रामनगर(एस पी न्यूज़)। उत्तराखंड के जंगलों की स्थिति को लेकर जो आंकड़े सामने आ रहे हैं, वे वाकई में चिंताजनक हैं। हाल ही में जारी की गई भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 में प्रदेश की वन स्थितियों को लेकर गंभीर सवाल उठे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, जंगलों में लगने वाली आग के मामले में उत्तराखंड पहले स्थान पर आ गया है, जबकि इससे पहले यह राज्य 13वें स्थान पर था। यह स्थिति बताती है कि राज्य में वन संरक्षण और संवर्धन की योजनाओं को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। यही कारण है कि वन विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठ रहे हैं। वनों की सुरक्षा के लिए बनाए जाने वाले कार्ययोजनाओं को लागू करने में लगातार लापरवाही देखने को मिल रही है। उत्तराखंड वन विभाग के कार्यों की बात करें तो वनों के संरक्षण की सबसे महत्वपूर्ण योजना वर्किंग प्लान होती है। यह योजना भविष्य में जंगलों की दशा और दिशा तय करती है। इसके अंतर्गत मिट्टी की गुणवत्ता, कार्बन स्तर, नमी और अन्य पर्यावरणीय पहलुओं का विस्तृत अध्ययन किया जाता है। इस प्लान को तैयार करने के लिए फील्ड सर्वे और डाटा एनालिसिस जैसे महत्वपूर्ण कार्य किए जाते हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि विभाग के अधिकारी और कर्मचारी इस योजना के क्रियान्वयन को लेकर रुचि नहीं दिखा रहे हैं। वन विभाग में इस महत्वपूर्ण योजना पर ध्यान न दिए जाने के कारण कई क्षेत्रों में वन प्रबंधन प्रभावित हो रहा है।
वन महकमे में वर्किंग प्लान को तैयार करने के लिए विशेष रूप से अधिकारी और कर्मचारियों की तैनाती की जाती है। लेकिन स्थिति यह है कि उत्तराखंड के तराई मध्य और तराई पश्चिम क्षेत्र के लिए वर्किंग प्लान का कार्य बहुत ही धीमी गति से चल रहा है। इस योजना को पूरा करने के लिए ढाई साल की समयावधि निर्धारित की गई थी, लेकिन अब इसमें केवल 8 से 9 महीने का ही समय बचा है। इस देरी का मुख्य कारण आवश्यक अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति न होना है। वर्किंग प्लान की प्रक्रिया के तहत पहले प्राथमिक योजना बनाई जाती है, जिसमें पिछले 10 वर्षों में हुए वन कार्यों का विश्लेषण किया जाता है। इसके बाद फील्ड सर्वे के माध्यम से आवश्यक सुधार और नई नीतियों पर काम किया जाता है। लेकिन मौजूदा हालात को देखें तो अभी तक न तो फील्ड सर्वे हुआ है और न ही इस योजना के लिए अधिकारियों और कर्मचारियों की पूर्ण रूप से नियुक्ति की गई है।
तराई मध्य और तराई पश्चिम क्षेत्रों के वर्किंग प्लान के लिए दिसंबर 2023 में प्राथमिक योजना शुरू कर दी गई थी। इसके लिए हिमांशु बागड़ी और प्रकाश चंद आर्य को वर्किंग प्लान ऑफिसर नियुक्त किया गया था। लेकिन आवश्यक फील्ड अधिकारियों की अनुपस्थिति के कारण यह कार्य प्रभावित हो रहा है। एक वर्किंग प्लान को पूरा करने के लिए 2 एसडीओ, 4 रेंजर और 12 फॉरेस्टर्स की आवश्यकता होती है, लेकिन 2023 से शुरू हुई इस योजना के लिए अभी तक पर्याप्त संख्या में कर्मचारी नियुक्त नहीं किए गए हैं। इस कारण ढाई साल में तैयार होने वाली योजना अब तक अधर में लटकी हुई है। ऐसे में अगले 8 से 9 महीनों में इस योजना को पूरा करना असंभव सा दिख रहा है। आमतौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में वर्किंग प्लान तैयार करने के लिए 8 से 12 महीने का समय लगता है, जबकि मैदानी इलाकों में यह प्रक्रिया 4 से 6 महीनों में पूरी की जा सकती है। इसके बाद वर्किंग प्लान को लिखित रूप देने में एक से डेढ़ साल तक का समय लगता है। लेकिन उत्तराखंड के इन दो प्रमुख क्षेत्रों में अब तक सर्वे का काम भी पूरा नहीं हो पाया है। इसके पीछे मुख्य कारण कर्मचारियों की भारी कमी और विभागीय उदासीनता को माना जा सकता है। वर्किंग प्लान की प्रक्रिया काफी कठिन और श्रमसाध्य होती है, जिसमें फील्ड वर्क के साथ-साथ विस्तृत दस्तावेज तैयार करने की जिम्मेदारी होती है। लेकिन उत्तराखंड वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी इस कार्य को करने के इच्छुक नहीं दिख रहे हैं। इस संबंध में जब प्रमुख वन संरक्षक (हॉफ) धनंजय मोहन से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि हर अधिकारी और कर्मचारी की अपनी प्राथमिकताएं होती हैं, लेकिन जिसे इस योजना के लिए नियुक्त किया जाएगा, उसे यह कार्य करना ही होगा।
वर्किंग प्लान के दौरान संबंधित क्षेत्र में लगभग 300 से 400 बिंदुओं पर जाकर अधिकारियों और कर्मचारियों को सर्वे करना पड़ता है। इस दौरान वनों की स्थिति, मिट्टी की गुणवत्ता, कार्बन स्तर और पर्यावरणीय स्थितियों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है। इसके बाद इन सभी जानकारियों को लिखित रूप में तैयार किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट रूप से यह निर्देश दिए हैं कि बिना अनुमोदित कार्य योजना के किसी भी वन क्षेत्र में वानिकी कार्य नहीं किया जा सकता है। प्रमुख वन संरक्षक (हॉफ) धनंजय मोहन ने यह भी बताया कि कोरोना महामारी के दौरान वनों के सर्वेक्षण का काम काफी प्रभावित हुआ था। तभी से उत्तराखंड में वर्किंग प्लान की प्रक्रिया तय समय से पिछड़ गई है। हालांकि, अब इस पर तेजी से काम किया जा रहा है और हर महीने होने वाली बैठकों में विभिन्न वर्किंग प्लान को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया जारी है।
जंगलों की सेहत सीधे तौर पर वर्किंग प्लान पर निर्भर करती है। ऐसे में यदि योजनाएं समय पर पूरी नहीं की जातीं, तो इसका असर वन संरक्षण और पर्यावरणीय संतुलन पर भी पड़ेगा। इसलिए वन विभाग को इस दिशा में सख्त कदम उठाने की जरूरत है। जिन अधिकारियों और कर्मचारियों को इस योजना से जोड़ा गया है, उन्हें पूरी गंभीरता के साथ इस कार्य को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसके अलावा, मुख्यालय स्तर पर वर्किंग प्लान की निगरानी के लिए अलग से अधिकारियों और कर्मचारियों की तैनाती करना भी बेहद जरूरी है। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो आने वाले समय में उत्तराखंड के जंगलों की स्थिति और अधिक बिगड़ सकती है।