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कॉर्बेट में बाघों की दहाड़ को सुरक्षित रखने की सबसे बड़ी योजना तैयार

डॉ. साकेत बडोला की निगरानी में बन रही दस वर्षीय योजना बदल देगी कॉर्बेट का भविष्य, बाघों का संरक्षण और पर्यटन होगा पहले से ज़्यादा प्रभावी

रामनगर। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व एक बार फिर सुर्खियों में है, और इस बार वजह है आने वाले दस वर्षों के लिए तैयार की जा रही टाइगर कंजर्वेशन प्लानकृएक ऐसी व्यापक कार्ययोजना जो न केवल बाघों बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के भविष्य की दिशा तय करेगी। कॉर्बेट की धरती पर गूंजते बाघों की दहाड़ को बनाए रखने और उनके संरक्षण को और भी प्रभावशाली बनाने के लिए यह प्लान तैयार किया जा रहा है। बाघों की सुरक्षा, अवैध शिकार की रोकथाम, पर्यावरणीय पर्यटन का विस्तार, मानव और वन्यजीव संघर्ष की चुनौतियों से निपटने की रणनीति से लेकर स्थानीय लोगों की भागीदारी तक, इस योजना में सब कुछ बारीकी से शामिल किया जा रहा है। टाइगर कंजर्वेशन प्लान को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण, दिल्ली से हरी झंडी मिलने के बाद जमीन पर उतारा जाएगा। इस योजना को मंजूरी मिलने के बाद कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की तस्वीर ही नहीं, उसकी तकदीर भी बदल सकती है।

एक नई दिशा की ओर बढ़ते हुए, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक डॉ. साकेत बडोला ने इस आगामी कार्ययोजना के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। उनके मुताबिक, इस टाइगर कंजर्वेशन प्लान के तहत जंगल के कानून को और कड़ा किया जाएगा और संरक्षित क्षेत्रों की चौकसी को पहले से कहीं ज़्यादा मजबूत किया जाएगा। बाघों के लिए अनुकूल प्राकृतिक वातावरण बनाए रखने, पर्यटन जोनों के विस्तार की संभावनाएं तलाशने और आधुनिक बुनियादी ढांचे को विकसित करने जैसे अहम बिंदुओं को शामिल किया गया है। इस योजना में विशेष रूप से जन सहभागिता को बढ़ावा देने का भी लक्ष्य रखा गया है, जिससे स्थानीय लोग संरक्षण प्रयासों में भागीदार बन सकें। डॉ. साकेत बडोला का मानना है कि जब तक जनता इस संरक्षण के मिशन से नहीं जुड़ती, तब तक स्थायी सफलता हासिल करना आसान नहीं है। इस दस्तावेज़ में करीब 300 से 400 पृष्ठों में कॉर्बेट का पूरा इतिहास, भौगोलिक स्थिति, वनस्पति और जीव-जंतुओं की विविधता, संकटग्रस्त प्रजातियों की जानकारी और उनके संरक्षण की कार्यनीति को समेटा जाएगा।

प्राकृतिक धरोहरों के इस मंदिर में अब एक नई सोच का संचार हो रहा है। पहले तैयार किए गए टीसीपी की बात करें तो उसके परिणामस्वरूप गिरिजा और ढेला जैसे पर्यटन जोनों को खोलने की पहल की गई थी, जिसे बाद में सफलतापूर्वक लागू भी किया गया। इससे साफ है कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में तैयार की गई योजनाएं सिर्फ कागज़ी नहीं होतीं, बल्कि धरातल पर भी उतारी जाती हैं। यही उम्मीद इस नए प्लान से भी की जा रही है कि यह कॉर्बेट को वैश्विक बाघ संरक्षण मानचित्र पर और अधिक मजबूती देगा। इसके तहत बाघों और अन्य संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए विशेष तौर पर संरचना आधारित संरक्षण नीति तैयार की जाएगी, जो समय के साथ चरणबद्ध तरीके से कार्यान्वित होगी। यह योजना न केवल बाघों की संख्या को बढ़ाने में मददगार होगी, बल्कि इको-टूरिज्म के ज़रिए स्थानीय स्तर पर रोज़गार के नए द्वार भी खोलेगी।

रिजर्व में हो रहे इस क्रांतिकारी बदलाव के बीच रामनगर वन प्रभाग की भी चर्चा जरूरी है, जिसने हाल ही में पर्यटन से रिकॉर्ड तोड़ कमाई दर्ज की है। वर्ष 2024-25 में इस क्षेत्र ने 5 करोड़ 23 लाख 61 हजार 169 रुपये का राजस्व अर्जित किया है, जो पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 50 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोत्तरी को दर्शाता है। यह साबित करता है कि उत्तराखंड के जंगल अब केवल वन्यजीवों की शरणस्थली ही नहीं, बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं। पर्यटकों का आकर्षण केवल बाघों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि हरियाली से ढके रास्ते, जंगल की शांति, पक्षियों की चहचहाहट और प्रशिक्षित गाइड्स द्वारा संचालित इको-फ्रेंडली सफारी अनुभव ने इस सफलता में बड़ी भूमिका निभाई है। रामनगर वन प्रभाग ने पर्यावरण-संवेदनशील पर्यटन को बढ़ावा देकर यह सिद्ध कर दिया है कि विकास और संरक्षण एक साथ चल सकते हैं।

वहीं जब बात करें रामनगर वन प्रभाग के योगदान की, तो डीएफओ दिगंत नायक की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। उन्होंने बताया कि इस बार न केवल व्यवस्थाएं बेहतर की गईं, बल्कि गाइड्स की विशेष ट्रेनिंग, टिकटिंग व्यवस्था में पारदर्शिता और सफाई के उच्च मानकों को अपनाया गया। इससे पर्यटकों को एक नया अनुभव मिला, जिससे उनकी संतुष्टि और लौटने की संभावना दोनों बढ़ गईं। वर्ष 2023-24 की तुलना में इस बार पर्यटकों की संख्या में उल्लेखनीय इजाफा हुआ है-पिछले साल जहां 2 लाख 42 हजार 204 पर्यटक आए थे, वहीं इस साल यह आंकड़ा बढ़कर 4 लाख 8 हजार 808 पहुंच गया है। यह बढ़ोतरी अपने आप में दर्शाती है कि जंगल की ओर लोगों का रुझान तेजी से बढ़ रहा है, और इसका सीधा लाभ वन प्रभाग की आमदनी और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मिल रहा है।

इसी क्रम में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से जुड़े पर्यटन कारोबारियों की भी उम्मीदें आसमान छू रही हैं। उन्हें विश्वास है कि प्रस्तावित टाइगर कंजर्वेशन प्लान से न केवल मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में कमी आएगी, बल्कि यह स्थानीय लोगों को बेहतर जीवन जीने का मौका भी देगा। पर्यटन के क्षेत्र में नए अवसर खुलेंगे, जिससे कॉर्बेट क्षेत्र के युवाओं को रोजगार और स्वरोजगार के बेहतर विकल्प मिल सकेंगे। योजना के अंतर्गत वास स्थल और घास के मैदानों में सुधार, जल स्रोतों के संरक्षण और जैव विविधता को बनाए रखने के लिए विशेष योजनाएं चलाई जाएंगी। यही नहीं, जंगल में रहने वाले शाकाहारी जीवों के लिए अनुकूल घास के मैदान विकसित किए जाएंगे ताकि शिकारी प्रजातियों को स्थायी शिकार उपलब्ध हो और पारिस्थितिकी तंत्र संतुलित बना रहे।

आने वाले वर्षों में जब यह योजना पूर्ण रूप से अमल में लाई जाएगी, तब कॉर्बेट की छवि केवल एक पर्यटन स्थल की नहीं, बल्कि वैश्विक बाघ संरक्षण का आदर्श केंद्र बनने की ओर अग्रसर होगी। यह योजना बाघों की दहाड़ को सदियों तक संरक्षित रखने की एक कोशिश है, जिसमें सरकार, वन विभाग, स्थानीय समुदाय और पर्यटक सभी की भागीदारी आवश्यक होगी। उत्तराखंड की इस धरती पर वन्यजीवन और पर्यटन के बीच संतुलन कायम रखना अब एक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक कर्तव्य बन गया है। कॉर्बेट और रामनगर की यह साझा यात्रा इस दिशा में एक मजबूत कदम साबित हो रही है, और उम्मीद है कि आने वाले समय में यह मॉडल पूरे देश के लिए उदाहरण बनेगा।

अगर ये बदलाव इसी गति से जारी रहे, तो वह दिन दूर नहीं जब कॉर्बेट टाइगर रिजर्व न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में वन्यजीवों की रक्षा और संवर्धन का सबसे सफल उदाहरण बनेगा।

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