देहरादून। उत्तराखंड सरकार ने उच्च हिमालय क्षेत्र में निहित जियोथर्मल स्प्रिंग्स से ऊर्जा निष्कर्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। बुधवार को पुष्कर सिंह धामी मंत्रिमंडल ने प्रदेश की पहली उत्तराखंड जियोथर्मल एनर्जी पॉलिसी 2025 को मंजूरी प्रदान की। इस आशय का एमओयू पिछले 17 जनवरी 2025 को आइसलैंड की वर्किस कंपनी के साथ हस्ताक्षरित किया गया था। जियोथर्मल एनर्जी के संतुलित विकास को बढ़ावा देने का यह प्रयास बेहद महत्वाकांक्षी है। राजनीतिक और तकनीकी दृष्टिकोण से यह पहल न सिर्फ ऊर्जा संकट को कम करने में कारगर साबित होगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण, जल उपचार, स्वास्थ्य एवं सामुदायिक उन्नति जैसी विविध उद्देश्यों को भी साकार करेगी। मंत्रिमंडलीय मंजूरी ने इस दिशा में राज्य को एक पारदर्शी, वैज्ञानिक एवं तकनीकी आधार पर ऊर्जा नीति की ओर अग्रसर किया है।
प्रदेश में ऊर्जा सुरक्षा को सुदृढ़ करने का यह महान अवसर राज्य सरकार की ऊर्जा विविधता नीति का एक अहम हिस्सा बन गया है। हाइड्रो पावर, सोलर एनर्जी के साथ-साथ अब जियोथर्मल एनर्जी को भी प्राथमिकता दी गई है। अध्ययन में यह पाया गया है कि राज्य के उच्च हिमालयी हिस्सों में कम से कम 40 जियोथर्मल स्प्रिंग्स मौजूद हैं, जिनमें बड़ी क्षमता है। इस नीति में इन सभी संसाधनों की पहचान, उनका वैज्ञानिक मूल्यांकन एवं क्षमता निर्धारण शामिल है। इसका उद्देश्य इन प्राकृतिक संसाधनों को केवल स्थलाकृतिक आकर्षण तक सीमित न रखना, बल्कि उन्हें ऊर्जा उत्पादन, जल उपचार, कूलिंग तकनीक और लोक-लाभकारी कार्यों में भी शामिल करना है। यदि ऐसे प्रयास सफल होते हैं, तो राज्य मंडलों में ऊर्जा आधारित विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।
इस नीति में वैज्ञानिक अनुसंधान को स्पष्ट रूप से मुख्य स्थान दिया गया है। इसके अंतर्गत प्रदेश में जियोथर्मल एक्सप्लोरेशन के लिए एक त्-क् सेंटर का गठन किया जाएगा, जो संसाधन आंकलन से लेकर व्यवहार्यता अध्ययन, मूल्यांकन एवं सुधार के सभी चरणों का समुचित अध्ययन करेगा। कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में ऊर्जा विभाग, न्त्म्क्। (उत्तराखंड रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी) और न्श्रटछ की भूमिका सुनिश्चित की गई है। यह तीनों मिलकर योजना-आवंटन, वैधानिक मंजूरियों, तकनीकी सहायता एवं नीति सुधार जैसे कार्य करेंगे। इसके साथ ही निजी या सार्वजनिक कंपनियों को लुभावने वित्तीय और कानूनी प्रोत्साहन दिए जाएंगे, जिससे बड़े पैमाने पर तकनीकी निवेश की संभावनाएं भी बढ़ेंगी।

इस पॉलिसी में भूमि उपयोग, अवधि, वित्त पोषण एवं अनुमति प्रक्रियाओं के स्पष्ट निर्देश जोड़े गए हैं। जियोथर्मल परियोजनाओं को 30 वर्षों के लिए भूमि मार्गाधिकार प्रदान किया जाएगा, वहीं सरकारी दरों पर पट्टे पर भूमि उपलब्ध कराई जा सकेगी। ताकि निजी और सार्वजनिक कंपनियां इसमें निवेश कर सकें। परियोजना आरंभ करने के लिए डेवलपर्स को पहले ‘एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट’ प्रस्तुत करना होगा। शोध निर्यात एवं परियोजना प्रारूप के रूप में एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (क्च्त्) भी अनिवार्य होगी, जिसे डेवलपर को एक वर्ष में प्रस्तुत करना होगा। सर्वेक्षण और प्रारंभिक जांच के लिए 50ः तक वित्तीय सहायता, स्थानीय क्षेत्र विकास निधि और रॉयल्टी-मुक्त बिजली की व्यवस्था जैसे लाभ दिए गए हैं। साथ ही, ‘सिंगल विंडो सिस्टम’ के तहत आठ सप्ताह के भीतर सभी अनुमोदन निर्गमित किए जाने का प्रावधान भी किया गया है।
नियमों का उल्लंघन होने पर स्पष्ट जुर्माना, परियोजना निरस्तीकरण और अनिवार्य निरीक्षण की व्यवस्था भी इस नीति में की गई है। नियत समय-सीमा (चार वर्षों में शुरुआती चरण शुरू करना), 10वें, 15वें, 20वें और परियोजना समाप्ति वर्षों में अनिवार्य गतिविधि निरीक्षण, यूईआरसी से ऊर्जा खरीद की व्यवस्था और राज्य-प्रशासन द्वारा विवाद समाधान की गारंटीकृइन सभी प्रावधानों से यह नीति पूरी तरह कानूनी, वित्तीय और प्रशासनिक दृष्टि से मजबूत होती दिख रही है। साथ ही, अनियंत्रित विवादों से भी मुकाबला किया जा सकता है, क्योंकि नीति में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा निर्देशित नीति दिशानिर्देश अंतिम होंगे।
इस नई पहल से उत्तराखंड में न केवल ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता आएगी, बल्कि रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। जियोथर्मल ऊर्जा के आरंभिक पहलुओं जैसे शोध, भूमि विकास, उपकरण निर्माण, संचालन व रखरखाव में स्थानीय श्रमिकों को प्रशिक्षण और रोजगार मिलेगा। साथ ही, कटिबद्ध निवेश से तकनीकी दक्षता भी प्रदेश स्तर पर विकसित होगी। पर्यावरणीय दृष्टि से ग्रीन एनर्जी का यह विकल्प हिमालयी पारिस्थितिकी समेत समूची प्राकृतिक व्यवस्था के दीर्घकालिक संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम है। यदि इस नीति को सही दिशा में लागू किया गया तो उत्तराखंड भारत में ही नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया में भी जियोथर्मल ऊर्जा के क्षेत्र में नेतृत्व की ओर अग्रसर होगा।