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उत्तराखंड में राष्ट्रीय खेलों की वित्तीय संकट, उधारी का समाधान तलाशने में विफल सरकार

खेल विभाग की बढ़ती उधारी और वित्तीय संघर्ष ने सरकार को मुश्किल में डाल दिया, राज्य के बजट में आई भारी कमी से हल नहीं निकल पाया।

देहरादून। उत्तराखंड में 38वें राष्ट्रीय खेलों के आयोजन के बाद, राज्य सरकार को एक बड़ी वित्तीय चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। खेल विभाग के लिए यह चुनौती तब और गंभीर हो गई जब उन्हें उम्मीद थी कि अन्य विभागों के बचे हुए बजट से कुछ राहत मिल सकेगी, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया है। खेल विभाग के विशेष सचिव अमित सिन्हा ने बचे हुए बजट की मांग की थी, ताकि राष्ट्रीय खेलों के आयोजन के दौरान हुए खर्च का बकाया चुकता किया जा सके, लेकिन इसके बावजूद बजट की व्यवस्था में कोई खास सफलता नहीं मिली। स्थिति अब यह बन गई है कि खेल विभाग के पास राष्ट्रीय खेलों के लिए निर्धारित बजट से अधिक खर्च हो चुका है, और वित्त विभाग से इस खर्च को लेकर मंजूरी मिलने की स्थिति अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाई है।

जैसे ही राष्ट्रीय खेलों का आयोजन खत्म हुआ, खेल विभाग के सामने एक बड़ा सिरदर्द खड़ा हो गया। यह बजट की कमी नहीं, बल्कि खर्च के संदर्भ में एक गंभीर स्थिति बन चुकी है। अनुमान था कि राष्ट्रीय खेलों के आयोजन के बाद विभिन्न विभागों के बचे हुए बजट से खेल विभाग को कुछ राहत मिलेगी, जिससे वह अपनी उधारी का समाधान निकाल सकेगा। लेकिन खेल विभाग की इस मांग को पूरा करने में अन्य विभागों से कोई विशेष सहयोग नहीं मिल सका। अब दो महीने से भी ज्यादा समय बीत चुका है, लेकिन राष्ट्रीय खेलों के आयोजन से जुड़ी उधारी का हल नहीं निकला है। इस स्थिति ने न केवल खेल विभाग को, बल्कि वित्त विभाग को भी एक जटिल समस्या में डाल दिया है।

राष्ट्रीय खेलों के आयोजन के दौरान खर्चों का आंकड़ा करीब 450 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका था, जबकि खेल विभाग को केवल 250 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया था। इस भारी अंतर के बावजूद यह सवाल उठ रहा है कि क्या खेल विभाग ने निर्धारित बजट से अधिक खर्च करने के लिए वित्त विभाग से मंजूरी ली थी या नहीं? यह मामला अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है, और खेल विभाग को इन खर्चों की वजह से परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। मार्च महीने में विशेष सचिव खेल अमित सिन्हा ने विभिन्न विभागों से बचे हुए बजट की जानकारी मांगी थी, ताकि उधारी चुकता की जा सके, लेकिन इस प्रयास में भी कोई सफलता हाथ नहीं लगी।

यह स्थिति अब तक बनी हुई है कि राज्य सरकार के पास राष्ट्रीय खेलों के आयोजन के लिए आवश्यक धन की व्यवस्था नहीं हो पाई है। हालांकि वित्त विभाग ने इस वित्तीय वर्ष में 100 करोड़ रुपये का बजट फिर से रखा है, लेकिन इसके बावजूद खेल विभाग के बकाए 200 करोड़ रुपये की देनदारी पूरी नहीं हो पाई है। इस मामले में ईटीवी भारत ने वित्त सचिव दिलीप जावलकर से बातचीत की, तो उन्होंने कहा कि इस मामले में लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन कई कारणों से खेल विभाग को अन्य विभागों के बचे हुए बजट से राहत नहीं मिल पाई है। इस बारे में आगे की प्रक्रिया अभी भी जारी है, और इसके लिए सभी संबंधित विभागों के बीच समन्वय की आवश्यकता है।

खेल विभाग का यह प्रयास राज्य सरकार के लिए एक गंभीर वित्तीय चुनौती का संकेत है। जो बजट पहले निर्धारित किया गया था, वह राष्ट्रीय खेलों के आयोजन के लिए अपर्याप्त साबित हुआ, और इसका असर अब राज्य के वित्तीय संसाधनों पर पड़ रहा है। स्थिति को देखते हुए खेल विभाग के पास कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं कि आगे किस तरह से यह समस्या हल हो पाएगी। खेल विभाग को इसके लिए अन्य विभागों के सहयोग की जरूरत है, लेकिन अब तक यह सहयोग प्राप्त नहीं हो सका है। आने वाले दिनों में इस स्थिति का समाधान निकलता है या नहीं, यह देखना दिलचस्प होगा।

वित्त विभाग के पास भी अब इस बात का जवाब नहीं है कि क्या राष्ट्रीय खेलों के लिए निर्धारित बजट में कुछ और रकम जोड़ने का कोई प्रयास किया जाएगा। वर्तमान स्थिति यह है कि राज्य सरकार के पास निर्धारित बजट से कहीं अधिक खर्च हो चुका है, और इस खर्च को लेकर कोई स्पष्ट मंजूरी प्राप्त नहीं हुई है। यही नहीं, खेल विभाग की उधारी को चुकता करने के लिए अन्य विभागों से बचे हुए बजट की मांग भी अब तक पूरी नहीं हो पाई है। इसलिए अब यह सवाल उठता है कि आखिरकार राष्ट्रीय खेलों की भारी लागत को राज्य सरकार कैसे मैनेज करेगी, और यह उधारी कब तक चुकती है।

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