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अंकिता भंडारी हत्याकांड में कोटद्वार कोर्ट का बड़ा फैसला तीनों दोषियों को उम्रकैद की सजा

तीन साल की लंबी कानूनी जंग के बाद कोटद्वार कोर्ट ने अंकिता भंडारी के गुनहगारों को उम्रकैद देकर देश को दिलाई राहत।

पौड़ी गढ़वाल। साल 2022 में उत्तराखंड को झकझोर देने वाले बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड में आज करोड़ों लोगों को राहत देने वाला निर्णय सामने आया है, जब कोटद्वार स्थित अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत ने मुख्य आरोपी पुलकित आर्या सहित उसके दो साथियों सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुना दी। इस पूरे मामले की सुनवाई में लंबा समय लगा, लेकिन आज जब अदालत ने तीनों को दोषी मानते हुए कठोर सजा दी, तो कोर्ट परिसर के बाहर मौजूद लोगों की आंखों में संतोष के आंसू छलक आए। पौड़ी गढ़वाल की जनता ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड और देशभर के लोगों की नजरें इस फैसले पर टिकी हुई थीं। अदालत ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट कर दिया कि महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वालों को अब न्याय की अदालत बख्शने वाली नहीं है, और यह फैसला ऐसे अपराधियों के लिए नजीर बनेगा।

30 मई 2025 को कोटद्वार कोर्ट में जब यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया, उस वक्त मुख्य अभियुक्त पुलकित आर्या को टिहरी जेल से भारी सुरक्षा के बीच कोर्ट लाया गया था। पुलिस प्रशासन ने अदालत परिसर के चारों ओर कड़ी सुरक्षा का घेरा बना रखा था, जिसकी निगरानी स्वयं एसएसपी लोकेश्वर सिंह कर रहे थे। कोर्ट में जैसे ही जज ने तीनों आरोपियों को दोषी करार दिया, पीड़ित परिवार की आंखों में वर्षों से रुका हुआ दर्द आंसुओं के रूप में छलक पड़ा। फैसला सुनाए जाने के बाद कोर्ट ने धारा 302, 201, 354ए आईपीसी और 3(1)क अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम के अंतर्गत सभी आरोपियों को कठोर आजीवन कारावास और आर्थिक दंड की सजा सुनाई। इतना ही नहीं, अदालत ने पीड़ित परिवार को 4 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया, जो उनके आंशिक संबल के रूप में देखा जा रहा है।

जिस निर्ममता से अंकिता भंडारी की हत्या की गई थी, उसकी यादें आज भी लोगों को झकझोर देती हैं। यमकेश्वर स्थित वनंत्रा रिजॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट के तौर पर कार्यरत 19 वर्षीय अंकिता को उसके मालिक पुलकित आर्या और उसके दो कर्मचारियों सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता ने 18 सितंबर 2022 को सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि वह अवैध कार्यों में शामिल होने से इनकार कर रही थी। जब उसने विरोध किया, तो उसकी हत्या कर दी गई और उसका शव ऋषिकेश की चीला नहर में फेंक दिया गया। 23 सितंबर को तीनों को गिरफ्तार किया गया और 24 सितंबर को तीनों की निशानदेही पर अंकिता का शव बरामद हुआ। इस हत्याकांड के बाद प्रदेशभर में उबाल आ गया था और जनसामान्य की मांग थी कि आरोपियों को फांसी दी जाए।

हत्या की क्रूरता और समाज में व्याप्त आक्रोश को देखते हुए इस केस की जांच के लिए तत्कालीन डीआईजी (कानून-व्यवस्था) पी. रेणुका देवी की निगरानी में एसआईटी का गठन किया गया था। जांच के दौरान मामले में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए और पुलकित आर्या के रिजॉर्ट में होने वाली अवैध गतिविधियों की भी परतें खुलने लगीं। इस केस में पुलिस ने 500 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की और 97 गवाहों के बयान दर्ज किए। इनमें से 47 गवाहों को कोर्ट में पेश भी किया गया। पीड़ित परिवार की मांग पर तीन बार सरकारी वकीलों को बदला गया ताकि पैरवी मजबूत हो सके। अदालत में अभियोजन पक्ष की ओर से की गई सशक्त दलीलों के चलते आरोपियों की जमानत अर्जियां हर बार खारिज होती रहीं।

इस मामले की पहली सुनवाई 30 जनवरी 2023 को हुई थी और आज 30 मई 2025 को दो साल चार महीने बाद आखिरकार अदालत ने ऐतिहासिक निर्णय दिया। न्यायालय ने पुलकित आर्या को धारा 302 के तहत कठोर आजीवन कारावास और 50,000 हजार रूपये का जुर्माना, धारा 201 में 5 साल कारावास व ₹10,000 जुर्माना, धारा 354। में 2 साल कारावास और 10,000 हजार रूपये का जुर्माना, और आईटीपीए की धारा 3(1)क में 5 साल कारावास व 2,000 हजार रूपये का जुर्माना दिया। इसी तरह सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता को धारा 302 में आजीवन कारावास और 50,000 हजार रूपये का जुर्माना, धारा 201 में 5 साल सश्रम कारावास व 10,000 हजार रूपये का जुर्माना, और आईटीपीए की धारा 3(1)क में 5 साल की सजा और 2,000 हजार रूपये का जुर्माना सुनाया गया।

इस निर्णय के साथ ही न्याय की उस लंबी लड़ाई को एक अहम पड़ाव मिल गया है, जो अंकिता भंडारी के माता-पिता और लाखों देशवासियों ने लड़ी थी। हालांकि परिवार आज भी फांसी की सजा की मांग करता है, लेकिन अदालत का यह निर्णय कठोर और सख्त कानून व्यवस्था की उम्मीद को मजबूती देता है। धामी सरकार ने भी इस हत्याकांड के बाद त्वरित कदम उठाए, जैसे कि आरोपियों पर गैंगस्टर एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करना,25 लाख रूपये की आर्थिक सहायता, और अंकिता के भाई या पिता को सरकारी नौकरी देने की घोषणा करना। यह फैसला केवल एक न्यायिक आदेश नहीं, बल्कि समाज के उस आक्रोश का जवाब है जो महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में न्याय की उम्मीद संजोए बैठा रहता है।

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