रामनगर। उत्तराखंड में अवैध खनन का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। प्रदेश में नियमों की अनदेखी कर बड़े पैमाने पर खनन कार्य जारी है। यहां तक कि इस गंभीर मुद्दे को राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और हरिद्वार से सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत भी संसद में उठा चुके हैं। लेकिन इसके बावजूद अवैध खनन पर रोक लगाने की दिशा में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। नैनीताल जिले के रामनगर के तराई पश्चिमी क्षेत्र में कोसी नदी का सीना चीरकर मशीनों से धड़ल्ले से खनन किया जा रहा है। यह वही कोसी नदी है, जिसे कुमाऊं की जीवनदायिनी माना जाता है। लेकिन अवैध खनन के कारण इसका अस्तित्व संकट में पड़ता नजर आ रहा है। पहले जहां इस नदी में परंपरागत तरीके से मजदूरों द्वारा खनन कराया जाता था, अब वहीं भारी-भरकम मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो सीधे-सीधे केंद्र सरकार की गाइडलाइन्स का उल्लंघन है।
खनन को लेकर केंद्र सरकार की गाइडलाइन्स स्पष्ट रूप से कहती हैं कि नदी में केवल हाथों से खनन किया जा सकता है और मशीनों के उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। इसके अलावा, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी गतिविधि की अनुमति नहीं है। लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। वन विभाग और वन विकास निगम, जो इस खनन को रोकने के लिए जिम्मेदार हैं, आंख मूंदे बैठे हैं। दोनों विभागों की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि जब खनन के नियम स्पष्ट हैं, तो मशीनों का उपयोग खुलेआम कैसे हो रहा है? जब इस मामले पर ईटीवी भारत ने वन विभाग से सवाल किया, तो विभाग के अधिकारी भी इस बात को स्वीकारते नजर आए कि कोसी नदी में खनन मैनुअल तरीके से किया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।
तराई पश्चिमी वन प्रभाग के डीएफओ प्रकाश आर्या का कहना है कि मशीनों से खनन करने की कोई अनुमति भारत सरकार ने नहीं दी है। उन्होंने इस विषय पर वन निगम को कई बार पत्र भी लिखे हैं और आग्रह किया है कि कोसी नदी में केवल मैनुअल खनन कराया जाए। लेकिन वन निगम का कहना है कि इस समय मजदूरों की भारी कमी है, जिसके चलते वे खनन का कार्य सुचारू रूप से संचालित नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि, वन विभाग का कहना है कि यदि कहीं मशीनों का उपयोग होता है, तो उसे तुरंत पकड़ा जाता है और आगे भी इसी तरह की कार्रवाई जारी रहेगी।
वन विकास निगम ने भी इस मामले पर अपनी सफाई पेश करते हुए कहा कि उनकी टीम लगातार इस बात पर निगरानी रखती है कि कोसी नदी में किसी भी प्रकार से नियमों का उल्लंघन कर अवैध खनन न किया जाए। अधिकारियों का कहना है कि वे पूरी सतर्कता बरतते हैं और खनन गतिविधियों पर नियमित रूप से नजर रखते हैं। यदि कहीं से भी मशीनों के उपयोग या अवैध खनन की सूचना मिलती है, तो तुरंत कार्रवाई की जाती है। इसके बावजूद, कोसी नदी में मशीनों से खनन जारी रहने के सवाल पर अधिकारियों ने कहा कि कभी-कभी स्थानीय स्तर पर अनियमितताएं हो सकती हैं, लेकिन जैसे ही इस तरह की गतिविधियों का पता चलता है, सख्त कदम उठाए जाते हैं। वन विकास निगम ने यह भी दावा किया कि नियमों का पालन करवाने के लिए उनकी टीम पूरी तरह प्रतिबद्ध है और आवश्यक कार्रवाई करने में कोई कोताही नहीं बरती जाती।
हालांकि, एक बड़ा सवाल यह भी उठता है कि जब अवैध खनन को रोकने के लिए जिम्मेदार एजेंसियां हैं, तो फिर कोसी नदी में नियमों का उल्लंघन क्यों हो रहा है? यह साफ देखा जा सकता है कि वन विभाग और वन विकास निगम एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालने में लगे हुए हैं। वन विकास निगम के आरएम हरीश पाल का कहना है कि उनकी टीम अपने अधिकार क्षेत्र में होने वाले खनन पर पूरी नजर रखती है और नियमों के उल्लंघन पर कार्रवाई भी करती है। लेकिन सवाल यह है कि कोसी नदी के दूसरे हिस्सों में हो रहे अवैध खनन को रोकने की जिम्मेदारी किसकी है? यदि वन विभाग और वन विकास निगम दोनों ही अपनी जिम्मेदारी से बचते रहेंगे, तो खनन माफियाओं को खुली छूट मिलती रहेगी और कोसी नदी के अस्तित्व पर लगातार खतरा बना रहेगा।
इस बीच, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कोसी नदी में मशीनों से हो रहे अवैध खनन को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। उधम सिंह नगर जिले के बाजपुर में कोसी नदी में मशीनों के इस्तेमाल से हो रहे खनन को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई थी। इस मामले में 28 मार्च को हुई सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं। हाईकोर्ट ने उधम सिंह नगर एसएसपी को आदेश दिया है कि वे तुरंत उन सभी मशीनों को जब्त करें, जिनका उपयोग कोसी नदी में खनन के लिए किया जा रहा है। इसके अलावा, अवैध खनन में संलिप्त व्यक्तियों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं।
अब देखना यह होगा कि प्रशासन उत्तराखंड हाईकोर्ट के इस सख्त आदेश का कितना प्रभावी पालन करता है। क्या वास्तव में अवैध खनन पर लगाम लगाई जाएगी, या फिर यह मामला भी अन्य मामलों की तरह कागजों में सिमटकर रह जाएगा? कोसी नदी के लगातार हो रहे दोहन और पर्यावरणीय क्षति को देखते हुए, अवैध खनन पर तत्काल रोक लगाने की आवश्यकता है। यदि प्रशासन और संबंधित विभाग इस आदेश को गंभीरता से नहीं लेते, तो आने वाले समय में कोसी नदी का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है। नियमों के बावजूद खनन माफियाओं का सक्रिय रहना यह दर्शाता है कि कहीं न कहीं प्रशासनिक उदासीनता भी इस समस्या को बढ़ावा दे रही है। इसलिए, यह देखना जरूरी होगा कि क्या इस बार कोसी नदी को बचाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे, या फिर इसे भी नजरअंदाज कर दिया जाएगा।