रामनगर। कोसी नदी एक बार फिर मातम का मंजर लेकर आई, जब एक पिता ने अपने बेटे की जिंदगी के लिए अपनी सांसें दांव पर लगा दीं। यह घटना उन पलों की गवाही बन गई, जब परिवार की हंसी-ठिठोली कुछ ही क्षणों में रोते-बिलखते दृश्य में तब्दील हो गई। देघाट निवासी 45 वर्षीय खीम सिंह अपने परिवार के साथ 12 मई की दोपहर ढिकुली के पास स्थित कोसी नदी में नहाने पहुंचे थे। पानी की लहरें उन्हें आम दिनों की तरह शीतल और सुखद प्रतीत हो रही थीं, लेकिन नियति ने उस दिन कुछ और ही रच डाला था। जैसे ही खीम सिंह का बेटा नदी में उतरा, एक अनचाही हलचल ने सबका ध्यान खींचा। नदी की तेज धाराओं में मासूम का शरीर डगमगाने लगा, और वह बहाव में खिंचता चला गया। चीख-पुकार ने माहौल को झकझोर दिया, लेकिन पिता ने बिना एक पल गंवाए पानी में छलांग लगा दी।
हर तरफ लोगों की नजरें पिता और बेटे पर टिकी थीं, क्योंकि यह कोई साधारण मंजर नहीं था -यह ममता और बलिदान की पराकाष्ठा थी। खीम सिंह ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी और आखिरकार किसी तरह अपने बेटे को सुरक्षित किनारे पर ले आए। पर नियति की यही क्रूरता होती है कि वह सबसे साहसी क्षणों में भी किसी को नहीं बख्शती। बेटे की जान तो बच गई, लेकिन खीम सिंह स्वयं नदी की चपेट में आकर लहरों में समा गए। लोग सकते में थे, हर तरफ अफरा-तफरी मच गई। जैसे ही यह खबर आसपास के लोगों तक पहुंची, तुरंत रामनगर पुलिस को सूचित किया गया। लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी, क्योंकि नदी ने अपने भीतर उस पिता की परछाई छिपा ली थी, जिसने बेटे के लिए अपनी पूरी हस्ती कुर्बान कर दी।
इंसानी कोशिशें शुरू हो चुकी थीं, और जैसे ही सूचना मिली, रामनगर कोतवाल अरुण कुमार सैनी और एसडीआरएफ की टीम घटना स्थल पर तेज़ी से पहुंच गई। सभी ने मिलकर कोसी की लहरों को छान मारा, लेकिन लहरें मौन थीं, नदी ने अपने सीने में खीम सिंह को छुपा लिया था। सूर्य अस्त हो गया और अंधेरा गहराने लगा, जिसके चलते खोज अभियान को रोकना पड़ा। पर टीम ने हार नहीं मानी। अगले ही दिन 13 मई की सुबह, सूरज की पहली किरण के साथ दोबारा सर्च ऑपरेशन आरंभ हुआ। यह कोई आसान काम नहीं था, लेकिन एसडीआरएफ के जांबाज़ जवानों ने अथक परिश्रम और साहस का परिचय दिया। घंटों की कड़ी मशक्कत के बाद, आखिरकार खीम सिंह का शव नदी की गहराई से बरामद कर लिया गया। यह दृश्य हर किसी की आंखों में आंसू ले आया।
इस दर्दनाक हादसे की खबर जैसे ही आसपास के गांवों और इलाकों में फैली, माहौल एकाएक शोकमग्न हो गया। हर तरफ मातम पसरा था, और लोग इस वीर पिता की बहादुरी और बलिदान को नम आंखों से याद कर रहे थे। गांव के बुजुर्ग हों या बच्चे, हर कोई इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं था कि खीम सिंह अब इस दुनिया में नहीं रहे। एक ऐसा शख्स, जिसने अपने बेटे के लिए जिंदगी को दांव पर लगाना भी क्षणभर की देरी नहीं समझी। पुलिस ने शव को अपने कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है, लेकिन यह कागजी प्रक्रिया उस भावनात्मक सैलाब के सामने बेहद छोटी जान पड़ी जो उस समय हर आंख में उमड़ पड़ा था।
नदी ने तो बस अपने बहाव का काम किया, लेकिन उसने अपने साथ एक ऐसे पिता को भी बहा दिया जिसने जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा में अपने पुत्र के जीवन को जीत दिलाकर खुद को अर्पण कर दिया। यह हादसा न केवल उस परिवार के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए ऐसा घाव बन गया है, जो लंबे समय तक भरेगा नहीं। ऐसी घटनाएं हर उस इंसान को झकझोर देती हैं जो यह सोचता है कि परिवार के लिए वह क्या कर सकता है। लेकिन खीम सिंह ने दिखा दिया कि पिता की ममता और साहस किसी भी तूफान को चुनौती दे सकता है, भले ही वह तूफान नदी की तेज धाराओं में ही क्यों न छिपा हो।