रामनगर। जब भी खतरनाक शिकारी की बात होती है, तो सबसे पहले टाइगर का नाम सामने आता है। लेकिन उत्तराखंड में अब तस्वीर बदल चुकी है। यहां टाइगर से ज्यादा खौफनाक साबित हो रहा है गुलदार। पहाड़ों से लेकर तराई और मैदानी इलाकों तक, गुलदार ने इंसानों के जीवन में खौफ घोल दिया है। एक समय था जब गुलदार केवल जंगलों में ही नजर आता था, लेकिन अब वह गांवों, कस्बों और यहां तक कि घरों में घुसकर हमले कर रहा है। न सिर्फ जानलेवा हमले बढ़े हैं, बल्कि लोगों के घायल होने की घटनाएं भी तेजी से सामने आ रही हैं। आलम यह है कि राज्य में अब किसी भी वन्यजीव के मुकाबले सबसे ज्यादा नुकसान गुलदार ही पहुंचा रहा है। आरके मिश्रा, जो कि उत्तराखंड के प्रमुख वन्यजीव संरक्षक हैं, उन्होंने इस बात को लेकर चिंता जताई है कि गुलदार का जंगलों से बाहर निकलकर इंसानी बस्तियों में आना एक बेहद गंभीर चुनौती बन चुका है। वहीं, ‘लिविंग विद द लेपर्ड’ कार्यक्रम के तहत लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि वे गुलदार के साथ कैसे रह सकते हैं और अपनी सुरक्षा कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं।
साल दर साल गुलदार के हमलों में जो बढ़ोतरी देखी गई है, वह चौंकाने वाली है। राज्य गठन के बाद से अब तक 534 लोग गुलदार के शिकार बन चुके हैं और 2052 लोग घायल हो चुके हैं। सिर्फ पिछले पांच सालों पर नजर डालें तो हालात और भी भयावह नजर आते हैं। साल 2020 में 30 लोगों की मौत हुई थी और 100 घायल हुए थे, जबकि 2021 में 23 की जान गई और 98 लोग घायल हुए। साल 2022 में गुलदार ने 22 लोगों को मार डाला और 18 को घायल किया। 2023 में 18 मौतें और 100 घायल, वहीं 2024 में 14 लोगों की मौत और 127 लोग घायल हुए। 2025 में अब तक यानी महज तीन महीनों में ही गुलदार ने एक व्यक्ति की जान ले ली और 18 को घायल कर दिया है। इन आंकड़ों से साफ जाहिर होता है कि गुलदार अब राज्य के लिए एक खतरनाक खतरा बन गया है, जिससे निपटना आसान नहीं है। खास बात यह है कि यह शिकारी अब जंगलों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि बस्तियों में भी बेधड़क घुसकर हमला कर रहा है।
बढ़ते गुलदार हमलों की एक अहम वजह इंसानों की बदलती जीवनशैली भी है। जैसे-जैसे गांव खाली हो रहे हैं, वैसे-वैसे गुलदार को उन क्षेत्रों में बसने का मौका मिल रहा है। पलायन से खाली होते गांव अब गुलदारों के लिए सुरक्षित ठिकाने बनते जा रहे हैं। दूसरी ओर, लोग खाने-पीने के कचरे को आसपास फेंक देते हैं, जिससे गुलदारों समेत अन्य वन्यजीवों को भोजन आसानी से मिल जाता है। जंगलों में शिकार की मुश्किलों के बजाय इंसानी बस्तियों में उन्हें आसानी से शिकार मिल रहा है – चाहे वह पालतू जानवर हों या फिर दुर्भाग्यवश कोई इंसान। यही कारण है कि गुलदार का इंसानों से डर खत्म होता जा रहा है। वह अब दिनदहाड़े भी नजर आने लगे हैं और बस्तियों में घुसकर खुलेआम घूमते हैं। इस प्रवृत्ति ने मानवीय सुरक्षा को गंभीर खतरे में डाल दिया है और मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।
राज्य सरकार और वन विभाग अब इस चुनौती से निपटने के लिए ठोस कदम उठा रहे हैं। पहली बार ऐसा होने जा रहा है कि ‘ऑल इंडिया टाइगर इंटीमेशन’ के साथ गुलदारों की भी वैज्ञानिक गिनती की जाएगी। अभी तक टाइगर की गिनती ही राष्ट्रीय स्तर पर होती थी, लेकिन अब गुलदार को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा, जिससे देश और राज्य को गुलदारों की सटीक संख्या का पता चल सकेगा। उत्तराखंड में फिलहाल 2800 से 3000 के बीच गुलदारों की मौजूदगी मानी जाती है, लेकिन अब जो गिनती होने वाली है, उससे इनकी वास्तविक संख्या सामने आ सकेगी। यह पहल इसलिए भी अहम है क्योंकि जब तक सही आंकड़े नहीं होंगे, तब तक उनके संरक्षण और नियंत्रण की नीति नहीं बन पाएगी। आरके मिश्रा ने इस संबंध में बताया कि विभाग आधुनिक तकनीकों की मदद से हर गुलदार की उपस्थिति को दर्ज करेगा, जिससे भविष्य में उनकी गतिविधियों पर नजर रखना आसान हो सकेगा।
डॉ. राकेश नौटियाल, जो कि राजाजी टाइगर रिजर्व में पशु चिकित्सक हैं, उन्होंने बताया कि गुलदार किसी भी स्थान पर खुद को जीवित रखने की अद्भुत क्षमता रखता है। वह बड़े शिकार के बिना भी आसानी से जीवित रह सकता है। छोटे जीव-जंतु, खरगोश, चूहे जैसे छोटे शिकार भी उसके लिए पर्याप्त होते हैं। यही वजह है कि उसकी संख्या तेजी से बढ़ रही है। जहां जंगल सघन नहीं हैं, वहां भी गुलदार खुद को ढाल लेता है और आसानी से बस्तियों के आसपास छिपकर अपने शिकार की तलाश करता है। यही खूबी उसे अन्य शिकारी जानवरों से अलग बनाती है और शायद यही वजह है कि उत्तराखंड में वह टाइगर को भी पछाड़ चुका है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या गुलदार को केवल एक वन्यजीव मानकर अनदेखा करना सही होगा, या फिर अब समय आ गया है कि उसे गंभीर खतरे के रूप में चिन्हित किया जाए।
गुलदार की बढ़ती मौजूदगी और इंसानों से उसका खत्म होता डर राज्य के लिए एक बड़ी चेतावनी है। जहां एक ओर हम वन्यजीवों के संरक्षण की बात करते हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसे शिकारी वन्यजीव जो इंसानी जीवन को खतरे में डालते हैं, उन्हें लेकर संतुलित दृष्टिकोण अपनाना भी जरूरी हो गया है। उत्तराखंड अब ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां उसे अपने जंगलों, वन्यजीवों और इंसानों के बीच सामंजस्य बैठाने के लिए त्वरित और ठोस कदम उठाने होंगे। वरना आने वाले समय में गुलदार केवल जंगल का नहीं, बल्कि पूरे राज्य का सबसे बड़ा सिरदर्द बन सकता है।