रामनगर। एक बार फिर उत्तराखंड की राजनीतिक और प्रशासनिक फिज़ाओं में गर्माहट का दौर लौट आया है, और इस बार वजह बनी है कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हुई वह कथित बर्बादी, जिसने न सिर्फ जंगल के सीने को छलनी कर दिया बल्कि सत्ता और सिस्टम की साँझ को भी पूरी नंगई से उजागर कर दिया। सालों से गुपचुप तरीके से जारी अवैध निर्माण और पेड़ों की बेरहम कटाई के इस प्रकरण में अब सीबीआई ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए एक के बाद एक अहम कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। जांच एजेंसी की सक्रियता ने देहरादून के सचिवालय से लेकर दिल्ली की अदालतों तक हलचल पैदा कर दी है। हफ्ते भर के भीतर दो बार सचिवालय की चौखट लांघ चुकी सीबीआई अब सिर्फ फाइलें पलटने में नहीं, बल्कि उन अफसरों और नेताओं की गर्दनों तक पहुंचने को तैयार दिख रही है, जिनकी कलम ने इस अपराध की पटकथा लिखी थी।
इस पूरे घटनाक्रम को देखकर यह तो साफ हो गया है कि जांच की गति अब अपने निर्णायक मोड़ पर है। सीबीआई ने अपनी गहन छानबीन के बाद न केवल इस केस की रिपोर्ट अदालत में सौंप दी है, बल्कि अब वह शासन से अभियोजन की अनुमति मांगकर स्पष्ट कर चुकी है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। उल्लेखनीय है कि सीबीआई पहले ही शासन के कुछ महत्वपूर्ण अधिकारियों, जिनमें डिप्टी सेक्रेटरी और प्रमुख सचिव वन शामिल हैं, से मुलाकात कर रिपोर्ट प्रस्तुत कर चुकी है। ख़ास बात यह है कि रिपोर्ट सिर्फ कागज़ी कार्रवाई भर नहीं, बल्कि उन सबूतों का पुलिंदा है जो आरोपियों की गर्दन तक पहुंचने के लिए काफी हैं। इस मुलाकात ने सचिवालय में कानाफूसी का दौर शुरू कर दिया है, और अब हर किसी की निगाहें इस बात पर टिक गई हैं कि आगे सीबीआई किसे निशाना बनाती है और कौन-कौन इसकी चार्जशीट में दर्ज होता है।

अंदरखाने की हलचलों पर नज़र डालें तो यह बात किसी से छिपी नहीं रही है कि इस मामले में सीबीआई ने पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत से भी सख्ती के साथ पूछताछ की थी। उनसे जुड़े निर्णय, आदेश और फ़ाइलों की गहराई से पड़ताल की गई और कई बार शासन और वन विभाग के मुख्यालयों पर दस्तावेजों की पड़ताल के लिए छापे जैसी कार्रवाइयाँ भी हुईं। धीरे-धीरे कड़ी दर कड़ी खुलती गई और अब जाकर जांच एजेंसी ने इतना ठोस डेटा इकट्ठा कर लिया है कि मामला अदालत की सीढ़ियाँ चढ़ने को तैयार है। ऐसे में इस बात की पूरी आशंका है कि जल्द ही हरक सिंह रावत समेत कई अधिकारी कानून के शिकंजे में आएंगे। सूत्र बताते हैं कि कम से कम चार अधिकारियों के नाम इस रिपोर्ट में प्रमुख रूप से दर्ज हैं और उनके खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति के लिए शासन पर दबाव बनाया जा रहा है। जिस अंदाज़ में सीबीआई ने अपनी रणनीति बनाई है, उससे साफ है कि यह सिर्फ एक फॉर्मेलिटी नहीं, बल्कि एक सुनियोजित सर्जिकल स्ट्राइक है, जो जल्द ही कई चौंकाने वाले खुलासों के साथ सामने आएगी।
अगर हम इस पूरे कांड की पृष्ठभूमि पर एक नज़र डालें, तो पता चलता है कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में जो हुआ, वह न सिर्फ कानून की धज्जियां उड़ाने का मामला था, बल्कि प्रकृति के साथ एक क्रूर मज़ाक भी था। जिन पेड़ों के लिए अनुमति दी गई थी, उससे कहीं ज्यादा पेड़ों को जड़ से उखाड़ दिया गया और जिन निर्माण कार्यों के लिए अंतिम मंजूरी नहीं मिली थी, उन्हें अंजाम तक पहुंचा दिया गया। यह सब कुछ “पर्यटन को बढ़ावा देने” या “बाघ अभयारण्य की स्थापना” जैसे आकर्षक और दिखावटी नारों की आड़ में किया गया। यह बहाना बनाकर एक पूरे जंगल को छिन्न-भिन्न कर दिया गया, और इसका लाभ उठाया गया कुछ विशेष नेताओं और अधिकारियों के गठजोड़ द्वारा। इस पूरे मामले ने देशभर में हंगामा मचा दिया था और सुप्रीम कोर्ट तक इस पर संज्ञान लिया गया, जिससे यह साफ हो गया था कि अब यह महज़ राज्य की सीमा तक सीमित नहीं रहा।
न्यायपालिका की सख़्ती ने इस मामले को और भी गंभीर बना दिया था जब पिछले साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस पर तल्ख टिप्पणी करते हुए नेताओं और नौकरशाहों की मिलीभगत को सार्वजनिक विश्वास के साथ धोखा बताया था। न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खंडपीठ ने हरक सिंह रावत और तत्कालीन डीएफओ किशन चंद की कार्यप्रणाली पर गहरा आश्चर्य जताया था, जिन्होंने “पर्यावरण संरक्षण” की आड़ में “व्यक्तिगत और व्यावसायिक लाभ” को प्राथमिकता दी। अदालत ने यह भी कहा कि जिस तरह इन दोनों ने वैधानिक प्रावधानों की खुलेआम अनदेखी की, वह एक ‘उदाहरणात्मक भ्रष्टाचार’ की मिसाल है। पीठ ने यह भी उल्लेख किया कि जब तक हरक सिंह रावत ने मंत्री पद नहीं छोड़ा, तब तक किशन चंद को निलंबित तक नहीं किया गया, जो इस गठजोड़ की गहराई को दर्शाता है। ऐसे में जब उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई को जांच जारी रखने का निर्देश दिया, तो यह स्पष्ट संकेत था कि अब इस प्रकरण का राजनीतिक समाधान संभव नहीं, केवल कानूनी ही विकल्प शेष है।
इस बीच उत्तराखंड के प्रमुख वन सचिव आरके सुधांशु ने भी सीबीआई अधिकारियों से मुलाकात की पुष्टि कर दी है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि अब सीबीआई की कार्रवाई सिर्फ पूर्ववर्ती प्रशासन तक सीमित नहीं रहने वाली, बल्कि वर्तमान शासन की भूमिका और प्रतिक्रिया भी जांच के दायरे में आ सकती है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि आने वाले दिनों में जैसे-जैसे सीबीआई की रिपोर्ट आगे बढ़ेगी, उत्तराखंड के राजनीतिक गलियारों में भूचाल आ सकता है। यह मामला सिर्फ पर्यावरण या कानून का नहीं, बल्कि उस जनविश्वास का भी है जिसे जनता ने अपने प्रतिनिधियों और अधिकारियों को सौंपा था। अब जब वही विश्वास तार-तार हुआ है, तो उसका हिसाब देना भी ज़रूरी है। और सीबीआई ने जैसे मोर्चा संभाला है, उससे उम्मीद बंधी है कि अपराधियों को उनके अंजाम तक पहुंचाना अब महज़ समय की बात रह गई है।