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काशीपुर की सड़कों से गूंजेगा ननकाना साहिब, अंबेडकर और कैलाश गहतौड़ी का जयघोष

महापौर दीपक बाली ने सीएम पुष्कर सिंह धामी से काशीपुर की सड़कों को ऐतिहासिक, धार्मिक और राजनैतिक महापुरुषों के नाम पर समर्पित करने की माँग की।

काशीपुर। ज़र्रे-ज़र्रे में बसे काशीपुर के नागरिकों की आस्था और गर्व की भावना को नई ऊँचाई देने के लिए महापौर दीपक बाली ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से एक ऐसा निवेदन किया है, जो केवल सड़कें नहीं बल्कि श्रद्धा, सम्मान और प्रेरणा के प्रतीक बन जाएंगे। महापौर बाली ने मुख्यमंत्री को भेजे अपने पत्र में यह भावपूर्ण आग्रह किया है कि काशीपुर की तीन प्रमुख सड़कों को तीन महान विभूतियों – गुरुद्वारा श्री ननकाना साहिब, भारत रत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर और उत्तराखंड की राजनीति में श्रद्धा और सेवा के पर्याय स्वर्गीय कैलाश चंद्र गहतोडी के नाम पर समर्पित कर दिया जाए।

बाली ने लिखा है कि स्टेडियम मोड़ से मानपुर रोड होते हुए नागनाथ मंदिर और फिर जसपुर रोड तक जाने वाली सड़क को “गुरुद्वारा श्री ननकाना साहिब मार्ग” घोषित किया जाए। इसी प्रकार चैती चौराहे से शुगर मिल तक जाने वाले मार्ग को “भारत रत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर मार्ग” तथा चीमा चौराहे से कुंडेश्वरी की ओर बढ़ते मार्ग को “स्वर्गीय कैलाश चंद्र गहतोडी मार्ग” का नाम दिया जाए। इस मांग को सिख संगत, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जन्मोत्सव समारोह समिति, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर स्मारक ट्रस्ट, गिरीताल क्षेत्र की जनता और संबंधित पार्षदों ने लगातार उठाया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि जनता की सामूहिक चेतना और श्रद्धा का जीवंत स्वरूप है।

वहीं, इस पत्र के माध्यम से महापौर दीपक बाली ने यह भी रेखांकित किया है कि इन नामों की घोषणा मात्र एक सांकेतिक निर्णय नहीं होगी, बल्कि यह काशीपुर के ऐतिहासिक, धार्मिक और राजनैतिक गौरव को जीवंत करने वाला अध्याय होगा। उन्होंने लिखा है कि जिस प्रकार “गुरुद्वारा श्री ननकाना साहिब” सिख समुदाय की पवित्र आस्था का केंद्र है, उसी तरह “भारत रत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर” सामाजिक समता, न्याय और संविधान के स्थापक के रूप में प्रत्येक भारतीय के हृदय में पूज्य हैं।

महापौर दीपक बाली ने अपने पत्र में उल्लेख किया कि स्वर्गीय कैलाश चंद्र गहतोडी जैसा व्यक्तित्व उत्तराखण्ड की पहचान और आत्मसम्मान का प्रतीक रहे हैं। उनका सम्पूर्ण जीवन सेवा, समर्पण और जनकल्याण को समर्पित रहा, जिसे हर नागरिक ने न केवल महसूस किया बल्कि अपना आदर्श भी माना। ऐसे महापुरुष के नाम पर सड़क का नामकरण केवल श्रद्धांजलि नहीं होगा, बल्कि यह समाज को यह संदेश भी देगा कि उत्तराखंड की राजनीति में आज भी त्याग, संस्कार और सनातनी चेतना जीवित है। इससे जनता की आस्था और सनातनी परंपराओं में विश्वास और अधिक सुदृढ़ होगा। यह पहल उनके महान कार्यों को युगों तक स्मरणीय बनाएगी और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देने वाली मिसाल के रूप में स्थापित होगी।

महापौर बाली के प्रयास केवल आज की पीढ़ी के लिए नहीं, बल्कि आने वाले युगों के लिए एक प्रेरणा बन रहे हैं। यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने काशीपुर की जनता की भावनाओं को आवाज दी हो। 18 अप्रैल को उन्होंने देहरादून जाकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से उनके आवास पर भेंट कर व्यक्तिगत रूप से विकास और सांस्कृतिक चेतना से जुड़े महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की थी। उस दिन महापौर ने काशीपुर के मोहल्ला काजीबाग का नाम बदलकर “रामबाग”, थाना साबिक को “वासुदेव नगर”, लक्ष्मीपुर पट्टी को “सूर्यसैन नगर”, सरवरखेड़ा को “लक्ष्मण नगर”, बाबरखेड़ा को “हरी नगर” करने का अनुरोध किया था।

इसके अतिरिक्त, बाजपुर रोड स्थित चैती चौराहे को “मां बाल सुंदरी देवी चौक”, टांडा तिराहा को “चौधरी चरण सिंह चौक”, मंडी तिराहा को “भगवान महावीर चौक”, रामनगर बाजपुर रोड बाईपास को “भगवान चित्रगुप्त मार्ग”, चीमा चौराहा को “महाराजा अग्रसेन चौक” और जसपुर रोड स्थित चैती तिराहे को “भगवान परशुराम चौक” के नाम पर समर्पित करने की मांग की थी। यह सारी पहल दर्शाती है कि महापौर न केवल विकास कार्यों में बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण और क्षेत्रीय गौरव को पुनर्स्थापित करने में भी पूरी निष्ठा से संलग्न हैं।

इस पत्र और प्रस्तावना के माध्यम से महापौर दीपक बाली ने प्रदेश सरकार को यह स्पष्ट संदेश दिया है कि जनता की आकांक्षाएं केवल विकास कार्यों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे अपने गौरवशाली अतीत और पूज्य महापुरुषों के प्रति सम्मान की भावना को भी सड़कों, चौराहों और नगर के नामों में देखने को आतुर हैं। यह भावना केवल काशीपुर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक सांस्कृतिक लहर है जो उत्तराखंड की अस्मिता और आध्यात्मिक विरासत को फिर से परिभाषित कर रही है। इस मांग को पूरा कर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी यदि अपनी स्वीकृति प्रदान करते हैं, तो निश्चित ही यह निर्णय ना केवल जनता की भावनाओं का सम्मान होगा बल्कि प्रदेश के सांस्कृतिक गौरव का एक नवीन अध्याय भी होगा। यह युगों तक याद रखा जाने वाला निर्णय होगा जो सनातन संस्कृति, सामाजिक न्याय और राजनीतिक त्याग की त्रिवेणी को एक ही नगर की सीमाओं में जीवंत कर देगा।

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