काशीपुर। महानगर में उस वक्त गहमागहमी का माहौल पैदा हो गया जब भारतीय किसान यूनियन (युवा) ने कुसुम योजना में भारी घोटाले का आरोप लगाते हुए सैकड़ों किसानों के साथ ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन किया। किसानों का गुस्सा उस वक्त फूट पड़ा जब उन्हें यह जानकारी मिली कि जिस सोलर पैनल को उन्हें 4 लाख 28 हजार रुपये में उपलब्ध कराया जा रहा है, वही उपकरण बाहर की कंपनियों से केवल 1 लाख 60 हजार रुपये में बेहतरीन गुणवत्ता के साथ मिल रहा है। यह मूल्य अंतर इतना अधिक है कि किसानों ने इसे साफ-साफ लूट की श्रेणी में गिना और सरकार से इसकी तुरंत सीबीआई जांच की मांग कर दी। भारतीय किसान यूनियन (युवा) के प्रदेश अध्यक्ष जितेंद्र सिंह जीतू के नेतृत्व में किसानों ने काशीपुर ब्लॉक कार्यालय पर डेरा डालकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और चेतावनी दी कि यदि इस घोटाले का सच उजागर नहीं किया गया तो पूरे प्रदेश में एक व्यापक आंदोलन खड़ा कर दिया जाएगा।
इस योजना को लेकर सबसे बड़ा सवाल यही उठाया गया कि अगर सरकार किसानों को लाभ देने की बात करती है, तो फिर एक सोलर पैनल की कीमत आम बाजार में 1.60 लाख रुपये और सरकारी योजना में वही पैनल 4.28 लाख में क्यों? जितेंद्र सिंह जीतू ने अपनी बात को साफ शब्दों में रखते हुए कहा कि यह अंतर महज़ तकनीकी सुविधा या गारंटी का नहीं है, बल्कि इसमें बिचौलियों, ठेकेदारों और अधिकारियों की मिलीभगत का परिणाम नजर आता है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से सवाल किया कि आखिर यह किस तरह की किसान हितैषी योजना है, जिसमें किसान को ही लूटा जा रहा है? उन्होंने कहा कि सच्चाई सामने लाने का एकमात्र रास्ता सीबीआई या एसआईटी जैसी निष्पक्ष एजेंसी से जांच कराना है ताकि जनता के पैसे को लूटने वालों को बेनकाब किया जा सके।
किसानों का यह भी कहना है कि योजनाएं बनाना आसान है, लेकिन उनका सही क्रियान्वयन ही असल चुनौती है। आज जब किसान पहले से ही महंगाई, खराब फसल, कर्ज और मौसम की मार से परेशान हैं, तो ऐसे में सरकार द्वारा उनकी मदद करने की बजाय उन्हें उलझन में डालना और ठगे जाना बेहद निंदनीय है। किसान नेताओं का आरोप है कि योजना के नाम पर किसानों के साथ व्यापारिक खेल खेला जा रहा है और इसमें बड़ी कंपनियों को फायदा पहुंचाने की साजिश रची जा रही है। अगर यह सबकुछ बिना मिलीभगत के हो रहा है तो फिर जवाब कौन देगा कि किसानों की जेब से तीन गुना ज्यादा पैसा किसके पास पहुंच रहा है?
इस पूरे मामले में सरकार की ओर से सफाई देने सामने आए लघु सिंचाई विभाग के सहायक अभियंता मदन मोहन शर्मा, जिन्होंने योजना का बचाव करते हुए कहा कि सोलर पैनल की जो कीमत तय की गई है, वह उसकी तकनीकी विशेषताओं, लंबी गारंटी और बीमा जैसी सेवाओं को ध्यान में रखकर निर्धारित की गई है। उनके मुताबिक, किसानों को जो पैनल दिए जा रहे हैं, वे उच्च गुणवत्ता वाले हैं और इनमें 25 साल की गारंटी, 5 साल की सेवा वारंटी और बीमा सुरक्षा भी दी जा रही है, जो बाजार के सामान्य पैनलों में नहीं होती। साथ ही सरकार 80ः तक सब्सिडी देकर किसानों को राहत पहुंचा रही है। उन्होंने अपील की कि किसान किसी प्रकार के भ्रम में न आएं और सरकार की योजनाओं पर भरोसा बनाए रखें।
किसानों ने लघु सिंचाई विभाग द्वारा दी गई सफाई को पूरी तरह खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि केवल गारंटी और बीमा जैसी सुविधाओं को आधार बनाकर सोलर पैनलों की कीमत में लाखों रुपये के अंतर को जायज नहीं ठहराया जा सकता। किसानों का तर्क है कि अगर इन सेवाओं की लागत वास्तव में इतनी अधिक है, तो सरकार को इसका पूरा और स्पष्ट ब्यौरा सार्वजनिक करना चाहिए, ताकि सभी को पता चले कि उनकी मेहनत की कमाई का पैसा कहां और किस उद्देश्य के लिए खर्च हो रहा है। वे कहते हैं कि पारदर्शिता और जिम्मेदारी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए, क्योंकि बिना स्पष्ट जानकारी के यह बड़ा मुद्दा किसानों के विश्वास को कमजोर करता है। किसान इस बात पर भी जोर दे रहे हैं कि अगर योजना में कोई गड़बड़ी नहीं है तो सरकार जांच से क्यों डर रही है, और इससे बचना उसकी ईमानदारी पर सवाल उठाता है।
इस प्रदर्शन में जिला अध्यक्ष उदित शर्मा, मनप्रीत सिंह, विवेक नागपाल, सरफराज आलम, रणवीर सिंह, हैप्पी, जितेंद्र (जेपी) और सुनील कुमार सहित सैकड़ों किसान शामिल हुए। सभी ने मिलकर सरकार को स्पष्ट संदेश दिया कि यदि किसानों के साथ चल रहे इस बड़े धोखे को तुरंत बंद नहीं किया गया तो पूरे उत्तराखंड में किसानों का आक्रोश एक भयंकर आंदोलन में बदल जाएगा। किसानों का यह विरोध सिर्फ कुसुम योजना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और ईमानदारी की मांग का हिस्सा है। उन्होंने चेतावनी दी कि जब तक भ्रष्टाचार और गड़बड़ी पर कठोर कार्रवाई नहीं होती, तब तक वे अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे। किसानों की यह आवाज़ सरकार के लिए एक गंभीर चुनौती है, जो प्रशासनिक स्तर पर गहन सुधार की आवश्यकता को उजागर करती है।
किसानों ने तीखा आरोप लगाते हुए कहा कि सरकारें केवल भाषण और वादों तक सीमित रह गई हैं, जबकि वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग है। उनकी मानें तो योजनाएं ज़मीन पर पहुंचते-पहुंचते भ्रष्टाचार की परतों में लिपट जाती हैं, जिससे किसानों को कोई वास्तविक लाभ नहीं मिल पा रहा है। उनके मुताबिक, अब समय आ गया है जब सरकार को अपनी कथित किसान हितैषी योजनाओं की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच करानी चाहिए ताकि सच्चाई सामने आ सके और दोषियों को सजा मिल सके। किसान नेताओं का कहना था कि अगर अब भी सरकार ने आंखें मूंदे रखीं और वास्तविक हालात को नजरअंदाज किया तो वे चुप नहीं बैठेंगे। उन्होंने चेतावनी दी कि जब किसान सड़कों पर उतरता है तो शासन-प्रशासन की नींव तक हिल जाती है, और इस बार यह आंदोलन पूरे उत्तराखंड को झकझोरने की ताकत रखता है।