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खेत में अफीम और मैदान में महायुद्ध जब एक किसान की गिरफ्तारी पर उतरी पूरी फौज

128 अफीम के पौधे, 33 पुलिसवाले, एक किसान और नामों की लंबी सूची—क्या ये गिरफ्तारी थी या वर्दी में शौर्य प्रदर्शन का महा इवेंट?

रामनगर। रामनगर की धरती पर इन दिनों एक ऐसा ‘साहसिक’ मंजर सामने आया, जिसे जानकर शायद फिल्मी पुलिस ऑपरेशन भी फीके लगें। ग्राम पीपलसाना में 55 वर्षीय जसवंत सिंह को पकड़ने के लिए जैसे पुलिस महकमे की पूरी ताक़त झोंक दी गई हो। महज़ 128 अफीम के पौधों की खेती पर ऐसा अभियान चला कि मानो कोई अंतरराष्ट्रीय ड्रग कार्टेल का गढ़ नेस्तनाबूद किया जा रहा हो। आमतौर पर इतनी मात्रा में अवैध खेती के मामलों में एक छोटी टीम कार्रवाई करती है, लेकिन इस बार मामला कुछ और ही था। इस गिरफ्तारी के लिए उ0नि0 मोहन सिंह सौन, उ0नि0 संजीत राठौर, उ0नि0 जोगा सिंह, उ0नि0 सुरभि राणा, उ0नि0 गौरव जोशी और उ0नि0 दिनेश जोशी जैसे अफसरों की टीम ने कमान संभाली, और साथ में पहुंचे करीब 30 अन्य अधिकारी व जवान। जब इतने सारे पुलिस अधिकारी एक मामूली किसान को गिरफ्तार करने के लिए खेत में पहुंचे, तो नज़ारा कुछ ऐसा था जैसे किसी मोस्ट वांटेड माफिया की घेराबंदी हो रही हो।

पुलिस महकमे की ओर से जारी प्रेस नोट ने पूरे घटनाक्रम को ‘ऐतिहासिक उपलब्धि’ के तौर पर पेश कर दिया। गिरफ़्तारी के बाद मीडिया में जिस अंदाज़ में फोटो जारी किए गए और नामों की लिस्ट साझा की गई, उससे यह ज़रूर जाहिर हुआ कि यह मामला अफीम की खेती से ज़्यादा ‘नाम दर्ज कराने’ की प्रतिस्पर्धा में उलझा दिखा। हे0का0 ललित श्रीवास्तव, का0 चन्दन नेगी, का0 संतोष कुमार, का0 राजेन्द्र जोशी, का0 मनमोहन सिंह, हे0का0 अनिल चौधरी, हे0का0 सुरजीत सिंह, हे0का0 बृजमोहन बहुगुणा, का0 महबूब आलम, का0 धर्मेन्द्र सिंह, का0 सीपी विजेन्द्र गौतम, का0 संजय सिंह जैसे अधिकारियों की मौजूदगी ने इस कार्रवाई को महाकाव्य जैसा रूप दे दिया। किसी ग्रामीण क्षेत्र में इतने अधिकारी किसी स्थानीय अपराधी को पकड़ने पहुंचे हों, ऐसा दृश्य देखना दुर्लभ है। स्थानीय लोग भी हैरान थे कि इतनी बड़ी पुलिस फौज किसी डकैत को पकड़ने आई है या फिर किसी बड़े तस्कर का पर्दाफाश होने वाला है।

इतनी बड़ी टीम की मौजूदगी और प्रेस नोट में इतने नाम देखकर यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं रहा कि अफसरों की दिलचस्पी बरामद अफीम से ज़्यादा अपने नाम चमकाने में रही होगी। इस पूरे प्रकरण में जितनी तत्परता अफसरों के नाम जोड़ने में दिखाई गई, उतनी शायद पूछताछ या विवेचना में भी नहीं दिखी। का0 हरीश मेहरा, ए0पी0सी0आई0आर0बी0 गोविन्द कुमार, का0 बृजेश कुमार, का0 हरि किशन, का0 पुष्पेन्द्र सिंह, हे0का0 सुरेन्द्र रावत, का0 बलदेव आर्या, का0 मनोज कुमार, का0 योगेन्द्र सिंह, का0 हेतराज सिंह और का0 विपिन कुमार जैसे जवान जब खेत में डटे हुए थे, तो दूर से ही प्रतीत हो रहा था कि पुलिस किसी आतंकी को गिरफ्तार करने आई है। अफीम के 128 पौधों की गिनती में जितना समय गया, उतनी देर में तो शायद एक तस्करी नेटवर्क को ध्वस्त किया जा सकता था। फिर भी पुलिस का ‘ऑपरेशन अफीम’ इस अंदाज़ में चला कि कई विभागों की सक्रियता देखने लायक रही।

रामनगर की यह कार्रवाई अब चर्चा में है, लेकिन चर्चा का कारण अफीम की खेती नहीं बल्कि उस पर की गई ‘सैन्य स्तर की’ कार्रवाई है। जसवंत सिंह को जिस तरह से घेर कर गिरफ्तार किया गया, उससे सवाल खड़ा हो गया है कि क्या वास्तव में इतना बड़ा बल तैनात करना जरूरी था? या फिर अफसरों की टीम ने इस मौके को अपने विभागीय प्रोफाइल में एक ‘विशेष अभियान’ के रूप में दर्ज करने का मौका समझा? 128 पौधों की खेती पर NDPS एक्ट के तहत यह कार्रवाई ज़रूरी तो थी, लेकिन 33 से अधिक अधिकारियों को एक साथ तैनात करना प्रशासनिक समझदारी की मिसाल नहीं बन पाई। यह सब देखकर आम लोग भी सोचने पर मजबूर हैं कि जब किसी इलाके में वाकई संगठित अपराधी पकड़ने होते हैं, तब क्या यही त्वरित प्रतिक्रिया दिखाई जाती है?

अब असल मुद्दा ये नहीं है कि जसवंत सिंह ने क्या बोया, बल्कि असल सवाल यह है कि पुलिस की इतनी बड़ी ताक़त क्या हर बार इसी तरह इस्तेमाल की जाती है या फिर कभी-कभी ‘दिखावे’ के लिए भी वर्दी की ताक़त मैदान में उतारी जाती है? ग्रामीणों का कहना है कि अफीम की खेती गलत है और उस पर कार्रवाई ज़रूरी भी है, लेकिन यह भी उतना ही ज़रूरी है कि पुलिस की ऊर्जा और संसाधन का प्रयोग वास्तविक गंभीर अपराधों के लिए हो। वरना, हर छोटी गिरफ्तारी को ‘ऑपरेशन’ बनाकर जिस तरह से प्रचारित किया जाता है, उससे यह संदेह जन्म लेता है कि कहीं विभागीय उपलब्धियों का लेखा-जोखा ही असली मक़सद तो नहीं है?

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