काशीपुर। शहर की सड़कों पर जब स्कूल यूनिफॉर्म में सजे बच्चे ट्रैफिक को नियंत्रित करते नजर आए, तो राह चलते लोगों की निगाहें ठहर गईं। कहीं सीटी की आवाज़, कहीं हाथों से इशारा करते नन्हे वॉलेंटियर्स और कहीं मुस्कान के साथ नियमों का पालन करवाते छात्र-छात्राएंकृयह दृश्य था एक अनोखी पहल का, जिसमें किसान इंटर कॉलेज और समर स्टडी स्कूल के होनहार विद्यार्थियों ने ट्रैफिक पुलिस की भूमिका निभाकर न केवल यातायात व्यवस्था को सुचारू करने में मदद की, बल्कि नागरिकों के भीतर जागरूकता का दीप भी जलाया। यह प्रयास केवल प्रतीकात्मक नहीं था, बल्कि एक ठोस अभ्यास था, जिसमें छात्रों को यातायात पुलिस विभाग द्वारा बाकायदा विशेष प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण में न केवल सड़क सुरक्षा नियमों की जानकारी दी गई, बल्कि व्यवहारिक तौर-तरीके, वाहन चालकों से संवाद और आपात स्थितियों में कैसे संयम बरतना है, जैसे पहलुओं पर भी ध्यान केंद्रित किया गया।
इस जागरूकता अभियान ने विद्यार्थियों में अनुशासन, जिम्मेदारी और नेतृत्व जैसी योग्यताओं को विकसित किया। जिन छात्र-छात्राओं को अक्सर यातायात नियमों की चर्चा सुनकर अनदेखा करते हुए देखा जाता है, वही बच्चे जब खुद सड़क पर उतर कर नियमों का पालन करवाने लगे, तो आमजन भी ठिठक कर सोचने पर मजबूर हो गए। ट्रैफिक पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने इस पहल को भविष्य की दिशा बताते हुए खुलकर सराहा। उन्होंने कहा कि जब युवा पीढ़ी किसी व्यवस्था से जुड़ती है, तो उसमें नई ऊर्जा का संचार होता है। और यही हुआ, जब बच्चों ने अपने स्कूल की दीवारों से बाहर निकलकर शहर की सड़कों पर उतर कर व्यवस्था को सुधारने में योगदान दिया। इस दौरान उन्होंने न सिर्फ वाहन चालकों को जागरूक किया, बल्कि उन्हें यातायात नियमों के पालन की अहमियत भी बखूबी समझाई।
अभियान के दौरान एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरे ई-रिक्शा चालकों की समस्या को भी इन वॉलेंटियर्स ने उजागर किया। उन्होंने देखा और समझा कि शहर में जाम की सबसे बड़ी वजह बनते जा रहे ई-रिक्शा, जहां-तहां खड़ा कर दिए जाते हैं, जिससे न केवल ट्रैफिक बाधित होता है, बल्कि यात्रियों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ती है। बच्चों ने महसूस किया कि ई-रिक्शा चालकों के बीच सवारी चढ़ाने को लेकर एक अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा चलती है, जो अराजकता को जन्म देती है। उन्होंने यह भी कहा कि पहले ई-रिक्शा चालकों का सत्यापन हो चुका है, परन्तु उस प्रक्रिया का प्रभाव धरातल पर नजर नहीं आता। छात्रों की इस ईमानदार रिपोर्टिंग ने यह सिद्ध कर दिया कि जब युवाओं को जिम्मेदारी दी जाए, तो वे न सिर्फ उसे निभाते हैं, बल्कि नई समस्याओं को चिन्हित कर समाधान का मार्ग भी सुझाते हैं।
समर स्टडी हॉल कि छात्र प्रभजोत कौर ने बताया कि इस पहल में शामिल होकर उन्हें एक अलग ही अनुभव मिला, जो केवल किताबों से नहीं सीखा जा सकता था। उन्होंने कहा कि जब वो सड़क पर ट्रैफिक को नियंत्रित कर रही थीं और वाहन चालक उनकी बातों को गंभीरता से सुन रहे थे, तो एक आत्मविश्वास उनके भीतर जागा कि उम्र भले ही कम हो, पर अगर इरादे मजबूत हों तो समाज में बदलाव लाया जा सकता है। उन्होंने माना कि ट्रैफिक के प्रति लोगों में लापरवाही दिखती है, लेकिन जब बच्चे नियमों की बात करते हैं, तो उसका असर कहीं अधिक होता है। उन्हें गर्व है कि वो इस अभियान का हिस्सा बनीं और भविष्य में भी इस तरह की सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए तत्पर रहेंगी। उन्होंने इस अनुभव को अपने जीवन का अमूल्य सीख बताया।
समर स्टडी हॉल के छात्र शौर्य अग्रवाल ने साझा किया कि ट्रैफिक वॉलेंटियर बनने का अनुभव उनके लिए बेहद रोमांचक और सीख से भरपूर रहा। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने पहली बार सड़क पर खड़े होकर सीटी बजाई और हाथ के इशारों से ट्रैफिक को नियंत्रित किया, तो खुद पर एक अलग ही गर्व महसूस हुआ। शौर्य ने बताया कि इस दौरान उन्होंने न केवल ट्रैफिक नियमों को करीब से समझा, बल्कि यह भी जाना कि ड्राइवरों के व्यवहार को कैसे शांत और संतुलित तरीके से संभालना चाहिए। उन्होंने महसूस किया कि जब युवा खुद सड़क पर उतरते हैं और नियमों की बात करते हैं, तो समाज पर उसका असर गहरा होता है। इस अनुभव ने उनमें नेतृत्व की भावना को और मज़बूत किया और अब वो चाहते हैं कि ऐसे अभियानों में स्कूल के और भी छात्र-छात्राएं आगे आएं और बदलाव की शुरुआत बनें।
किसान इंटर कॉलेज से इस अभियान में भाग लेने वाले छात्रों में लवजीत, जगदीश, अमन, अभिषेक, जयदीप, लक्की और संदीप का योगदान बेहद उल्लेखनीय रहा। वहीं समर स्टडी स्कूल की ओर से प्रभजोत कौर, शौर्य अग्रवाल, रुद्राक्ष अग्रवाल, रिया बगड़वाल, आलाप वर्मा और दिव्येश पाहवा ने अपने आत्मविश्वास और निष्ठा से यह दिखा दिया कि स्कूल की किताबों के बाहर भी ज्ञान और सेवा की विशाल दुनिया है, जिसमें वो बखूबी अपनी जगह बना सकते हैं। इन छात्रों के माता-पिता और शिक्षकों के लिए यह क्षण गर्व का था, जब उन्होंने अपने बच्चों को समाज की भलाई के लिए सड़कों पर पूरी निष्ठा से कार्य करते देखा।
इस अनोखे अभियान ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि यदि बच्चों को सही समय पर जिम्मेदारियों से जोड़ा जाए और उन्हें सही मार्गदर्शन दिया जाए, तो वे सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव के सूत्रधार भी बन सकते हैं। ट्रैफिक पुलिस द्वारा शुरू की गई इस प्रेरणादायक पहल ने छात्रों को महज़ पाठ्यक्रम से बाहर निकलकर एक वास्तविक और ज़मीनी अनुभव प्रदान किया, जहाँ उन्होंने सीखा कि नियमों की अहमियत क्या होती है और उन्हें कैसे व्यवहार में लाया जाता है। इस अभियान ने आम जनता को भी यह अहसास दिलाया कि ट्रैफिक नियमों का पालन केवल डर या जुर्माने के कारण नहीं, बल्कि व्यक्तिगत जिम्मेदारी, संस्कार और सामाजिक चेतना से होना चाहिए। ऐसी ही सोच एक सशक्त, जागरूक और सुव्यवस्थित शहर की नींव रखती है, जहाँ हर नागरिक अपने कर्तव्यों को समझते हुए सामाजिक अनुशासन को प्राथमिकता देता है।