रामनगर। खूबसूरत वादियों में बसी उत्तराखंड की शान जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क एक बार फिर सुर्खियों में है। यह खबर उन सभी पर्यटकों के लिए उमंग से भरी हुई है जो जंगल की खामोशियों में रोमांच तलाशते हैं। लंबे समय से ठप पड़ी हाथी सफारी को फिर से शुरू करने की संभावनाएं अब बलवती हो गई हैं और यह नई शुरुआत यहां आने वाले सैलानियों को प्रकृति के और भी करीब ले जाएगी। लगभग सात वर्षों तक बंद रहने के बाद एक बार फिर जंगल की गोद में हाथी की पीठ पर बैठकर घने जंगलों की सैर करने का सपना पूरा होने को है। जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अब पर्यटकों को न सिर्फ जैव विविधता का शानदार अनुभव मिलेगा बल्कि जंगल के खामोश सौंदर्य को भी बेहद करीब से महसूस करने का अवसर मिलेगा, जो अब तक केवल कल्पना में था।
पर्यावरण और वन्यजीवों से जुड़ी खबरों में इन दिनों सबसे बड़ी चर्चा का विषय बनी इस बहुप्रतीक्षित योजना को लेकर वन विभाग में भी हलचल तेज हो गई है। उत्तराखंड के चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन रंजन मिश्रा के अनुसार यदि कानूनी प्रक्रिया सही दिशा में आगे बढ़ती रही तो जल्द ही सैलानी एक बार फिर कॉर्बेट नेशनल पार्क में हाथी की पीठ पर बैठकर जंगल की सैर कर सकेंगे। उनके मुताबिक हाथी सफारी न केवल पर्यटकों के लिए एक यादगार अनुभव है बल्कि यह जंगल के शांत वातावरण को बिना किसी खलल के महसूस करने का बेहतरीन जरिया भी है। विशेष रूप से बच्चे और बुजुर्ग इस तरह की सवारी को सबसे ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि इसमें रोमांच के साथ-साथ सुरक्षा का भी खास ध्यान रखा जाता है। सफारी के दौरान हाथी की धीमी और स्थिर चाल पर्यटकों को उन स्थानों तक ले जाती है जहां आमतौर पर जिप्सी सफारी नहीं पहुंच पाती।
गौर किया जाए तो वर्ष 2018 में उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के प्रावधानों का हवाला देते हुए हाथियों के व्यावसायिक उपयोग पर सख्त रोक लगा दी गई थी। उस फैसले के बाद कॉर्बेट पार्क में हाथियों की सवारी पूरी तरह प्रतिबंधित हो गई थी, जिससे न केवल पर्यटकों को निराशा हुई बल्कि स्थानीय महावतों और हाथी पालकों के सामने भी आजीविका का संकट उत्पन्न हो गया था। हालाँकि इस आदेश को वन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे दिए जाने के बाद यह उम्मीद फिर से जग गई है कि बहुत जल्द हाथी सफारी को लेकर जंगलों में हलचल देखने को मिलेगी।
इस घटनाक्रम के बाद से इलाके में एक नई ऊर्जा महसूस की जा रही है। सिर्फ पर्यटक ही नहीं बल्कि कॉर्बेट क्षेत्र के आस-पास रहने वाले स्थानीय निवासी, महावत, वन्यजीव प्रेमी और पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोग भी इस निर्णय से बेहद उत्साहित हैं। सालों से जो महावत अपने हाथियों के जरिए न केवल जंगल का मार्ग दिखाते थे बल्कि सैलानियों को अनमोल अनुभव भी प्रदान करते थे, उनके जीवन में अब फिर से उम्मीदों का उजाला लौट आया है। यह फैसला उनके लिए जीवन में फिर से स्थिरता लाने वाला साबित हो सकता है क्योंकि हाथी सफारी के दोबारा संचालन से उनका पारंपरिक हुनर फिर से जीवित होगा और उन्हें नियमित रोजगार मिलने की संभावना भी बढ़ जाएगी।
उधर वन्यजीव विशेषज्ञों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने भी इस संभावित फैसले का सकारात्मक दृष्टिकोण से स्वागत किया है। उनका कहना है कि अगर हाथी सफारी को पशु कल्याण के मानकों का पालन करते हुए नियंत्रित तरीके से संचालित किया जाए तो यह वन्यजीव पर्यटन के क्षेत्र में एक आदर्श उदाहरण बन सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, हाथियों की देखभाल और उनके संरक्षण की जिम्मेदारी को सफारी संचालन के साथ जोड़ना एक प्रभावशाली मॉडल साबित हो सकता है। इससे न केवल पर्यटकों को लाभ मिलेगा बल्कि हाथियों के स्वास्थ्य और जीवनशैली में भी सुधार आएगा। ऐसी पहलें यदि पारदर्शिता और जिम्मेदारी के साथ लागू की जाएं तो यह मानव और वन्यजीवों के बीच सामंजस्य का नया अध्याय बन सकती हैं।
रंजन मिश्रा ने आगे बताया कि विभाग द्वारा हाथी सफारी के संचालन को लेकर एक विस्तृत रणनीति पर कार्य किया जा रहा है। इसमें विशेष रूप से इस बात पर जोर रहेगा कि किसी भी स्थिति में हाथियों के साथ क्रूरता न हो और उनकी सेहत को सर्वाेपरि रखा जाए। सफारी के लिए नए दिशा-निर्देश तैयार किए जा रहे हैं जिनमें हाथियों की नियमित स्वास्थ्य जांच, प्रतिदिन सफारी की समयसीमा, पर्यटकों की सीमित संख्या जैसी कई महत्वपूर्ण बातों का समावेश किया जाएगा। यह सभी उपाय सुनिश्चित करेंगे कि हाथी सफारी पर्यटकों के लिए रोमांचक और हाथियों के लिए सुरक्षित साबित हो। उत्तराखंड का यह प्रयास यदि सफल होता है तो यह देश के अन्य वन्यजीव अभयारण्यों के लिए भी एक प्रेरणा बन सकता है।