काशीपुर। उत्तराखंड सरकार द्वारा प्रस्तावित ऑनलाइन वर्चुअल रजिस्ट्री प्रणाली को लेकर काशीपुर बार एसोसिएशन ने कड़ा विरोध दर्ज कराया है। अधिवक्ताओं का मानना है कि इस नई व्यवस्था से कानूनी पेशे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, और हजारों लोगों की आजीविका खतरे में आ जाएगी। अधिवक्ताओं, स्टांप विक्रेताओं, अरायज नवीस एवं दस्तावेज लेखकों की महत्वपूर्ण भूमिका लंबे समय से रजिस्ट्री प्रक्रिया में रही है, लेकिन नई ऑनलाइन प्रणाली उनकी जरूरत को समाप्त कर सकती है। इससे न केवल उनकी आय में गिरावट आएगी, बल्कि इस क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं भी सिकुड़ जाएंगी। काशीपुर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अवधेश कुमार चौबे (एडवोकेट) और सचिव नृपेन्द्र कुमार चौधरी (एडवोकेट) ने सरकार से अपील की है कि वे इस प्रणाली को लागू करने से पहले अधिवक्ताओं और संबंधित हितधारकों के सुझावों पर विचार करें।
तकनीकी एवं कानूनी जटिलताओं को देखते हुए अधिवक्ताओं ने साइबर सुरक्षा से जुड़े खतरों पर भी चिंता जताई है। डिजिटल हस्ताक्षर, ई-स्टांपिंग और ऑनलाइन डेटा हैकिंग जैसी घटनाओं के बढ़ते मामलों के बीच, वर्चुअल रजिस्ट्रेशन प्रणाली से संपत्ति दस्तावेजों की प्रमाणिकता पर संदेह पैदा हो सकता है। अधिवक्ताओं का कहना है कि ऑफलाइन प्रणाली में सरकारी अधिकारियों द्वारा दस्तावेजों की गहन जांच की जाती है, जिससे धोखाधड़ी की संभावनाएं कम होती हैं। लेकिन ऑनलाइन प्रणाली में ऐसे किसी भी भौतिक सत्यापन की व्यवस्था नहीं है, जिससे फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से संपत्ति हड़पने की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
वर्तमान में कई सरकारी वेबसाइटें, जैसे कि भूलेख उत्तराखंड और ई-रजिस्ट्रेशन, साइबर अपराधियों द्वारा हैक की जा चुकी हैं, जिससे कई दिनों तक नामांतरण और रजिस्ट्रेशन का कार्य प्रभावित रहा है। अधिवक्ताओं का कहना है कि जब तक साइबर सुरक्षा को पुख्ता नहीं किया जाता, तब तक इस तरह की ऑनलाइन प्रणाली लागू करना न्यायसंगत नहीं होगा। ऑनलाइन प्रणाली में व्यक्तिगत एवं संवेदनशील डेटा के लीक होने का भी खतरा बढ़ जाएगा, जिससे पक्षकारों को कानूनी और आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।
इसके अलावा, ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के लोगों के लिए यह प्रणाली मुश्किलें खड़ी कर सकती है। इंटरनेट और तकनीकी सुविधाओं की कमी के चलते, इन क्षेत्रों के लोगों को ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को समझने में दिक्कतें होंगी, जिससे साइबर ठगी के मामले बढ़ सकते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए जालसाज फर्जी पहचान और दस्तावेजों का उपयोग कर सकते हैं, जिससे एक ही संपत्ति की कई बार रजिस्ट्री होने जैसी घटनाएं सामने आ सकती हैं। इससे मालिकाना हक को लेकर कई विवाद खड़े हो सकते हैं, जो न्यायपालिका और प्रशासन के लिए नई चुनौतियां पैदा करेंगे।
अधिवक्ताओं ने सरकार से अनुरोध किया है कि ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को लागू करने से पहले इसके कानूनी और तकनीकी पहलुओं पर विस्तृत अध्ययन किया जाए। उनका कहना है कि किसी भी नई प्रणाली को लागू करने से पहले अधिवक्ताओं, दस्तावेज लेखकों, स्टांप विक्रेताओं और अन्य संबंधित पेशेवरों के हितों की सुरक्षा के लिए ठोस नियम बनाए जाएं। काशीपुर बार एसोसिएशन ने सुझाव दिया है कि ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के दौरान अधिवक्ता द्वारा कानूनी सत्यापन को अनिवार्य किया जाए, जिससे कानूनी विवादों की संभावना को कम किया जा सके। साथ ही, अधिवक्ताओं और दस्तावेज लेखकों को एक अनिवार्य पंजीकरण संख्या प्रदान की जाए, जिसे प्रत्येक रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया में दर्ज करना आवश्यक हो।
अधिवक्ताओं का मानना है कि सरकार की यह पहल कानूनी पेशे से जुड़े हजारों लोगों के लिए संकट का कारण बन सकती है। इससे न केवल वकील प्रभावित होंगे, बल्कि उनके साथ काम करने वाले टाइपिस्ट, मुंशी, स्टांप विक्रेता और अन्य कर्मचारी भी बेरोजगारी की चपेट में आ जाएंगे। इसलिए, सरकार को चाहिए कि वह इस निर्णय पर पुनर्विचार करे और पारंपरिक एवं डिजिटल प्रणाली का संतुलित समावेश करके ऐसा समाधान निकाले, जो सभी हितधारकों के लिए हितकारी हो।
अध्यक्ष अवधेश कुमार चौबे (एडवोकेट) ने उत्तराखंड सरकार द्वारा प्रस्तावित ऑनलाइन वर्चुअल रजिस्ट्री के खिलाफ कड़ा विरोध जताते हुए कहा कि यह प्रणाली न केवल अधिवक्ताओं, स्टांप विक्रेताओं, दस्तावेज लेखकों और अरायज नवीस की आजीविका पर सीधा प्रहार करेगी, बल्कि आम जनता के लिए भी कानूनी जटिलताएं बढ़ाएगी। उन्होंने कहा कि परंपरागत प्रणाली में अधिवक्ताओं की भूमिका संपत्ति दस्तावेजों की प्रमाणिकता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण होती है, लेकिन ऑनलाइन प्रक्रिया में यह नियंत्रण समाप्त हो जाएगा, जिससे फर्जी रजिस्ट्रियों और धोखाधड़ी के मामले बढ़ सकते हैं। उन्होंने साइबर अपराधों की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताते हुए कहा कि हाल ही में कई सरकारी वेबसाइटें हैक हो चुकी हैं, जिससे जनता और अधिवक्ताओं को भारी नुकसान झेलना पड़ा। उन्होंने सरकार से मांग की कि यदि ऑनलाइन वर्चुअल रजिस्ट्री लागू करनी है तो उसमें अधिवक्ताओं की अनिवार्य भागीदारी सुनिश्चित की जाए और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए उचित प्रावधान किए जाएं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार इस पर विचार नहीं करती है तो अधिवक्ता संघ बड़े स्तर पर आंदोलन करने के लिए मजबूर होगा।
सचिव नृपेन्द्र कुमार चौधरी (एडवोकेट) ने उत्तराखंड सरकार की ऑनलाइन वर्चुअल रजिस्ट्री प्रणाली पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि यह फैसला न केवल अधिवक्ताओं की आजीविका पर गहरा असर डालेगा, बल्कि आम जनता के लिए भी कई गंभीर समस्याएं पैदा करेगा। उन्होंने कहा कि परंपरागत रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया में अधिवक्ता, स्टांप विक्रेता और दस्तावेज लेखक कानूनी सत्यापन की अहम जिम्मेदारी निभाते हैं, जिससे फर्जीवाड़े की संभावनाएं कम हो जाती हैं। लेकिन ऑनलाइन प्रणाली में इस सत्यापन की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है, जिससे फर्जी रजिस्ट्री और साइबर ठगी के मामले बढ़ सकते हैं। उन्होंने चिंता जताई कि ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में तकनीकी संसाधनों की कमी के चलते आम नागरिक इस प्रक्रिया को आसानी से नहीं अपना पाएंगे, जिससे वे ठगी का शिकार हो सकते हैं। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि बिना ठोस तैयारी और अधिवक्ताओं की भागीदारी सुनिश्चित किए बिना इस प्रणाली को लागू न किया जाए। यदि सरकार ने इस मांग को अनदेखा किया, तो अधिवक्ता समाज व्यापक आंदोलन करने के लिए बाध्य होगा।
इस विरोध सभा में काशीपुर बार एसोसिएशन के कई वरिष्ठ एवं युवा अधिवक्ता उपस्थित रहे, जिन्होंने एकजुट होकर ऑनलाइन वर्चुअल रजिस्ट्री के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। अधिवक्ताओं में एडवोकेट विजय चौहान, सतपाल बाल, पवन कुमार, उस्मान मलिक, राजेंद्र सैनी, नीरज चौहान, प्रभु जोत कलर, संजय भारद्वाज, सुधीर चौहान, मोहम्मद नूर, अर्पित कुमार, संतोष श्रीवास्तव, यमन सिद्दीकी, मोहम्मद अशरफ सिद्दीकी और अक्षय नायक सहित कई अन्य अधिवक्ताओं ने इस मुद्दे पर गहरी आपत्ति जताई। सभी ने एक स्वर में कहा कि यह निर्णय अधिवक्ताओं, स्टांप विक्रेताओं और दस्तावेज लेखकों की आजीविका को बुरी तरह प्रभावित करेगा। अधिवक्ताओं ने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया तो वह बड़े स्तर पर आंदोलन करने के लिए मजबूर होंगे।