spot_img
दुनिया में जो बदलाव आप देखना चाहते हैं, वह खुद बनिए. - महात्मा गांधी
Homeउत्तराखंडउत्तराखंड में अधिवक्ताओं का उग्र आंदोलन, 500 बाइकों की रैली से गूंजे...

उत्तराखंड में अधिवक्ताओं का उग्र आंदोलन, 500 बाइकों की रैली से गूंजे शहर के मुख्य मार्ग

सरकार के खिलाफ अधिवक्ताओं का हल्लाबोल, न्यायिक व्यवस्था ठप करने की चेतावनी, प्रदेशभर में उग्र आंदोलन की तैयारी, वकीलों का आक्रोश चरम पर

काशीपुर। उत्तराखंड सरकार द्वारा वर्चुअल रजिस्ट्री, बेनाममा, वसीयत, विवाह पंजीकरण एवं शादी को ऑनलाइन किए जाने के फैसले का विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है। इस निर्णय के खिलाफ प्रदेशभर के अधिवक्ताओं ने मोर्चा खोल दिया है और 19वें दिन भी उनका आंदोलन जारी रहा। अधिवक्ताओं का कहना है कि सरकार की यह नई नीति न केवल उनके अधिकारों का हनन है बल्कि इससे हजारों अधिवक्ता, उनके सहायक, लिपिक, कातिब और दस्तावेज लेखक बेरोजगार हो जाएंगे। प्रदर्शनकारी वकीलों ने ऐलान किया है कि जब तक सरकार इस फैसले को वापस नहीं लेती, तब तक यह विरोध अनवरत जारी रहेगा। अधिवक्ताओं ने इस फैसले को जबरन थोपा गया आदेश बताया और कहा कि सरकार का यह रवैया न्यायिक व्यवस्था के लिए भी घातक साबित होगा। इस विरोध के मद्देनजर आज अधिवक्ताओं ने 500 से अधिक बाइकों के साथ शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए शांतिपूर्ण ढंग से महाराणा प्रताप चौक तक रैली निकाली। इस दौरान अधिवक्ताओं ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और चेतावनी दी कि यदि उनकी मांगों को जल्द स्वीकार नहीं किया गया तो आंदोलन और भी उग्र हो सकता है।

उत्तराखंड में सरकार के खिलाफ अधिवक्ताओं का आक्रोश अब सड़कों पर उबाल मार रहा है। काशीपुर बार एसोसिएशन के नेतृत्व में चल रहे इस ऐतिहासिक प्रदर्शन में सैकड़ों वकील अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए सरकार के फैसले के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। अधिवक्ताओं का यह आक्रोश केवल विरोध तक सीमित नहीं, बल्कि सरकार को स्पष्ट संदेश देने के लिए लगातार उग्र होता जा रहा है। उनका कहना है कि यह फैसला न केवल अधिवक्ताओं की रोजी-रोटी पर चोट कर रहा है, बल्कि न्याय प्रणाली को भी संकट में डाल सकता है। अधिवक्ता आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं और उनकी चेतावनी साफ हैकृअगर सरकार ने जल्द ही इस निर्णय को वापस नहीं लिया, तो आंदोलन और उग्र होगा और पूरे प्रदेश की न्यायिक व्यवस्था ठप हो सकती है।

आज के प्रदर्शन में काशीपुर बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष आनन्द रस्तोगी, उपाध्यक्ष अनूप कुमार शर्मा, सचिव नृपेंद्र कुमार चौधरी, उप सचिव सूरज कुमार, तहसील उपाध्यक्ष विजय सिंह, पुस्तकालय अध्यक्ष सतपाल सिंह बल, कार्यकारी सदस्य कामिनी श्रीवास्तव, पूर्व सचिव संदीप सहगल सहित बड़ी संख्या में अधिवक्ता शामिल हुए। इनके नेतृत्व में विरोध को एक नया आयाम मिल रहा है, जहां अधिवक्ता सरकार के इस डिजिटल फैसले के खिलाफ एकजुट होकर खड़े हो गए हैं।

इसके अलावा, विरोध में अपनी भागीदारी दर्ज कराने वालों में नरेश कुमार पाल, अमित गुप्ता, अमृतपाल सिंह, अविनाश कुमार, नरदेव सैनी, आनंद रस्तोगी, विपिन अग्रवाल, सनत पैगिया, गिरजेश खुलबे, राजेंद्र सैनी, सुधीर चौहान, वीर सिंह, सचिन खुराना, अर्पण अरोड़ा, लवदीप सिंह ढिल्लों, नीरज कुमार खुराना, पवन कुमार, संजय कुमार, उस्मान मालिक, गौरव रस्तोगी, जीशान सिद्दीकी, मोनिश सिद्दीकी, लेवेंद्र यादव, सुबोध शाह, राकेश कुमार, अनिल शर्मा, लक्ष्मी कांत, सूरज सिंह, रोहित अरोरा, नरेश खुराना, देवेश चौहान, जीतेंद्र कुमार, सुमित पूनम, मेहरोत्रा, राकेश प्रजापति, राठी, अजय सैनी, मुकेश सिंह, सचिन अरोरा, सलीम अहमद सहित कई अन्य अधिवक्ताओं ने अपनी एकजुटता दिखाई।

अधिवक्ताओं की रैली और विरोध प्रदर्शन सरकार के खिलाफ साफ संदेश दे रहा है कि यह लड़ाई सिर्फ उनके भविष्य की नहीं, बल्कि पूरी न्याय प्रणाली को बचाने की है। सरकार को यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि बिना वकीलों की सहमति के कोई भी फैसला लागू करना आसान नहीं होगा। यदि सरकार अब भी नहीं जागी, तो आने वाले दिनों में यह आंदोलन एक विकराल रूप ले सकता है, जिसका असर प्रदेश की पूरी न्यायिक व्यवस्था पर पड़ना तय है।

पूर्व अध्यक्ष आनंद रस्तोगी ने सरकार के इस फैसले को वकीलों के अस्तित्व पर सीधा हमला करार दिया। उन्होंने कहा कि वर्चुअल रजिस्ट्री, बेनाममा, वसीयत और विवाह पंजीकरण जैसी प्रक्रियाओं को डिजिटल करने का निर्णय अधिवक्ताओं को बेरोजगारी की ओर धकेलने का एक षड्यंत्र है। उन्होंने सरकार पर सीधा आरोप लगाते हुए कहा कि यह फैसला बिना किसी समुचित चर्चा के थोपा गया है, जिससे अधिवक्ताओं का भविष्य अंधकारमय हो गया है। रस्तोगी ने कहा कि वकील न केवल न्याय व्यवस्था की रीढ़ हैं, बल्कि आम जनता को कानूनी रूप से सशक्त बनाने का काम करते हैं। यदि इस तरह के डिजिटल प्लेटफॉर्म को लागू किया जाता है, तो हजारों अधिवक्ताओं, उनके सहायकों और लिपिकों का रोजगार खतरे में पड़ जाएगा। उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि यदि सरकार ने इस तानाशाही फैसले को वापस नहीं लिया, तो अधिवक्ताओं का यह आंदोलन और बड़ा होगा। आज यह विरोध काशीपुर में हो रहा है, कल पूरा उत्तराखंड सड़कों पर होगा। उन्होंने सरकार को अल्टीमेटम देते हुए कहा कि यदि उनकी मांगे नहीं मानी गईं, तो अधिवक्ता न्यायिक व्यवस्था को ठप करने से भी पीछे नहीं हटेंगे।

सचिव नृपेंद्र कुमार चौधरी ने कहा कि सरकार की यह नीति पूरी तरह से अधिवक्ताओं के अधिकारों पर कुठाराघात है। उन्होंने कहा कि सरकार यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि डिजिटल भारत के नाम पर हर व्यवस्था को ऑनलाइन कर देना ही एकमात्र समाधान है। लेकिन सच्चाई यह है कि वर्चुअल रजिस्ट्री और ऑनलाइन पंजीकरण व्यवस्था न्यायपालिका के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है। यह कदम केवल अधिवक्ताओं के हितों को नुकसान नहीं पहुंचा रहा, बल्कि इससे आम जनता भी प्रभावित होगी। डिजिटल व्यवस्था से न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता खत्म होगी, और धोखाधड़ी के मामले बढ़ सकते हैं। हम इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे। जब तक सरकार यह आदेश वापस नहीं लेती, हमारा संघर्ष जारी रहेगा। उन्होंने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि जल्द ही इस फैसले को रद्द नहीं किया गया तो अधिवक्ता प्रदेशव्यापी हड़ताल पर जाने को मजबूर होंगे, जिससे न्यायिक कामकाज पूरीतरह से ठप हो सकता है।

पूर्व सचिव संदीप सहगल ने इस फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि सरकार जानबूझकर अधिवक्ताओं को बेरोजगारी की ओर धकेल रही है। उन्होंने कहा कि आज हजारों अधिवक्ता और उनके सहायक अपनी रोज़ी-रोटी बचाने के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर हैं। सरकार को यह समझना चाहिए कि न्यायिक कार्य केवल ऑनलाइन प्रक्रियाओं से संचालित नहीं किए जा सकते। किसी भी दस्तावेज की सत्यता को परखने और उसकी कानूनी प्रक्रिया को सही तरीके से पूरा करने के लिए अधिवक्ताओं की भूमिका अनिवार्य होती है। लेकिन सरकार इस पहलू को पूरी तरह से नजरअंदाज कर रही है। उन्होंने आगे कहा कि यदि सरकार ने जल्द ही इस फैसले को वापस नहीं लिया, तो अधिवक्ताओं का यह आंदोलन पूरे प्रदेश में व्यापक रूप से फैल जाएगा और इसका असर प्रशासन पर भी साफ दिखाई देगा।

कार्यकारी सदस्य कामिनी श्रीवास्तव ने भी इस फैसले का पुरजोर विरोध किया और कहा कि यह अधिवक्ताओं के साथ अन्याय है। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि वह अधिवक्ताओं की बात सुने और उनके हितों की रक्षा करे। डिजिटल युग में सुविधाओं को बढ़ावा देना आवश्यक है, लेकिन यह भी देखना होगा कि इससे किसी के रोजगार पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। वकील केवल एक पेशा नहीं है, बल्कि न्याय व्यवस्था की रीढ़ हैं। यदि अधिवक्ता ही अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो यह सरकार की असंवेदनशीलता को दर्शाता है।ष् उन्होंने आगे कहा कि अधिवक्ता सिर्फ अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष नहीं कर रहे, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और प्रभावशीलता को बनाए रखने के लिए भी लड़ रहे हैं।

उप सचिव सूरज कुमार ने कहा कि सरकार का यह निर्णय पूरी तरह से अन्यायपूर्ण है और इसे तत्काल वापस लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे पास वर्षों का अनुभव है, हमने न्यायिक प्रक्रियाओं को संभालने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी, और अब सरकार हमें एक झटके में बेरोजगार करने की कोशिश कर रही है। यह केवल अधिवक्ताओं का मुद्दा नहीं है, बल्कि उन लाखों नागरिकों का भी सवाल है जो अपनी कानूनी जरूरतों के लिए हम पर निर्भर हैं। यदि सरकार को डिजिटल सिस्टम ही लागू करना है, तो उसे पहले अधिवक्ताओं को समुचित अवसर और विकल्प देने चाहिए थे। लेकिन यह निर्णय तानाशाही की तरह थोपा गया है।ष् उन्होंने आगे कहा कि सरकार की बेरुखी जारी रही तो अधिवक्ताओं का यह आंदोलन और अधिक उग्र हो सकता है, जिसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार की होगी।

अधिवक्ताओं ने अपने विरोध को और तेज करने का संकेत दिया है। उनका कहना है कि यदि सरकार ने जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो यह आंदोलन प्रदेशव्यापी स्तर पर फैल जाएगा। अधिवक्ताओं ने चेतावनी दी है कि आने वाले दिनों में बड़े स्तर पर प्रदर्शन होंगे, जिससे न्यायिक प्रक्रिया पूरी तरह बाधित हो सकती है। उनका स्पष्ट कहना है कि सरकार को इस तानाशाही फैसले को तुरंत वापस लेना होगा, अन्यथा आंदोलन और उग्र होगा। यदि उनकी मांगों की अनदेखी जारी रही, तो प्रदेशभर के अधिवक्ता अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जा सकते हैं, जिससे आम जनता को भी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। अधिवक्ताओं ने दो टूक शब्दों में कहा कि यह सिर्फ एक विरोध नहीं, बल्कि उनके अस्तित्व की लड़ाई है, जिसे किसी भी कीमत पर लड़ा जाएगा। जब तक सरकार अपना फैसला वापस नहीं लेती, तब तक यह संघर्ष जारी रहेगा।

संबंधित ख़बरें
गणतंत्र दिवस की शुभकामना
75वां गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ

लेटेस्ट

ख़ास ख़बरें

error: Content is protected !!