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इंदिरा की लौह शक्ति के आगे झुकी थी अमेरिका की धौंस, आज के नेता भूल गए स्वाभिमान का वो इतिहास: अलका पाल

कांग्रेस ने उठाए सवाल, मोदी सरकार बताए अमेरिका की मध्यस्थता कैसे मंजूर हुई जब शिमला समझौते में तीसरे पक्ष की भूमिका को नकारा गया था

काशीपुर। बदलते भूगोल और डगमगाते कूटनीतिक समीकरणों के इस दौर में जब विश्व राजनीति बहुपक्षीय वार्ताओं और शक्तिशाली राष्ट्रों की मध्यस्थताओं के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है, तब भारतीय राजनीति में कांग्रेस ने इतिहास की उस लौ को फिर से प्रज्वलित कर दिया है जो 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के अभूतपूर्व नेतृत्व और अडिग फैसलों की मशाल बनकर जली थी। अमेरिका जैसे महाबली राष्ट्र की सीधी चेतावनी के बावजूद जब सातवें बेड़े की गड़गड़ाहट हिंद महासागर की लहरों में गूंज रही थी, तब श्रीमती इंदिरा गांधी ने वाशिंगटन की आंखों में आंखें डाल कर भारत के हितों की रक्षा का ऐलान कर दिया था। उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी की सदस्य अलका पाल ने बताया कि वह ऐतिहासिक क्षण जब पूर्वी पाकिस्तान का पतन हुआ और बांग्लादेश ने अपनी स्वतंत्र सांस ली, केवल एक सैन्य विजय नहीं थी बल्कि भारत की संप्रभुता और आत्मसम्मान का अंतरराष्ट्रीय ऐलान था, जिसने भारत को भू-राजनीतिक मानचित्र पर निर्णायक शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया।

आज जब अमेरिकी हस्तक्षेप की दुहाई देकर भारत-पाक संबंधों में एक बार फिर तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की बात की जा रही है, उत्तराखण्ड कांग्रेस के प्रदेश कमेटी कि असदस्य अलका पाल का स्पष्ट कहना है कि यह न केवल शिमला समझौते की आत्मा के विरुद्ध है बल्कि देश की स्वाभिमानी कूटनीति को भी धूमिल करता है। अलका पाल ने स्मृति को कुरेदते हुए कहा कि इंदिरा गांधी ने उस समय अमेरिकी राष्ट्रपति को स्पष्ट कह दिया था कि कोई भी शक्ति भारत को यह निर्देश नहीं दे सकती कि उसे अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा कैसे करनी है। उन्होंने अमेरिकी धमकियों की अवहेलना करते हुए भारत की स्वतंत्र निर्णय क्षमता को सर्वाेपरि रखा और पूरी दुनिया को बताया कि भारत न तो दबेगा, न झुकेगा और न ही किसी के इशारे पर चलेगा। उत्तराखण्ड अलका पाल महिला कांग्रेस कि वरिष्ठ उपाध्यक्ष अलका पाल ने यह भी सवाल उठाया कि क्या अब भारत ने शिमला समझौते की नीति को त्याग दिया है? क्या अब हम अमेरिका जैसे राष्ट्रों से मध्यस्थता की अपेक्षा कर रहे हैं?

इंदिरा गांधी का साहस, भारत की गरिमा की मिसाल

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा 10 मई को भारत-पाक युद्धविराम की घोषणा ने कांग्रेस को हैरत में डाल दिया है। अलका पाल ने उस ऐतिहासिक दिन की याद ताजा करते हुए बताया कि कैसे श्रीमती इंदिरा गांधी ने 15 दिसंबर 1971 को राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को दो टूक शब्दों में पत्र लिखकर भारत के आत्मसम्मान का संदेश भेजा था। उन्होंने साफ कहा था कि हम विकासशील राष्ट्र जरूर हैं लेकिन हमारे पास अत्याचारों से लड़ने का अदम्य साहस है और भारत किसी भी रंगभेद मानसिकता या पश्चिमी श्रेष्ठता को स्वीकार नहीं करेगा। अलका पाल ने कहा कि यह उनका अडिग आत्मबल ही था जिसकी बदौलत पाकिस्तान को आत्मसमर्पण करना पड़ा और 90,000 पाकिस्तानी सैनिक भारतीय सेना के सामने हथियार डालने पर मजबूर हो गए। अलका पाल ने कहा कि आज जब देश की नीति में नरमी या दबाव का संकेत दिखता है, तब इंदिरा गांधी की वह निर्भीक छवि और दृढ़ नेतृत्व एक आदर्श बनकर सामने आता है।

उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी की सदस्य अलका पाल ने यह भी मांग उठाई है कि देश की जनता को इस अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम पर पूरी पारदर्शिता के साथ जानकारी दी जाए। अलका पाल ने बताया कि कांग्रेस ने केंद्र सरकार से विशेष संसद सत्र बुलाने और सर्वदलीय बैठक आयोजित करने का आग्रह किया है ताकि युद्धविराम से संबंधित सभी तथ्यों को सामने लाया जा सके। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने ऑपरेशन सिंदूर का समर्थन किया था और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को वापस लेने की केंद्र की मंशा का भी स्वागत किया था, लेकिन जब अमेरिका जैसी शक्ति इस संघर्ष को शांत करने की पहल करती है, तब यह जानना आवश्यक हो जाता है कि क्या भारत ने कूटनीतिक स्तर पर अपनी स्वायत्तता खो दी है। अलका पाल ने कहा कि हमारे सशस्त्र बलों पर पूर्ण विश्वास है, उन्होंने आतंकी ठिकानों को निशाना बनाकर एक संदेश दिया है कि भारत अपनी रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन देशवासियों को यह आश्वासन कौन देगा कि भविष्य में ऐसे हमले नहीं होंगे?

अल्का पाल से एक विशेष बातचीत
अल्का पाल से एक विशेष बातचीत

इस पूरे ऐतिहासिक और समकालीन घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में उत्तराखण्ड कांग्रेस प्रदेश कमेटी कि सदस्य अलका पाल का इशारा साफ है -राष्ट्रीय नीति केवल सैनिक पराक्रम से नहीं चलती, बल्कि उसमें आत्मसम्मान, कूटनीतिक स्पष्टता और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मजबूत इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। और जब बात राष्ट्रीय सम्मान की होती है, तब इतिहास बार-बार श्रीमती इंदिरा गांधी जैसे नायकों की ओर देखता है, जिन्होंने भारत को शक्ति, आत्मबल और गर्व के नए शिखर पर पहुंचाया। अलका पाल ने कहा कि आज के नेताओं को यह समझना होगा कि विश्व राजनीति में दबावों का सामना करने के लिए केवल शब्दों की नहीं, उस लौह-इच्छाशक्ति की जरूरत होती है जो इंदिरा गांधी ने हर कठिन क्षण में दिखाई थी।

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