प्रयागराज। हाल ही में, कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह सनसनीखेज दावा किया गया कि गंगा नदी दुनिया की इकलौती मीठे पानी की धारा है जो बैक्टीरिया और अन्य हानिकारक कीटाणुओं को 50 गुना तेजी से नष्ट कर सकती है। इस दावे के पीछे गंगा में मौजूद 1,100 प्रकार के बैक्टीरियोफेज को श्रेय दिया जा रहा है, जिन्हें नदी का प्राकृतिक संरक्षक बताया गया है। कहा जा रहा है कि ये बैक्टीरियोफेज किसी बॉलीवुड फिल्म के नायक की तरह गंगा के जल में मौजूद प्रदूषकों को नष्ट कर देते हैं और फिर खुद ही समाप्त हो जाते हैं। लेकिन जब इस दावे की वैज्ञानिक आधार पर जांच की गई, तो इसके समर्थन में कोई ठोस प्रमाण सामने नहीं आया। गंगा के बारे में यह धारणा बनाना कि वह पूरी तरह से कीटाणु मुक्त है, वास्तविकता से कोसों दूर है।
बैक्टीरियोफेज केवल गंगा में ही नहीं बल्कि उन सभी जगहों पर पाए जाते हैं जहां बैक्टीरिया मौजूद होते हैं। झीलें, महासागर, अन्य नदियां और यहां तक कि मानव आंत भी बैक्टीरियोफेज के लिए एक अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं। दिसंबर 2022 में प्रकाशित एक शोध पत्र में यह पाया गया कि गंगा नदी के तलछट में विभिन्न प्रकार के फेज मौजूद हैं, लेकिन उनकी संख्या और विविधता दुनिया की अन्य प्रमुख नदी प्रणालियों से अलग नहीं है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो बैक्टीरियोफेज बैक्टीरिया को खत्म करने में सक्षम होते हैं, लेकिन यह कहना कि वे गंगा नदी को पूरी तरह से शुद्ध कर देते हैं, एक गलत धारणा है। उनका मुख्य कार्य बैक्टीरिया की कोशिकाओं में प्रवेश करके उनके आनुवंशिक पदार्थ की प्रतिकृति बनाना और फिर उन्हें नष्ट करना है। हालांकि, जिस स्तर के प्रदूषण का सामना गंगा कर रही है, उसके मुकाबले बैक्टीरियोफेज की प्रभावशीलता काफी सीमित है।

गंगा की पवित्रता को लेकर किए जा रहे दावे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) को सौंपी गई रिपोर्ट के पूरी तरह से विपरीत हैं। यह रिपोर्ट बताती है कि गंगा नदी के जल में फेकल कोलीफॉर्म की मात्रा मानकों से कहीं अधिक है। संगम सहित विभिन्न स्थानों पर लिए गए नमूनों में यह पाया गया कि गंगा स्नान के लिए उपयुक्त नहीं है। फरवरी 2025 में महाकुंभ के दौरान शास्त्री ब्रिज के पास फेकल कोलीफॉर्म का स्तर 11,000 एमपीएन/100 मिली और संगम पर 7,900 एमपीएन/100 मिली तक पहुंच गया, जबकि स्नान के लिए इसकी सीमा 2,500 एमपीएन/100 मिली तय की गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, पीने के पानी में फेकल कोलीफॉर्म शून्य होना चाहिए, लेकिन गंगा के पानी में यह स्तर काफी अधिक पाया गया। यह स्पष्ट संकेत है कि गंगा की स्थिति को लेकर किए जा रहे दावे वास्तविकता से मेल नहीं खाते।
इसके अलावा, गंगा के जल में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) का स्तर भी बढ़ा हुआ पाया गया है। बीओडी का स्तर पानी में मौजूद कार्बनिक पदार्थों को तोड़ने के लिए आवश्यक घुली ऑक्सीजन की मात्रा को दर्शाता है। यदि किसी नदी का बीओडी स्तर 3 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक होता है, तो उसे स्नान के लिए अनुपयुक्त माना जाता है। लेकिन जनवरी 2025 में संगम पर किए गए परीक्षणों में यह स्तर 5.09 मिलीग्राम प्रति लीटर दर्ज किया गया, जो खतरे की घंटी है। गंगा में प्रदूषण के कारण पानी में ऑक्सीजन की मात्रा तेजी से घट रही है, जिससे जलीय जीवन भी प्रभावित हो रहा है। नदी में रोजाना करोड़ों लीटर अनुपचारित सीवेज और औद्योगिक कचरा बहाया जा रहा है, जो किसी भी प्राकृतिक शुद्धिकरण प्रक्रिया की प्रभावशीलता को खत्म कर देता है।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने भी उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPPCB) को प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान गंगा नदी के बढ़ते प्रदूषण स्तर को लेकर फटकार लगाई है। NGT ने कहा कि बोर्ड द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में केवल 12 जनवरी तक के आंकड़े शामिल किए गए थे, जबकि वास्तविक प्रदूषण स्तर जानने के लिए पूरे महाकुंभ के दौरान पानी की गुणवत्ता की निगरानी जरूरी थी। यह दर्शाता है कि गंगा की शुद्धता को लेकर किए गए दावे सिर्फ भ्रम फैलाने का काम कर रहे हैं।
जहां तक बैक्टीरियोफेज की भूमिका की बात है, तो वैज्ञानिकों का मानना है कि यह धारणा कि फेज गंगा को खुद-ब-खुद शुद्ध कर सकते हैं, पूरी तरह से भ्रामक है। नदी में भारी मात्रा में बहने वाले गंदे पानी और कचरे के सामने फेज की प्रभावशीलता अत्यधिक सीमित है। वैज्ञानिकों के अनुसार, किसी भी बैक्टीरियोफेज की प्रभावशीलता बर्स्ट साइज (Burst Size) पर निर्भर करती है, यानी एक बैक्टीरिया से कितने नए वायरस निकल सकते हैं। लेकिन प्रदूषण के इस स्तर पर बर्स्ट साइज नगण्य साबित होता है। जब तक सीवेज और औद्योगिक कचरे का प्रवाह नहीं रोका जाएगा, तब तक गंगा का जल शुद्ध नहीं हो सकता।
वास्तविकता यह है कि गंगा को पवित्र बनाए रखने के लिए वैज्ञानिक उपायों की जरूरत है, न कि अंधविश्वासों और अपुष्ट दावों की। जब तक उचित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं बनाए जाते और औद्योगिक कचरे को रोकने के लिए कठोर कदम नहीं उठाए जाते, तब तक गंगा की सफाई सिर्फ एक सपना ही बनी रहेगी।