देहरादुन।उत्तराखंड में पंचायत चुनाव की घोषणा के महज दो दिन बाद ही धामी सरकार को तगड़ा झटका लग गया, जब नैनीताल हाईकोर्ट ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की पूरी प्रक्रिया पर स्थगन आदेश जारी कर दिया। यह आदेश आरक्षण व्यवस्था से जुड़ी अधिसूचना यानी गजट नोटिफिकेशन के बिना चुनावी प्रक्रिया आगे बढ़ाने को लेकर दिया गया। यह खबर जैसे ही कोर्ट परिसर से बाहर आई, प्रदेशभर में चुनाव की तैयारियों में जुटे संभावित प्रत्याशियों से लेकर सत्तारूढ़ दल तक में खलबली मच गई। हाईकोर्ट में दायर याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार से कड़े सवाल पूछे और गजट की अनुपस्थिति को गंभीर खामी मानते हुए पूरे चुनाव पर रोक लगा दी। अब 24 जून यानी मंगलवार को एक बार फिर मामले की सुनवाई होनी है, और सरकार की ओर से पंचायती राज विभाग गजट अधिसूचना पेश कर चुनावी प्रक्रिया को दोबारा शुरू कराने की मांग करेगा।
धामी सरकार की घेराबंदी केवल अदालत में नहीं हुई, बल्कि विपक्षी दल कांग्रेस ने भी इस स्थगन आदेश को सरकार की नाकामी करार देते हुए राहत भरी खबर बताया। वहीं, पंचायती राज सचिव चंद्रेश यादव ने सोमवार को ही स्पष्ट किया था कि कोर्ट ने केवल गजट अधिसूचना की अनुपलब्धता के आधार पर यह आदेश दिया है। उनका कहना था कि अधिसूचना पहले ही रुड़की प्रेस को छपवाने के लिए भेज दी गई थी, लेकिन प्रेस की तकनीकी देरी के कारण यह समय पर प्रकाशित नहीं हो पाई। उन्होंने भरोसा जताया कि मंगलवार को गजट की प्रमाणिक प्रति कोर्ट में पेश कर दी जाएगी और स्टे आदेश हटवा लिया जाएगा। फिलहाल राज्य के हजारों प्रत्याशी, राजनीतिक कार्यकर्ता और अधिकारी सबकी निगाहें नैनीताल हाईकोर्ट की आज की सुनवाई पर टिकी हुई हैं।
21 जून को उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराने की घोषणा हुई थी और योजना के अनुसार, दो चरणों में मतदान होना था। पहले चरण में 10 जुलाई और दूसरे में 15 जुलाई को वोटिंग तय की गई थी, जबकि दोनों चरणों की मतगणना 19 जुलाई को होनी थी। चुनावी घोषणा के साथ ही प्रदेश में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई थी और 25 जुलाई से नामांकन प्रक्रिया शुरू होनी थी। लेकिन गजट अधिसूचना के बिना यह घोषणा ही कानूनन अधूरी साबित हुई, जिससे हाईकोर्ट ने पूरे चुनावी ढांचे पर ही ब्रेक लगा दिया। इस अचानक आए फैसले ने सरकार के लिए न केवल प्रशासनिक चुनौती खड़ी कर दी है, बल्कि राजनीतिक रूप से भी यह एक झटका साबित हुआ है।
10 जुलाई को पहले चरण में 49 विकास खंडों में मतदान प्रस्तावित था। इनमें अल्मोड़ा के ताकुला, धौलादेवी, ताड़ीखेत, भैंसियाछाना, लमगड़ा और चौखुटिया शामिल थे। वहीं उधम सिंह नगर के खटीमा, सितारगंज, गदरपुर और बाजपुर ब्लॉक भी इस सूची में थे। पिथौरागढ़ जिले के लोहाघाट, पाटी, धारचूला, डीडीहाट, मुनस्यारी और कनालीछीना में भी पहले चरण में चुनाव होने थे। नैनीताल जिले के बेतालघाट, ओखलकांडा, रामगढ़ और धारी जैसे क्षेत्रों में भी इस तारीख को मतदान होना तय था। बागेश्वर के बागेश्वर, गरुड़ और कपकोट, उत्तरकाशी के मोरी, पुरोला और नौगांव, चमोली के देवाल, थराली, ज्योतिर्मठ और नारायणबगड़, टिहरी गढ़वाल के जौनपुर, प्रतापनगर, जाखणीधार, थौलधार, भिलंगना, देहरादून के चकराता, कालसी और विकासनगर, पौड़ी गढ़वाल के खिर्सू, पाबौ, थलीसैंण, नैनीडांडा, बीरौंखाल, रिखणीखाल, एकेश्वर और पोखड़ा और रुद्रप्रयाग के ऊखीमठ, जखोली और अगस्त्यमुनि ब्लॉक भी पहले चरण की सूची में शामिल थे।
15 जुलाई को निर्धारित दूसरे चरण में 40 विकास खंडों में वोटिंग होनी थी। इसमें अल्मोड़ा के सल्ट, स्याल्दे, भिकियासैंण, हवालबाग और द्वाराहाट ब्लॉक प्रमुख थे। उधम सिंह नगर के रुद्रपुर, काशीपुर और जसपुर, चंपावत जिले के चंपावत और बाराकोट ब्लॉक, पिथौरागढ़ के विण, मूनाकोट, बेरीनाग और गंगोलीहाट, नैनीताल के हल्द्वानी, रामनगर, भीमताल और कोटाबाग, उत्तरकाशी के डुण्डा, चिन्यालीसौड़ और भटवाड़ी, चमोली के पोखरी, दशोली, नंदानगर, कर्णप्रयाग और गैरसैंण, टिहरी गढ़वाल के कीर्तिनगर, देवप्रयाग, नरेंद्रनगर और चंबा, देहरादून के डोईवाला, रायपुर और सहसपुर, पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर, जयहरीखाल, दुगड्डा, द्वारीखाल, पौड़ी, कोट और कल्जीखाल ब्लॉक शामिल थे।
पूरे प्रदेश में 12 जिलों के 89 विकास खंडों और 7,499 ग्राम पंचायतों में यह त्रिस्तरीय चुनाव प्रस्तावित था। इसमें कुल 66,418 पदों पर जनप्रतिनिधियों के लिए चुनाव होने थे। इनमें 55,587 पद ग्राम पंचायत सदस्य, 7,499 प्रधान पद, 2,974 क्षेत्र पंचायत सदस्य और 358 जिला पंचायत सदस्य के पद शामिल हैं। इस व्यापक चुनावी तंत्र की घोषणा से प्रदेश की सियासी फिजा गर्म हो गई थी, लेकिन हाईकोर्ट के एक आदेश ने पूरे माहौल को ठंडा कर दिया है।
अब 24 जून की सुनवाई पर सबकी नजरें टिकी हैं, जहां यह तय होगा कि प्रदेश की पंचायत चुनावी प्रक्रिया आगे बढ़ेगी या फिर धामी सरकार को इसमें और भी सुधार कर कोर्ट का भरोसा दोबारा जीतना पड़ेगा। यदि कोर्ट गजट अधिसूचना से संतुष्ट हुआ, तो संभव है कि चुनाव की प्रक्रिया फिर से शुरू हो जाए। लेकिन अगर कोई और तकनीकी या कानूनी पेच सामने आया, तो यह मामला और उलझ सकता है।