रामनगर। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की जैव विविधता एक बार फिर चर्चा में है, लेकिन इस बार वजह बाघ या हाथी नहीं, बल्कि एक छोटे कद के शाकाहारी प्राणी हॉग डियर हैं, जिनकी गिरती संख्या ने वन विभाग की नींद उड़ा दी है। अब इन्हें लेकर गंभीर चिंता जताई जा रही है और संरक्षण के नए उपायों पर अमल शुरू हो चुका है। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हॉग डियर की वास्तविक स्थिति को समझने के लिए वन विभाग ने 24 मई तक चलने वाली गणना की शुरुआत की है। यह सिर्फ एक साधारण जनगणना नहीं, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बचाने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। इन प्रयासों के केंद्र में वही प्राणी हैं, जो एक समय इस पार्क के घास के मैदानों में सैकड़ों की संख्या में देखे जाते थे और अब गिनी-चुनी झांकियों में ही नज़र आते हैं।
अतीत की बात करें तो हॉग डियर की उपस्थिति कभी इस जंगल की पहचान हुआ करती थी, लेकिन वक्त के साथ इनकी संख्या में जो तेज़ गिरावट दर्ज की गई है, उसने सभी पर्यावरण प्रेमियों को चिंता में डाल दिया है। वर्ष 1977 में इनकी संख्या जहां 1125 थी, वहीं साल 2000 आते-आते यह आंकड़ा गिरकर 294 पर सिमट गया और 2008 तक यह सिर्फ 233 पर आ ठहरा। 2020-21 की रिपोर्ट बताती है कि अब इनकी कुल संख्या मुश्किल से 150 के करीब ही रह गई है। ये आंकड़े सिर्फ एक प्रजाति की गणना नहीं, बल्कि यह जंगल की सेहत का आईना हैं। अमित ग्वासाकोटी, जो कि कॉर्बेट के पार्क वार्डन हैं, उन्होंने खुद यह स्पष्ट किया कि यदि हॉग डियर की संख्या यूं ही घटती रही, तो इस वन्यजीव क्षेत्र का पूरा पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ सकता है।
इस जनगणना प्रक्रिया को व्यवस्थित रूप देने के लिए कॉर्बेट टाइगर रिजर्व को विभिन्न बीटों में बांटा गया है और 120 से अधिक अनुभवी वनकर्मियों को विशेष रूप से प्रशिक्षित कर इन बीटों में तैनात किया गया है। हॉग डियर आमतौर पर दलदली व घासयुक्त क्षेत्रों में रहना पसंद करते हैं, और इसलिए इस गणना के लिए ढिकाला, फुलाई और पटेल पानी जैसे क्षेत्रों को चुना गया है। यही वे इलाके हैं, जहां वर्षा ऋतु में इनकी संख्या अपेक्षाकृत अधिक पाई जाती है। लेकिन चिंता की बात यह है कि हाल के वर्षों में इन इलाकों के पारिस्थितिक परिदृश्य में व्यापक बदलाव हुए हैं, जिससे हॉग डियर के प्राकृतिक आवास पर असर पड़ा है। यही कारण है कि विभाग अब इनकी मौजूदगी और रहन-सहन के ढंग को समझकर संरक्षण की नई रणनीति पर काम कर रहा है।
सिर्फ सरकारी प्रयासों से बात पूरी नहीं होती, इसलिए इस अभियान में गैर-सरकारी संस्थाओं की भी अहम भूमिका देखने को मिल रही है। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (WWF) और कॉर्बेट फाउंडेशन ने मिलकर एक विशेष अनुसंधान परियोजना की शुरुआत की थी, जो अब भी जारी है। यह परियोजना सिर्फ संख्या गिनने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका मकसद उन सभी कारकों को चिन्हित करना भी है, जो इस गिरावट के लिए ज़िम्मेदार हैं। इनमें जलवायु परिवर्तन, मानवीय हस्तक्षेप, पर्यावास में कमी और शिकारी जीवों की गतिविधियां प्रमुख हैं। यह संयुक्त रिसर्च यह तय करेगा कि आगे किन नीतियों को अपनाकर हॉग डियर की घटती आबादी को थामा जा सकता है और कैसे जंगल की जैव विविधता को संतुलित रखा जा सकता है।
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व को विश्वभर में बाघों की सघन उपस्थिति के लिए जाना जाता है, लेकिन बाघों के साथ-साथ वहां के शाकाहारी जीवों की स्थिति भी उतनी ही अहम है। यदि शाकाहारी प्रजातियों का संतुलन बिगड़ता है, तो शिकारी प्रजातियों के लिए भोजन का संकट उत्पन्न होगा और इससे पूरे खाद्य चक्र पर प्रभाव पड़ेगा। यह स्थिति आगे चलकर मनुष्यों और वन्यजीवों के बीच टकराव को भी जन्म दे सकती है। यही वजह है कि अमित ग्वासाकोटी जैसे वरिष्ठ अधिकारी अब इस प्रजाति की रक्षा को पहली प्राथमिकता मान रहे हैं। हॉग डियर को बचाने के लिए उठाया गया यह कदम न केवल कॉर्बेट पार्क के भविष्य को सुरक्षित करेगा, बल्कि वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में एक नई मिसाल भी बनेगा।
इन तमाम पहलुओं को देखते हुए यह स्पष्ट है कि हॉग डियर अब सिर्फ एक प्राणी नहीं, बल्कि पूरे जैविक परिदृश्य के संतुलन का प्रतीक बन गया है। यदि इसे समय रहते संरक्षित नहीं किया गया, तो आने वाले वर्षों में यह प्रजाति सिर्फ पुस्तकों और संग्रहालयों तक ही सिमट सकती है। इसीलिए अब वक्त आ गया है कि हम सभी मिलकर इनके संरक्षण की आवाज़ बुलंद करें और जंगल की उस सौम्य, शांत और संतुलित छवि को फिर से जीवंत करें, जिसके लिए कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की पहचान रही है।