीं हुई, तो गन्ना पर्यवेक्षक संघ प्रदेश मुख्यालय में भी आंदोलन का बिगुल बजाएगा। संगठन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि यह आंदोलन लंबा खिंचता है, तो इसकी संपूर्ण जिम्मेदारी शासन और आयुक्त की होगी। उन्होंने दो टूक कहा कि यदि इस बार भी अधिकारियों ने सिर्फ औपचारिकता निभाकर मामले को टालने का प्रयास किया, तो यह आंदोलन एक राज्यव्यापी जनांदोलन में बदल जाएगा। प्रदर्शनकारियों में शामिल वीके चौधरी, उपल सिंह, नवनीत सिंह, संजीव सिंह चौधरी, महेश प्रसाद, राकेश प्रताप, महेंद्र यादव, अमित सैनी, और गौतम नेगी समेत अन्य सभी सदस्यों ने इस मसले पर अपने कड़े विचार साझा करते हुए साफ कर दिया कि अब संगठन किसी भी तरह की चुप्पी नहीं साधेगा।
चंद्र सिंह धर्मशक्तू, आयुक्त, ने इस पूरे घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि विभागीय अनुशासन और कार्य संस्कृति को बनाए रखना उनकी पहली प्राथमिकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जो भी आदेश दिए गए हैं, वे पूरी तरह से नियमों और विभागीय हितों को ध्यान में रखते हुए जारी किए गए हैं। उनका कहना था कि यदि किसी कर्मचारी को कोई आपत्ति या समस्या है, तो उसके लिए विभागीय स्तर पर संवाद और समाधान की पूरी व्यवस्था उपलब्ध है। चंद्र सिंह धर्मशक्तू ने यह भी कहा कि व्यक्तिगत आरोपों के बजाय सभी पक्षों को मिलकर सकारात्मक वातावरण बनाने की दिशा में प्रयास करना चाहिए, जिससे विभाग का समुचित संचालन और विकास सुनिश्चित हो सके। उन्होंने यह भी जोड़ा कि कर्मचारियों की भावनाओं का सम्मान करते हुए यदि किसी स्तर पर संवाद की आवश्यकता हुई, तो वे उसके लिए सदैव उपलब्ध रहेंगे।
इस प्रदर्शन ने गन्ना विभाग के अंदर चल रही खींचतान और असंतोष की गहराई को एक बार फिर सतह पर ला दिया है। कर्मचारियों की भावनाएं और संगठन की चेतावनी साफ-साफ दर्शाती है कि विभाग में नेतृत्व परिवर्तन की आवश्यकता अब टाली नहीं जा सकती। अगर समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, तो यह असंतोष किसी बड़ी प्रशासनिक चुनौती में तब्दील हो सकता है। काशीपुर में जुटे गन्ना पर्यवेक्षकों का यह विरोध सिर्फ एक अधिकारी के खिलाफ नाराजगी नहीं है, बल्कि यह उस व्यवस्था के खिलाफ है जो वर्षों से कर्मचारियों की समस्याओं को अनदेखा करती रही है। संगठन ने राज्य सरकार से यह अपील की है कि वह इस मसले को गंभीरता से लेकर विभाग में सकारात्मक और कर्मचारी हितैषी माहौल तैयार करे, अन्यथा प्रदेशभर में कार्य बहिष्कार और धरना-प्रदर्शन जैसे कदम उठाना तय माना जाए।