रामनगर। उत्तराखंड की राजनीति में बड़ा उलटफेर देखने को मिल रहा है। प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे के बाद सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई है। अचानक हुए इस घटनाक्रम ने पूरे राज्य में राजनीतिक चर्चाओं को नई दिशा दे दी है। पहले से ही धामी कैबिनेट में कुछ महत्वपूर्ण पद खाली थे, और अब प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे के साथ ही धामी सरकार और भी कमजोर होती दिखाई दे रही है।
धामी मंत्रिमंडल में पहले ही तीन सीटें लंबे समय से रिक्त थीं, जिससे सरकार पर दबाव बना हुआ था। साल 2023 में कैबिनेट मंत्री चंदन रामदास के निधन के बाद एक और सीट खाली हो गई थी। अब जब प्रेमचंद अग्रवाल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, तो धामी कैबिनेट में कुल पांच सीटें खाली हो चुकी हैं। इस नई स्थिति ने सरकार को मुश्किल में डाल दिया है और साथ ही, कैबिनेट विस्तार को लेकर अटकलों को फिर से हवा दे दी है।
होली से पहले ही धामी कैबिनेट के विस्तार को लेकर चर्चाएं जोरों पर थीं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खुद इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए दिल्ली गए थे, जिससे यह साफ हो गया था कि जल्द ही कुछ बड़े फैसले लिए जा सकते हैं। इस बीच, उत्तराखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट भी पहले से ही दिल्ली में मौजूद हैं। ऐसे में, यह कयास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व जल्द ही कोई ठोस निर्णय ले सकता है। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि राज्य की परिस्थितियों पर एक विस्तृत रिपोर्ट दिल्ली हाईकमान को भेजी जा चुकी है। अब अंतिम निर्णय पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के हाथ में है, जो किसी भी समय बड़ा ऐलान कर सकता है।
उत्तराखंड की राजनीति में इस समय काफी अस्थिरता बनी हुई है, और विपक्ष भी इस स्थिति को लेकर सरकार पर निशाना साधने से पीछे नहीं हट रहा है। विपक्ष का कहना है कि सरकार लंबे समय से अधूरी कैबिनेट के साथ काम कर रही है, जिससे राज्य के विकास कार्यों में बाधा आ रही है। वहीं, बीजेपी खेमे में भी यह बहस छिड़ी हुई है कि नए मंत्रियों की नियुक्ति कब होगी और कौन-कौन नए चेहरे कैबिनेट में जगह बना सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे के बाद धामी सरकार को अपनी रणनीति फिर से तय करनी होगी। यह तय है कि कैबिनेट विस्तार अब ज्यादा दिन तक टल नहीं सकता, क्योंकि सरकार को स्थायित्व प्रदान करने और प्रशासनिक कामकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए यह आवश्यक हो गया है। बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व पर अब यह जिम्मेदारी है कि वह सही समय पर सही फैसला ले और उत्तराखंड की राजनीति में स्थिरता लाने का प्रयास करे।
अब सभी की निगाहें दिल्ली हाईकमान पर टिकी हुई हैं, क्योंकि कैबिनेट विस्तार को लेकर अंतिम निर्णय वहीं से लिया जाएगा। राज्य में पांच मंत्री पद खाली होने की वजह से यह भी संभव है कि पार्टी कुछ नए चेहरों को आगे लाने का प्रयास करे। हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि धामी मंत्रिमंडल में किन नेताओं को मौका मिलता है और किस तरह की सियासी समीकरण बनते हैं।
वर्तमान परिदृश्य में, राजनीतिक माहौल पूरी तरह गरमाया हुआ है और सभी दल इस स्थिति का अपने-अपने तरीके से विश्लेषण कर रहे हैं। जनता भी सरकार के अगले कदम को लेकर उत्सुक है और उम्मीद कर रही है कि जल्द ही एक मजबूत और प्रभावी कैबिनेट तैयार होगी, जिससे राज्य के विकास कार्यों को गति मिलेगी।