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कॉर्बेट में ढिकाला और दुर्गा देवी जोन चार महीने के लिए बंद, बरसात में थमेगा रोमांच

बरसात में रोमांच पर विराम, जंगल को सांस लेने का मौका—अब सिर्फ चुनिंदा जोनों में ही मिलेगा कॉर्बेट का प्राकृतिक सौंदर्य देखने का अवसर।

रामनगर। मानसून की दस्तक के साथ ही उत्तराखंड के रामनगर स्थित प्रसिद्ध कॉर्बेट नेशनल पार्क का सबसे लोकप्रिय और रोमांचक हिस्सा — ढिकाला जोन — आज से पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया है। हर साल की तरह इस बार भी 15 जून से यह क्षेत्र बंद कर दिया गया है और अब 14 नवंबर तक यहां किसी भी सैलानी की एंट्री मुमकिन नहीं होगी। टाइगर टूरिज्म के केंद्र माने जाने वाले इस जोन में हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं, लेकिन बरसात के दौरान इसे बंद करना न केवल नियम है, बल्कि बेहद जरूरी भी। यहां की भौगोलिक स्थिति — नदी, पहाड़ और घने जंगल — मानसून में इसे बेहद संवेदनशील बना देती है। भारी वर्षा के चलते रास्ते कीचड़ से लथपथ हो जाते हैं, जिससे सफारी न केवल मुश्किल बल्कि जानलेवा बन सकती है। यही वजह है कि इस दौरान ढिकाला में नाइट स्टे और कैंटर सफारी दोनों ही बंद कर दिए जाते हैं, ताकि सैलानियों और वन्यजीवों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

ढिकाला जोन की ख्याति केवल कॉर्बेट ही नहीं, बल्कि पूरे देश के सबसे अधिक पसंद किए जाने वाले वन्य पर्यटन स्थलों में होती है। यहां बाघों की आमद की संभावना अधिक रहती है, इसलिए यह क्षेत्र टाइगर लवर्स के लिए किसी सपने जैसा है। लेकिन हर साल की तरह इस बार भी जंगल की प्रकृति को विश्राम देने और मरम्मत कार्यों को अंजाम देने के लिए इसे अस्थायी रूप से बंद किया गया है। वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि बारिश का मौसम जानवरों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस दौरान वे अपनी प्राकृतिक आवास व्यवस्था को बेहतर ढंग से अपना सकते हैं। ऐसे में पर्यटकों की आवाजाही रोकी जाती है ताकि न सिर्फ जानवरों को राहत मिल सके, बल्कि जंगल की मिट्टी, पौधों और जल स्रोतों को भी पुनः सजीव होने का समय मिल सके।

सिर्फ ढिकाला ही नहीं, बल्कि एक और प्रमुख क्षेत्र दुर्गा देवी जोन को भी 15 जून से आगामी चार महीनों के लिए बंद कर दिया गया है। यह जोन भी उन इलाकों में से एक है जहां बरसात के दिनों में सड़कों की हालत बेहद खराब हो जाती है और सफारी करना खतरे से खाली नहीं होता। दुर्गा देवी जोन पहाड़ों और खड्डों से घिरा है, जहां अचानक जल स्तर बढ़ने से वाहन फंसने या बह जाने की भी घटनाएं पहले सामने आ चुकी हैं। वन विभाग की सख्त निगरानी में इसे समय से पहले बंद कर देना पर्यटकों की सुरक्षा के लिहाज से एक अहम फैसला माना जा रहा है। इसके साथ ही वन्यजीवों को भी मानसून में शांति से विचरण करने का अवसर मिलता है, जो जंगल की जैविक संरचना को संतुलन में बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

हालांकि बिजरानी जोन, जो कॉर्बेट का दूसरा सबसे चर्चित पर्यटक स्थल माना जाता है, अभी 30 जून तक खुला रहेगा। लेकिन यहां भी मौसम के बिगड़ते मिज़ाज को देखते हुए कभी भी अस्थायी रूप से प्रवेश बंद किया जा सकता है। वहीं, झिरना, ढेला और गार्जिया जैसे जोन ऐसे क्षेत्र हैं जो सालभर खुले रहते हैं। लेकिन इन इलाकों में भी बारिश के चलते कभी-कभी सैर स्थगित करनी पड़ती है, खासकर जब पानी का स्तर अचानक बढ़ जाए या कोई मार्ग बाधित हो जाए। ऐसे में पर्यटकों को सलाह दी जा रही है कि वे अपनी यात्रा की योजना बनाने से पहले कॉर्बेट नेशनल पार्क की आधिकारिक वेबसाइट पर मौसम और मार्ग की स्थिति की जानकारी अवश्य प्राप्त कर लें।

कॉर्बेट की असली खूबसूरती सिर्फ बाघों में नहीं छिपी है, बल्कि वह उस समृद्ध और जीवंत जैव विविधता में है, जो पूरे वन क्षेत्र को सांस लेने का मौका देती है। वर्षा ऋतु जंगल के लिए नई ऊर्जा लेकर आती है और यह समय होता है जब प्रकृति अपनी रचनात्मकता को फिर से गढ़ती है। ऐसे में जरूरी है कि पर्यटक न केवल सुरक्षा नियमों का पालन करें, बल्कि प्रकृति की इस विशिष्टता को समझते हुए जंगल को उसका स्पेस दें। जो पर्यटक इन दिनों कॉर्बेट घूमने का मन बना रहे हैं, उनके लिए सलाह है कि वे झिरना या ढेला जैसे वैकल्पिक जोनों की बुकिंग पर ध्यान केंद्रित करें और हर हाल में प्रशासन के निर्देशों का पालन करें।

बरसात का मौसम जंगल के लिए सिर्फ पानी लेकर नहीं आता, बल्कि यह पूरे वन्य जीवन के लिए एक नए जीवन का आरंभ होता है। यह वह समय होता है जब हर पत्ती, हर कोंपल, हर पेड़ और हर जीव नई ऊर्जा के साथ सांस लेना शुरू करता है। प्रकृति अपने सबसे सुंदर रूप में खिल उठती है और जंगल एक बार फिर जीवंत हो उठता है। ऐसे में यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी बनती है कि हम इस प्राकृतिक चक्र का सम्मान करें और इसका आनंद उठाते हुए भी इसके संतुलन को न बिगाड़ें। कॉर्बेट नेशनल पार्क की असली पहचान केवल बाघों में नहीं, बल्कि उस जीवंत हरियाली, शांत वातावरण और अद्भुत जैव विविधता में छिपी है जिसे हमें न केवल सराहना चाहिए, बल्कि उसे संजोकर रखने की जिम्मेदारी भी निभानी चाहिए। प्रकृति का संरक्षण हमारा कर्तव्य है, न कि सिर्फ सरकार या वन विभाग का।

कॉर्बेट नेशनल पार्क के फील्ड डायरेक्टर डॉ. साकेत दडोला ने ‘सहर प्रजातंत्र’ से विशेष बातचीत में बताया कि मानसून के आगमन के साथ ही ढिकाला और दुर्गा देवी जैसे संवेदनशील जोनों को पर्यटकों की आवाजाही से अस्थायी रूप से विराम देना बेहद आवश्यक हो जाता है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय केवल प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि वन्यजीवों और पर्यटकों दोनों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लिया जाता है। बरसात के मौसम में इन क्षेत्रों में रास्ते कीचड़ से भर जाते हैं, जिससे सफारी न केवल कठिन, बल्कि खतरनाक भी हो सकती है। साथ ही, यह समय वन्यजीवों के स्वाभाविक आवागमन और प्रजनन के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि पार्क प्रबंधन हमेशा यह सुनिश्चित करता है कि प्रकृति को उसका स्पेस मिले और साथ ही पर्यटकों को सुरक्षित, नियंत्रित और संवेदनशील अनुभव भी दिया जा सके। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे बरसात के मौसम में जारी गाइडलाइनों का पूरी तरह पालन करें।










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