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उत्तराखंड-उत्तर प्रदेश परिसंपत्ति विवाद 24 साल बाद भी सुलझा नहीं पाया, सरकारें बयानों तक सीमित

24 साल पुराना परिसंपत्ति विवाद अभी भी गतिरोध में, मुख्यमंत्री धामी और सतपाल महाराज की बैठकें सिर्फ औपचारिक, समाधान की उम्मीदें लगातार टलती जा रही हैं।

रामनगर। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच परिसंपत्तियों का विवाद अब 24 साल से लटका हुआ है और आज तक इसका कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका है। इस लंबे समय में कई बैठकें और बयान दिए गए, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। हालांकि सरकारें बार-बार इस मुद्दे को उठाती रही हैं, परंतु अब तक कोई निर्णायक कदम नहीं उठाया गया। उत्तराखंड में भाजपा की सरकार के बावजूद यह विवाद हल नहीं हो सका है, और इसके कारण राज्य को न केवल आर्थिक बल्कि राजनीतिक नुकसान भी हो रहा है। परिसंपत्तियों के बंटवारे का मामला हर बार चर्चा में आता है, लेकिन कार्रवाई की बजाय सिर्फ बयानों तक सीमित रहता है। हाल ही में एक बार फिर सरकार ने इस मुद्दे पर ध्यान आकर्षित किया, लेकिन अब तक किसी भी प्रकार का निर्णायक कदम नहीं उठाया गया है, जिससे राज्य की परेशानियां लगातार बनी हुई हैं।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपनी जिम्मेदारी संभालने के बाद उत्तर प्रदेश के साथ परिसंपत्तियों के बंटवारे के मुद्दे पर बैठक में हिस्सा लिया था। इसके बाद सरकार ने दावा किया था कि अब तक जो काम नहीं हो पाया था, वह अब संभव हुआ है। नवंबर 2021 की बैठक के बाद उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों के बीच एक समझौता हुआ था। इस बैठक में कई महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए गए थे, लेकिन 4 साल बाद भी परिसंपत्तियों का बंटवारा नहीं हुआ। इतना ही नहीं, सर्वे का भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। अगर सच में कोई निर्णायक कार्यवाही होती, तो यह मामला अब तक निपट चुका होता।

इससे पहले 6 अगस्त 2017 को भी एक बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्तियों के बंटवारे को लेकर सकारात्मक दिशा में काम करने का दावा किया गया था। उस बैठक में उत्तर प्रदेश के सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह ने कहा था कि हरिद्वार, देहरादून, श्रीनगर जैसे इलाकों में स्थित गेस्ट हाउस अब उत्तराखंड के होंगे। इसके अलावा, हरिद्वार में कुंभ आयोजन की भूमि पर भी बातचीत की गई थी। उस समय के उत्तराखंड के सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज ने भी उत्तर प्रदेश सरकार का धन्यवाद किया था।

हालांकि, अब भी यह विवाद जस का तस बना हुआ है। सतपाल महाराज ने हाल ही में फिर से बयान दिया और कहा कि जल्द ही उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की बैठक होगी और परिसंपत्तियों के विवाद का हल निकाला जाएगा। त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल के दौरान भी इस तरह की बैठकों का आयोजन हुआ था, लेकिन फिलहाल कुछ भी ठोस निर्णय सामने नहीं आया है। केवल हरिद्वार के अलकनंदा गेस्ट हाउस के अलावा और कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया है।

इस विवाद को लेकर वरिष्ठ पत्रकार आदेश त्यागी का कहना है कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से आज तक सिर्फ प्रयास ही किए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 के तहत परिसंपत्तियों के बंटवारे में जो देरी हो रही है, वह भी इस विवाद को और जटिल बना रही है। राज्य में सबसे अधिक संपत्तियां सिंचाई विभाग की हैं, जिनमें 13 हजार हेक्टेयर जमीन, 2 हजार से अधिक बिल्डिंग और गेस्ट हाउस शामिल हैं, जो अभी तक उत्तराखंड के नियंत्रण में नहीं हैं। इन संपत्तियों का बंटवारा होने से उत्तराखंड को आर्थिक और सामाजिक रूप से लाभ हो सकता है।

कुल मिलाकर, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच परिसंपत्तियों के बंटवारे का मामला अब भी लटका हुआ है। सरकारें बैठकें तो करती हैं, लेकिन फैसले स्थगित रहते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से कई महत्वपूर्ण संपत्तियां उत्तराखंड के हिस्से में आनी चाहिए थीं, जैसे भीमगोडा बैराज, बनबसा का लोहिया हेड बैराज, और कुंभ की भूमि, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया है। अनुमानित तौर पर इन संपत्तियों की कीमत लगभग 20 हजार करोड़ रुपए से अधिक है।

इस विवाद को लेकर भाजपा की सरकार पर अब कांग्रेस ने भी हमला बोलना शुरू कर दिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने आरोप लगाया कि 9 सालों में उत्तराखंड सरकार उत्तर प्रदेश से कुछ भी हासिल नहीं कर पाई। उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर विस्तार से यह भी बताया कि उनकी सरकार के दौरान इस मुद्दे को लेकर क्या प्रयास किए गए थे। आखिरकार, यह स्पष्ट हो गया है कि 24 साल बाद भी उत्तराखंड सरकार केवल प्रस्तावों और बैठकों में ही उलझी हुई है, जबकि उत्तर प्रदेश से कोई ठोस समाधान नहीं मिल पाया है।

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