रामनगर(एस पी न्यूज़)। केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित अधिवक्ता संशोधन बिल 2025 को लेकर अधिवक्ताओं में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। हाईकोर्ट अधिवक्ता एवं नारी शक्ति एवं बाल विकास जन जागृति समिति, रामनगर के उपाध्यक्ष मनु अग्रवाल ने इस बिल पर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि सरकार इस बिल के जरिए अधिवक्ताओं के संवैधानिक अधिकारों को खत्म करने की कोशिश कर रही है, जो भारतीय लोकतंत्र और न्याय प्रणाली के लिए खतरा है। यह बिल न केवल अधिवक्ताओं के हितों को प्रभावित करता है बल्कि जनता के अधिकारों पर भी कुठाराघात है। इस संशोधन के विरोध में अधिवक्ता समुदाय संगठित होकर सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाने की तैयारी कर रहा है।
मनु अग्रवाल ने इस विधेयक को स्वतंत्र वकालत के लिए हानिकारक बताते हुए कहा कि सरकार अधिवक्ताओं की भूमिका को सीमित करने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि यह बिल अधिवक्ताओं के लिए घातक साबित होगा, क्योंकि इससे उनकी कार्यस्वतंत्रता प्रभावित होगी। अधिवक्ता समुदाय यह मांग करता है कि सरकार इस विधेयक को तुरंत वापस ले। यदि सरकार इस पर पुनर्विचार नहीं करती, तो अधिवक्ता समाज बड़े स्तर पर आंदोलन करने के लिए बाध्य होगा। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा लाए गए इस विधेयक से न्याय प्रणाली में असंतुलन उत्पन्न होगा, जिससे आम जनता भी प्रभावित होगी।
इसके साथ ही उन्होंने यूसीसी के तहत रजिस्ट्रो बेनामा को पेपरलेस करने के प्रावधान का भी विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह कदम न केवल अधिवक्ताओं की स्वतंत्रता पर आघात करता है, बल्कि इसमें भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी की संभावना भी बढ़ जाती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार को इस विधेयक को वापस लेना चाहिए, अन्यथा अधिवक्ता समाज अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए बड़े स्तर पर संघर्ष करेगा। मनु अग्रवाल ने आगे कहा कि अधिवक्ता समाज न्यायपालिका का अभिन्न हिस्सा है और उन्हें कमजोर करने का अर्थ न्याय प्रक्रिया को बाधित करना है। इस संशोधन से अधिवक्ताओं की कार्यशैली प्रभावित होगी और उनके पेशे में अनावश्यक बाधाएं खड़ी की जाएंगी। उन्होंने कहा कि अधिवक्ता समाज सरकार की इस नीति को स्वीकार नहीं करेगा और इसके विरोध में हरसंभव कदम उठाएगा।
उन्होंने बताया कि अधिवक्ताओं का मुख्य कार्य न्याय दिलाने में सहायता करना होता है, लेकिन इस संशोधन के माध्यम से सरकार उनकी भूमिका को सीमित करना चाहती है। यह अधिवक्ताओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन है, जिसे किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं किया जाएगा। उन्होंने आगे कहा कि अधिवक्ता समुदाय पूरी तरह संगठित है और इस मुद्दे पर सरकार से आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार है। अधिवक्ताओं का यह भी मानना है कि यह विधेयक सीधे-सीधे उनकी स्वतंत्रता को बाधित करने का प्रयास है। यदि सरकार इस बिल को लागू करती है, तो अधिवक्ताओं का भविष्य खतरे में पड़ सकता है और इसके परिणामस्वरूप न्याय प्रक्रिया में जटिलताएं बढ़ सकती हैं।
मनु अग्रवाल ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह विधेयक न्यायपालिका के मूल ढांचे को प्रभावित करेगा, जिससे आम जनता को न्याय प्राप्त करने में कठिनाई होगी। उन्होंने कहा कि यह बिल जनता विरोधी भी है, क्योंकि जब अधिवक्ताओं की स्वतंत्रता सीमित होगी, तो आम नागरिकों को न्याय प्राप्त करने में कठिनाई होगी। उन्होंने सभी अधिवक्ताओं से अपील की कि वे इस विधेयक के खिलाफ एकजुट होकर सरकार तक अपनी बात पहुंचाएं। उन्होंने सरकार को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि यदि इस विधेयक को जल्द वापस नहीं लिया गया, तो अधिवक्ता समाज देशभर में बड़े स्तर पर आंदोलन करेगा। उन्होंने कहा कि यह विधेयक केवल अधिवक्ताओं के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए हानिकारक है और इसलिए इसे तुरंत निरस्त किया जाना चाहिए।
मनु अग्रवाल ने अंत में कहा कि सरकार को इस विधेयक पर पुनर्विचार करना चाहिए और अधिवक्ताओं के हितों की रक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अधिवक्ताओं के बिना न्याय प्रणाली अपूर्ण है और सरकार को इस तथ्य को समझना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि यदि सरकार इस विधेयक को वापस नहीं लेती, तो अधिवक्ता समाज सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करेगा और तब तक संघर्ष जारी रहेगा जब तक सरकार इस विधेयक को पूरी तरह से निरस्त नहीं कर देती।