रामनगर(एस पी न्यूज़)। उत्तराखंड में बाघों और इंसानों के बीच बढ़ते संघर्ष ने हर किसी को चौंका दिया है, और यह किसी भी नए घटनाक्रम से ज्यादा गंभीर मामला बन चुका है। खासकर जब से सर्दी का मौसम आया है, इस संघर्ष ने और भी विकराल रूप ले लिया है। जंगलों में बाघों का आक्रमक व्यवहार और इंसान के जंगलों पर बढ़ते निर्भरता का मिलाजुला असर, इन दोनों के बीच झड़पों का कारण बन रहा है। रामनगर क्षेत्र, जो कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के पास स्थित है, में इस तरह की घटनाओं ने पहले ही स्थानीय लोगों में डर और घबराहट पैदा कर दी है। यहां पिछले कुछ दिनों में तीन लोगों की जान जा चुकी है, और यह आंकड़ा हर साल बढ़ता जा रहा है। पिछले सात दिनों में बाघ ने तीन अलग-अलग जगहों पर हमला किया और तीन मासूमों की जिंदगी छीन ली। यह त्रासदी एक गंभीर चेतावनी है कि बाघों के हमलों में लगातार वृद्धि हो रही है, और हर वर्ष यह आंकड़ा खतरनाक रूप से बढ़ता जा रहा है।

नैनीताल जिले के अंदर, विशेष रूप से रामनगर क्षेत्र में, इन हमलों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। पिछले 25 वर्षों में इस जिले में 50 से अधिक लोग बाघों के हमलों का शिकार हो चुके हैं, जिनमें से कई महिलाएं और युवा शामिल हैं। इन हमलों में महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है, जो यह संकेत देता है कि बाघों की प्राकृतिक आदतें और उनकी प्रवृत्तियां इंसानों के लिए घातक हो रही हैं। कुछ हालिया घटनाओं में, वर्ष 2023 में भी कई हमलों का शिकार लोग बने थे। उदाहरण के लिए, कालागढ़ में एक वनकर्मी को बाघ ने अपना शिकार बनाया, जबकि तराई पश्चिमी वन क्षेत्र में कई और लोगों को भी बाघों के हमले का सामना करना पड़ा। 2024 में बाघों ने लगातार 3 महिलाओं और दो पुरुषों की जान ली है, और यह सिलसिला अब भी जारी है। इस प्रकार की घटनाओं ने पूरे क्षेत्र को दहशत में डाल दिया है और यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिरकार इन हमलों के पीछे असली कारण क्या है।
इस संघर्ष को लेकर वन्यजीव प्रेमियों की भी चिंता बढ़ गई है। संजय छिम्वाल, जो एक प्रमुख वन्यजीव प्रेमी हैं, उनका मानना है कि सरकार को इस मुद्दे पर गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है। वे कहते हैं कि सर्दियों में बाघों की सक्रियता बढ़ जाती है, क्योंकि यह उनका समागम समय होता है। यही कारण है कि बाघों का प्रवास बढ़ जाता है और वे इंसानी इलाकों तक पहुंचने लगते हैं। इसके अलावा, इंसान भी सर्दियों में जंगलों पर ज्यादा निर्भर हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें लकड़ी और घास की आवश्यकता होती है। इस कारण से बाघों के साथ संघर्ष की घटनाएं बढ़ जाती हैं। संजय छिम्वाल का यह भी कहना है कि जंगलों में इंसानी हस्तक्षेप को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। वे मानते हैं कि बाघों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर, उनके लिए अलग से कॉरिडोर बनाने की जरूरत है, ताकि इंसान और बाघों के बीच टकराव की स्थिति कम हो सके। इन उपायों से जंगल और इंसानों के बीच संतुलन बना रह सकता है और संघर्ष की घटनाओं में कमी आ सकती है।

वन्यजीव प्रेमी और फोटोग्राफर दीप रजवार का मानना है कि बाघों का व्यवहार भी इस संघर्ष में अहम भूमिका निभा रहा है। वे बताते हैं कि बाघों की रंगों के प्रति संवेदनशीलता नहीं होती, जिसका कारण है उनका कलर ब्लाइंड होना। जब इंसान जंगल में लकड़ी या घास इकट्ठा करने जाता है, तो उनका शरीर बाघ के शिकार की मुद्रा जैसी दिखता है। यही वजह है कि बाघ इंसानों को अपने शिकार के रूप में पहचानते हैं और उन पर हमला कर देते हैं। दीप रजवार का यह भी कहना है कि बाघों के इस हमलावादी व्यवहार को समझने के लिए और भी अध्ययन करने की आवश्यकता है। इस बीच, इमरान खान, जो एक अन्य वन्यजीव प्रेमी हैं, का कहना है कि बाघों के हमलों के बढ़ने के पीछे केवल इंसानी हस्तक्षेप ही नहीं, बल्कि गाड़ियों का शोर और ध्वनि प्रदूषण भी एक कारण हो सकता है। पहाड़ी क्षेत्रों में जहां पहले कभी ट्रैफिक नहीं होता था, अब वहां ट्रैफिक की भारी भीड़ हो गई है। गाड़ियों का शोर और ट्रैफिक की वजह से बाघों के प्राकृतिक आवास में खलल पड़ता है, और वे इंसान के करीब आ जाते हैं। ऐसे में बाघों के हमलों में बढ़ोतरी हो रही है।
वन विभाग ने बाघों और इंसानों के बीच बढ़ते संघर्ष को कम करने के लिए ठोस कदम उठाने की योजना बनाई है। डीएफओ रामनगर, दिगंत नायक के अनुसार, सर्दियों में इंसान की जंगलों पर बढ़ती निर्भरता के कारण बाघों और इंसानों के बीच संघर्ष और बढ़ जाता है। बाघों के आक्रामक होने का यह समय होता है, और लोग लकड़ी, घास, चारा आदि के लिए जंगलों में जाते हैं, जिससे बाघों के साथ संघर्ष की घटनाएं बढ़ जाती हैं। इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए वन विभाग एक रोडमैप तैयार कर रहा है, जिसमें शॉर्ट टर्म उपायों पर जोर दिया जाएगा। इसके तहत, वन विभाग पुलिस और स्थानीय ग्रामीणों के साथ बैठक करेगा, ताकि लोगों को एक महीने तक जंगलों में न जाने की सलाह दी जा सके। इस दौरान, ईंधन के लिए लकड़ी की आपूर्ति को सब्सिडी दर पर किया जाएगा, जिससे लोग जंगलों में जाने से बच सकें। इसके अलावा, गांवों में चारा पत्ती और लकड़ी का इंतजाम किया जाएगा, ताकि ग्रामीणों को जंगलों पर निर्भर होने की आवश्यकता कम हो। इन उपायों से वन विभाग का लक्ष्य संघर्ष की घटनाओं को घटाना और जंगलों में इंसान और वन्यजीवों के बीच बेहतर संतुलन स्थापित करना है।

नए साल 2025 में बाघों के हमले की पहली घटना 8 जनवरी को सामने आई, जब एक महिला जंगल से लौटते समय लापता हो गई। उसकी लाश के टुकड़े मिलने के बाद यह अंदाजा लगाया गया कि उसे बाघ ने मार डाला। इसके बाद, एक अन्य घटना 38 वर्षीय प्रेम के साथ हुई, जिसे बिजरानी रेंज में बाघ ने मार डाला। तीसरी घटना रामनगर के देचौरी रेंज से आई, जहां एक बुजुर्ग व्यक्ति भुवन चंद्र बेलवाल को बाघ ने हमला कर दिया और उसकी जान ले ली। कुल मिलाकर, तीन दिनों के भीतर तीन लोगों की जान चली गई, जो इस संघर्ष की गंभीरता को और भी उजागर करता है।